Sunday, 8 July 2018

रिश्ते और अाधुनिक पीढ़ी


रिश्तो की डोर से आज सम्पूर्ण मानव समाज एक सूत्र में बंधा हुआ है, इन्ही रिश्तों की बदोलत मानव के जीवन में लगातार खुशियों की बहारे आती रहती है। समाज में मोजूद हर रिश्ता मानव ने स्वयं आदिकाल में अपनी सुविधा के अनुसार भावनात्मक रूप से बनाया है। पर इन मानवीय रिश्तों की अहमीयत हर कोई नही समझ पा रहा है और जो समझ पाया है वो जिन्दगी को सही ढंग से आंनद के साथ जी रहा है।
रिश्तों में अपनत्व:
अपनत्व का रिश्ता दिल से है दिल ने जिस रिश्ते को स्वीकार कर लिया वहीं रिश्ता खुशी देता है। सभी रिश्तो में मौजूद अपनत्व ये विश्वास दिलाता है कि हम अकेले नहीं है हमारे साथ हमारे रिश्तेदारों का, दोस्तों का, हमारे चाहने वालों का प्यार है। उनकी शुभकामनाएं, उनका आशीर्वाद है। रिश्ते तभी मन को भाते है जब वे नि:स्वार्थ आपको अापको अपनत्व का अहसास देकर खुशियां देते रहे। जहां स्वार्थ की दूनिया बसने लगती है वहां अपनत्व का बसेरा उजड़ जाता है। खुशियां उस रिश्ते की टहनी पर नहीं बैठती जिस पर स्वार्थ के पुष्प खिल रहे हो व अविश्वास की पत्तीयां फल-फूल रही हो।
वर्तमान में रिश्तो की अनिवार्यता:
वर्तमान में अधिकांश रिश्ते अपनी पहचान के साथ अपना अपनत्व भी खोते जा रहे है। ये सब आधुनिकता की और साफ इशारा कर रहे है। एक दौर था जब गर्मियों की छुट्‌टीयां मामा के घर गुजर जाती थी जो भी कम पड़ती थी, नानी की कहानियां कम नही होती थी, मन मारकर भी मामी बहुत लाड़ करती थी व नाना के साथ उनके कार्यो में हाथ बटाने का मजा ही कुछ और होता था। पर अब तो आधुनिकता इतनी हो गई है िक गर्मीयों की छुट्टीयां बस घुमने-फिरने में गुजर जाती है। मामा-मामी नाना -नानी से विडियों कॉलिंग पर बात हो जाती है बस इसी में बच्चें खुश। अब तो नानी की कहानी कार्टून चेनल में बदल गई है।
नई पीड़ी के लोग कुछ सीिमत रिश्तों को ही स्वीकार करते है अन्य बहुत सारे रिश्ते उन्हे बनावटी ही लगते है। वह सोचता है इतने सारे रिश्तो को कब तक निभायेगा। क्योंकि अब उसके पास समय नहीं है वह तो कम रिश्तों के बीच ही अपना बहुमूल्य समय बिताना पसंद करता है। ये सब माता-पिता के द्वारा बढ़ाये गए संस्कार से ही अग्रसर है इसमें इस आधुनीक पीढ़ी का कोई दोष नहीं है।
आधुनिक पीढ़ी:
आज का युवा वैसे तो बहुत समझदार है वो हर परिस्थिति से निपट सकता है पर वो कभी-कभी हार जाता है क्योंकि उसके साथ उसके मित्रों और घर परिवारजनों का ऐसा व्यवहार रहता है कि दूनियां की इस भीड़ में खुद को अकेला महसूस करता है। ये परिस्थिति है जो आज के लगभग सभी युवाओं के साथ उत्पन्न होती है। ये आधुनिक पीढ़ी क्या चाहती है? क्या नहीं ये माता-पिता को जरूर समझना चाहिए।
बचपन हमेशा मुस्कान लिए होता है, क्योंकि बचपन रिश्तो में हमेशा अपनापन लिए होता है पर युवा पीढ़ी में ऐसा नहीं है उसका जीवन धूप-छांव की तरह होता है इस आयु तक वह सारे रिश्तों को गहराई से समझने लगता है। यहां उसमें एक नई उर्जा की उत्पत्ति होती है जो उसे साेचने-समझने और फिर उसे करने की शक्ति देती है।
आज के युवा की चाहत:
आज का युवा चाहता है कि उसकी बात को सुना जाए, समझा जाए, उसके विचारों का स्थान दिया जाए। बेवजह की बाते उस पर थोपी ना जाए। उसे अपने फैसले स्वयं करने की स्वतंत्रता दी जाए। यहां माता-पिता को समझना होगा कि अब उनका बच्चा बड़ा हो गया है तो उन्हें उसके भले बुरे कि चिंता उसे ही करने देनी चािहए। क्योकि अब ये समय उसे समझाने की नहीं है जो समझना था उसने समझ लिए अब तो बस उसे स्वतंत्रता का अनुभव करने दे। उसे हर छोटी बात पर डांटना, टोकना अच्छी बात नहीं। चूकिं युवा परिवर्तन चाहता है, समाज के वो पूराने रितीरिवाजों और झूठे आडम्बरों का अस्वीकार करता है इसलिए उनसे ऐसी बात ना मनवाएं जिसकी कोई प्रमाणिकता नहीं। यदि माता-पिता उन्हें समझेंगे तो युवा भी उन्हें अपने अंदर चल रहे विचारों को कहने मे हिचकाएंगे नहीं। वैसे आज का युवा शिघ्र अपनें सपनों को पुरा होते देखना चाहता है इस कारण वो अधिकांश समय अपने लक्ष्य को पाने के प्रयास में लगाता है। युवाओं की ये एक बहुत अच्छ खाशियत है कि वो कुछ नया करना चाहता है। उसके नया करने की यही चाहत ही महत्वपूर्ण परिवर्तन लाती है। यदि वों सीमित दायरों में अपनी सोच को रखता है तो राष्ट्र के विकास में स्थिरता आने लगेगी। इसलिए चाहिए की युवाओं पर बैवजह किसी बोझ को ना डाले। लेकिन यहां युवाओं को भी समझना होगा कि कोई भी लक्ष्य अकेले हासील नहीं हो सकता। उसे पाने के लिए अपनों का सहयोग लेना ही पड़ता है। दूश्मन के हजारो सैनिक युद्ध मैदान में हो और हम अकेले ही युद्ध लड़ने पहुंच जाए तो ये मूर्खता नही तो और क्या होगी।
सफलता परिश्रम मांगती है:
कोई भी विशिष्ट व्यक्ति अपने जीवन में समय का सही उपयोग करता है वो कभी बेकार नहीं बेठता, उसमें हमेशा कुछ ना कुछ करते रहने की आदत होती है। निरंतर प्रयास की आपको लक्ष्य तक पहुंचा सकता है। सफलता हमेशा परिश्रम मांगती है। प्रथम स्थान तो खाली है, बस उस तक वहीं पहुंचता है जो उसके लायक है। इसलिए परिश्रम करें और तब तक करते रहे जब तक सफलता ना मिल जाए।
रिश्ते उत्प्रेरक होते है:
युवा जिंदगी को मुस्कान के साथ जीना चाहता है, यदि उसे गंभीर या उदास देखे तो उससे बात करने की कोशिश करे। उसे ऐसा लगना चािहए की आप हर मोड़ पर उनके साथ है। असफलताओं के कारण युवा अपने जीवन को सही ढंग से नहीं जी पाता और फिर अक्सर उसमें नकारात्मकता उसके जीवन का नाश कर देती है।
ऐसे समय में इस तरह के युवाओं को सच्चे मित्र की अब ही आवश्यकता होती है। इन्हें रिश्तों की अब जरूरत पड़ती है। ये रिश्ते यहां उत्प्रेरक का काम कर उस युवा को फिर से जीवन में संघर्ष करने के लिए उत्प्रेरित करते है। जो सक्रिय उत्प्रेरक है वो  उसके माता-पिता और करीबी रिश्तेदार या घनिष्ट मित्र। ऐसे हालात में जब उनका पुत्र या पुत्री जिदंगी से मायुस हो तब उन्हे निम्न बातों का विशेष ध्यान रखना चाहिए।
-वजह क्या है? उसे जाने और उनसे बात करें।
-उनसे हमेशा प्यार से बात करें।
-नुकसान होने पर उन्हें डांटे नहीं।
-उसे स्वतंत्रता दीिजए ताकि वह अकेले भी कुछ कर सकें।
-यदि वह असफल भी हो जाए तब भी उसे हौसला दीिजए और फिर से कोशिश करने को प्रेरित करें।
मित्र भी इस वक्त उसके सबसे करीब होने चाहिए। आखिर क्या हुआ? यह जाने हर उसकी तकलीफों में आप उसके साथ है यह भरोसा दिलाए। यदि यहां मित्र उसके साथ नहीं होगा तो वह प्रारंभीक बातें और किसी को नहीं बताएगा। आप ही पहल करें अौर जाने उसके मन में क्या चल रहा है।
युवा जब डिमोटिवेटेड होता है तब यदि मित्र या माता-पिता आगे नही आए तो कोई हादसा होना स्वभाविक है। कई बार छोटी बातों की कहासुनी से मित्र भी बाते करना बंद कर देते है। यदि मित्र ऐसा करेंगे तो उसके मन में जो चल रहा है वो कैसे कोई जान पाएगा। मित्र ही विकट परििस्थति में उसके काम आ सकते है। एेसे समय में यदि पहल नहीं की तो रिश्तो की डोर टूट जाएगी और खुशियांे के सारे मोती बिखर जाएंगे। आवश्यकता इस बात की है कि कोई जिद्दी ना बने, समझौता करना सीखे। माता-पिता अपने बच्चों से अपेक्षा रखे पर यह जरूरी नहीं की उनकी सारी अपेक्षाए पुर्ण हो।
आज का युवा विचारवान है। अाप उसके रहन-सहन, खाने-पिने, पहनावे पर पाबंधी न लगाएं क्योंकि उसमें जो परिर्वतन आया है, वह आधुनिकता का असर है, बस उसे थोड़ा समझाएं पर अति ना करे। वैसे नयापन जल्दी स्वीकारा नहीं जाता। जरूरत है थोड़ा आपको भी युवा बनने की। हर युवा कुछ खास करना चाहता है वह अपनी दुनियां में खुशी चाहता है। सपनों की दुिनया को साकार करना चाहता है। अत: उसे मार्गदर्शन करे और उसके अच्छे बुरे की पहचान करवाएं। तभी आप उसके सच्चे मित्र और माता-पिता साबित होंगे और युवा भी रिश्तों की जीवन में अनिवार्यता को समझे उन्हें बोझ ना समझे।
(एस.सी.के.  सूर्योदय)

 SCK Suryodaya 
Reporter & Social Activist
sck.suryodaya@gmail.com

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