Tuesday, 23 June 2020

मीठी सी खुशी



एक सुहानी शाम सबसे अंजान,
अधीर मन में सिर्फ़ तेरा इंतज़ार।
तेरे लब की मीठी सी खुशी देना,
आकार मेरे पास फिर ना जाना।
बिखरकर बांहों में फिर बेखबर,
करेंगे खूबसूरत बाते फिर रातभर।
कुछ ऐसा करना की भूलें ना मंज़र,
जीना है मुझे तेरी सांसों को पीकर।
मौसम भी है आज तुझसा हसीन,
आकर प्यासे इस मन को त्रप्त कर।
आ जावो ना अब बहुत हुआ इंतज़ार,
  कर लेने दो आज प्यार जी भर कर।

  -राजवीर सूर्योदय
SCK Suryodaya
Managing Director
Angel Paridhi Tracking Network
Cell: 7771848222

खफ़ा-खफ़ा इश्क़

                                                               













इस  खफ़ा-खफ़ा इश्क़ में ख़ताएं भी कई है,
कोई था मेरा भी बहुत ख़ास पर अब नहीं है।
जिक्र उसका अब हम क्या करें, जूल्म कई है,
बदल लिया रास्ता, जिसकी मंजिल नहीं है।
छोड़ दिया मुझे क्योकी आशिक उसके कई है 
साथ चलना था पर अब कोई अरमान नहीं है।
बचा क्या अब कहानी यह भी खत्म हो गई है,
सुकून था जिसके साथ रहने से, पर अब नही है।
मुझे नहीं आता बया करना दर्द भरी बाते कई है,
चहरे पर मरती है वो यहां इश्क़ की कदर नहीं है।

-राजवीर सूर्योदय

Thursday, 25 April 2019

चुनावी जुमले और बेवकुफ बनती जनता

‘चुनाव सिर पर है और  फिर हर बार की तरह इस बार भी जनता को ठगने का समय आ गया है और जनता  फिर ठगी-ठगाई सी रह जाएगी। हर बार चुनाव में कुछ खास होता है लेकिन इस बार केवल चौर और चौकिदार के जुमले से ही लोकसभा निपट जाएगा।’
देश में गरीबी भुखमरी, बेरोजगारी, भ्रष्टाचार के अंत की बात छोड़ इस चुनावी मौषम में जुमलो की और ले जाकर विभिन्न राजनीतिक दल जनता को फिर बातो में उलझा जा रहे है। सरकार का महंगाई दर पर काबु नही है। पड़ा-िलखा नौजवान भी मध्यप्रदेश में पशु हांकने के लिए नामांकन कर रहा है। देश आतंकवाद से जूझ रहा है। आम आदमी परेशान है। गरीब और गरीब और अमीर और अमीर हो  रहा है। देश आर्थिक उन्नती तो कर रहा है लेकिन गरीबी का उन्नमुलन नही हो  रहा है। लोकसभा चुनाव 2019 पप्पु वर्सेस चौकीदार हो गया है। बाकी चुनावी घोषणा-पत्र तो सिर्फ जनता को वेबकुफ बनाने के लिए ही है क्योकि जनता के खाते में काले धन का जब 15 लाख नही आया तो कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के प्रधानमंत्री बनते ही गरीबों को 72 हजार कैसे आ जाएंगे।
अर्थशास्त्रियों की माने 25 करोड़ लोगों को इस हिसाब से सालाना 3.6 लाख करोड़ देना होगें जो संभव नही होगा। हाल ही में आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री एन चंद्रबाबू नायडू ने कहा कि अगर उनकी पार्टी सत्ता में आती है तो वे हर साल राज्य के हर परिवार को 2 लाख रुपये देगेंे।
कुटुम्ब न्यायालय इंदौर ने 12 मार्च को एक भरण पोषण के केस में आंनद शर्मा को आदेश दिया कि वह पत्नि को 3 हजार रूपए प्रतिमाह दे इस पर वह बोला कि राहुल गांधी जैसे ही प्रधानमंत्री बनेगें उसे 6 हजार रूपए सरकार से मिलेंगे। उसमें से 4500 रूपए वह पत्नि को दे देगा जब तक फेसला स्थगित रखे। माननीय न्यायालय का एक तरह से इस बात पर विचार करना चाहिए या फिर 6 नहीं देने पर सरकार पर केस दर्ज करना चाहिए।
बरहाल अभी हम यहां बात कर रहे है चौर और चौकीदार की, एक दम से देश में करोड़ो चौकीदार अवतरित हो गए है। कहते है जब आपका विरोध होने लगे और जिस बात से आपको तंज कसा जाए बस वैसा ही बन जाए तो लोग  फिर आपको वैसा कहना छोड़ देंगे। जैसे एक गवांर को गवांर कहेगें तो उसे बहुत बुरा लगेगा, लेकिन जब बार-बार उस पर तंज कसा जाएगा तो उसे कुछ तो करना पड़ेगा या तो वह समझदार बन जाए या फिर गंवारपन का िडंढोरा पिटने लग जाए तो सब भी अपने आप की बोलती बंद हो जाएगी।
कुछ इस तरह ही इस बार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने किया है जब कांग्रेस अध्यक्ष ने अपनी कई सभाओं में नरेंद्र मोदी को चौकीदार ही चौर है कहा, इस तरह की पोस्ट सोशल मिडिया पर भी बहुत बार देखी गई। िफर क्या चौर और चौकीदार की लड़ाई शुरू हो गई। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कुछ  िदनों पूर्व एक विडियो जारी कर कहा कि हर कोई जो भ्रष्टाचार, गंदगी, सामाजिक बुराइयों से लड़ा रहा है, वह एक चौकीदार है.
सीएम योगी ने ट्वीट कर कहा-उत्तर प्रदेश है संकल्पित और मैं तैयार हूँ,
जो प्रेरणा से है बही, विकास की बयार हूँ,
हाँ, मैं भी चौकीदार हूँ...
एक्ट्रेस किरण खेर ने ट्वीट कर कहा-’मैं मां हूं, बहन हूं, प्यार हूं. पर राक्षसों के वध के लिए, शेर पर सवार हूं. मैं भी चौकीदार हूं।
हाँ मैं भी चौकिदार हँू,,,,,,इसी स्लोगन से लोकसभा जितने का सपना फिर से देखा गया है।
 मोदी भक्तो ने भी राहुल गांधी को नहीं छोड़ा इन डायरेक्ट उनके लिए इस्तेमाल किया गया पप्पु शब्द भी फेमस हो गया इस बार संता-बंता से ज्यादा पप्पु पर जॉक ज्यादा बने लगे है।
इस बार चुनाव में हाँ, मैं भी चौकीदार हँू छाया हुआ है, देश में चौकिदाराें की संख्या में अचानक इजाफा हो गया वो भी फ्री के चौकीदार जिन्हें बस एक टोपी पहन कर फोटो िखचाकर ये कहना है हाँ, मैं भी चौकीदार हँू,,, बस यही है मोदी भक्ती।  जहां जक मुझे पता है आज भी गांव में एक चौकीदार होता है जिसका काम गांव की चौकीदारी करना है, मतलब उस गांव में उसके रहते चौरियां नही हो सकती या चौर गांव में दाखिल भी हो जाएं तो उसे वह पकड़कर गावं वालों के हवाले कर दे। और गांव में अपराधो पर नजर रखते हुए भ्रष्टाचार के खिलाफ खड़ा रहता है। जिसके लिए सरकार ने उन्हें खेती की जमीन भी दे रखी है और मानदेय के रूप में पहले 1500 रूपये पाता था अब इन्हें 2500 रूपए कर दिया गया है। लेकिन सोचने की बात यह है कि इस वास्तविक चौकीदार की स्थति खराब ही है।  लेकिन अब तो करोड़ो लोग चौकीदार हो गए है तो देखना यह है कि देश से भ्रष्टाचार और अपराधों पर ये नए चौकीदार चुनाव बाद कितना असर दिखाते है। या फिर चुनाव निपटने के बाद ये चौकीदारी भी सेवानिवृत्ति ले लेंगे।
वेसे तो सभी जानते है कि ये सब चुनावी भाषण बाजी है जिनका सामाजिक सरोकार से कोई मतलब नहीं है, अपना काम बनता भाड़ में जाए जनता। जहां एक और देश आंतरिक गृहयुद्ध की ओर है, देश में भ्रष्टाचार अपने चरम पर है, रिश्वतखोरी, असामाजिक कार्य शिखर पर है। सरकारे अपने फायदे के लिए गरीबों का कर्जा माफी जैसी योजनांए देश से गरीबी दूर नहीं करेगी। गरीबी उन्मूलन के लिए रोजगार चाहिए जो वो नए रोजगार सृजन करने में नाकामयाब रही है।
बेरोजगारी से पर्दा उठाने वाली ‘’स्टेट ऑफ वर्किंग इंडिया- 2018’’ के अनुसार देश में युवाओं मे बेरोजगारी की दर 16 फिसद तक है। जिसमें युपी, बिहार और मध्यप्रदेश सबसे उपर है।
सेंटर फोर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी की रिपोर्ट के अनुसार 2018 में 1.10 करोड़ नौकरियां समाप्त हो चुकी है। इस वर्ष बैरोजगारों की संख्या 1.89 करोड़ के आसपास बताई जा रही है।  नौकरियों में जब आरक्षण की बात आती है तो जहन में यही सवाल उठता है कि जब नौकरियां ही नहीं है तो सरकार आरक्षण किसमें देगी। पर यह बात जनता को कहां समझ आती है उसे तो जमाने से ठगा जाता आ रहा है।
और इस बार तो मतदाता इसलिए भी डरा हुआ है कि उस ये बताया जा रहा है कि उसके खाते से वोट नही डालने पर 350 रूपए कट जाएंगे। लेकिन जागरूक मतदाता डरे नहीं ये केवल एक भ्रामक प्रचार है। चुनाव आयोग ने इस तरह का कोई आदेश नहीं दिया है।
इसलिए वोट अपना वोट जरूर दे और यदि कोई उम्मीदवार पसंद नहीं तो नोटा ही दबा दे।
(एस.सी.के. सूर्योदय)

 SCK Suryodaya 
Reporter & Social Activist
sck.suryodaya@gmail.com

Friday, 15 March 2019

इश्क़ की हवा- वैलेंटाइन डे

प्यार इश्क और मोहब्बत में  बर्बाद है आदमी,
इस बार है जिसकी बारी जाने वो कौन है,,,
वैलेंटाइन डे मतलब एक दूसरे के प्रेम के इजहार का दिन। यह दिन संत वैलेंटाइन की याद में मनाया जाता है जिन्हे 14 फरवरी 299 को फांसी पर कैवल इसलिए चड़ा दिया गया था क्योकि उन्होने राजा के उस फरमान का विरोध  किया था जिसमें सैनिक विवाह नही कर सकते थे। उन्होने रोम के कई सैनिको की शादी करवाई।
वैसे तो प्यार करने वालों के लिए हर दिन खास होता है लेकिन भारत सहित विश्व के कई देशों में इस दिवस को प्रेमी युगलो द्वारा मनाया जाता है। अब हम बात करते है उन प्रेमियों की जिनकी कहानी वैसे तो हर किसी को पता है। इन सच्चे प्रेमियों  की प्रेमगाथा  इतिहास के पन्नों मे स्वर्णाक्षरो से लिखी गई। लैला और मजनूं की प्रेमगाथा, हीर और रांझा की प्रेमगाथा, सोहणी और महीवाल की प्रेमगाथा, सलीम और अनाकली की प्रेमगाथा। इन प्रेमगाथाओं के उपर बनी फिल्में भी अमर हो गई।
मंजनू लैला से इतनी मोहब्बत करता था कि आखिर में वो पागल-पागल सा हो गया। ये पागलपन ही सच्ची मोहब्बत की निशानी है। एक गाना याद  आ रहा है मैं लैला लैला चिल्लाउंगा कुर्ता फाड़ के ये कुर्ता फाड़ना ही पागल पन है। खैर मंजनू लैला के प्यार में पागल होकर भी इतिहास में अपनी प्रेम कहानी को अमर कर गया। दूनियां मे प्रेम को कभी स्वीकारा नहीं गया जबकि यह प्रेम ही इस दूनियां को बचा सकता है वरना बैर तो आज हर किसी के मन मे भरा हुआ है। इसी तरह हिर और रांझा की गाथा भी अथाह प्रेम के सागर में समा गई। हिर की जब अन्यत्र शादी जबरन करा दी गई तो रांझा भी जोगी हो गया। कहते है रांझा हिर से इसी दौरान मिला, दोनो भाग गए घर वालो ने आखिर उनके प्रेम को स्वीकार कर लिया लेकिन चाचा ने हिर को जहर दे दिया।
सोहणी महिवाल की प्रेमगाथा भी अथाह प्रेम की सागर में गोते-लगाते हुए दम तोड़ गई। इनके दु:खद अंत के बावजुद आज भी ये अमर हो गए। सोहणी एक कुम्हारन थी जिसके प्यार में  बुखारा, उजबेकिस्तान का धनी व्यापारी इज्जत बेग भारत जब व्यापार करने आया था तो सोहणी को देखकर उसका ही होकर रह गया। अपना देश छोड़ वो सोहणी के घर भेंस चराने लगा तभी उसका नाम महिवाल पड़ा। खेर इश्क के चर्चे आम होने के बाद सोहणी के पिता ने सोहणी की शादी किसी और से कर दी लेकिन फिर भी दोनो प्रेमी मिलते रहे और एक दिन कच्चे मटके की वजह से पक्का प्यार मोत के आगोश मे समा गया।
कहते है अगर प्यार सच्चा  है तो इस प्यार में अपने प्रियतम के लिए  कुछ भी कर गुजरने के लिए तैयार रहता है चाहें उसकी जान क्यों ना चली जाए। कुछ इसी तरह शीरीं और फरहाद की प्रेम कहानी में हुआ। प्यार तो प्यार होता है जो ना जाति देखता है, ना धर्म, ना अमीरी-गरीबी और ना ही उम्र। शाहजहां ने तो मुमताज के प्यार में एक अजूबा ही बना दिय।
शीरीं राजकुमारी थी और फरहाद एक शिल्पकार लेकिन उसके प्यार में शिरीं भी दिवानी सी हो गई राजकुमारी के पिता ने फरहाद के आगे शर्त रखी की वो पहाड़ो को काट कर नहर बना दे उसने अपने कार्य अंजाम पर ही था कि फरहाद को शिरीं की मौत की झूठी खबर दी गई। फरहाद ने वहीं खुद को भी मौत के हवाले कर दिया।
इंदीवर द्वार रचित यह गाना जो गजल संम्राट जगजीतसिंह ने गया,
न उम्र की सीमा हो, न जन्म का हो बंधन
जब प्यार करे कोई तो देखे अपना मन
नई रीत चलाकर तुम ये रीत अमर कर दो,
होंठों से छूलो तुम
मेरे गीत अमर कर दो।
हाँ बात तो सही है जब प्यार किसी से होता है तो
अच्छे-अच्छे को शायर बना देता है। कई शायरियां, गीत, ख्याल बनने लगते है। जब प्रियतम पास होता है तो हर पल खास हो जाता है। और जब दूिरयां होती है तो प्रियतम की याद में फिर मिलन की आस होती है। जब खुमार इश्क का छाता है तो हर आशिक फना होने के लिए तैयार होता है। प्यार तभी परवान चड़ता है जब दोनो तरफ से होता है। लेकिन आजकल एकतरफा प्यार करने वालों की भरमार है जिससे इस प्यार भरे अहसास का कोई मतलब नहीं रह जाता। माना की किसी को किसी से प्यार है और अगर प्यार है तो सच्चाई के साथ करे। प्यार अगर सच्चा होगा तो एक ना एक दिन जिसकी चाह है वो मिल ही जाएगा।
मेरा वैलेंटाईन तु ही है, साथ है, पास है, सामने है, क्योिक वो हर पल मेरे हर पल में है और यहीं बात खास है, क्योकि प्यार एक ऐसा अहसास है जो रूह तक को तरबतर रखता है।
प्यार  वो हसीन अहसास है जो कभी हसंता है कभी रूलाता है, तन्हाईयों में भी तन्हा ना होता, ख्वाबों को जो हकीकत में जीता है, प्यार के लिए जो कुछ भी करता है, ये वहीं इश्क है जो सबकों होता है, इश्क़ करें पर किसी का दिल ना तोड़े, प्यार का गुलाब महकने दे, वादा करे तो  निभाेये, विश्वास करे तो धोखा ना दे, क्योकिं मौत एक बार मारती है पर बेवफाई हर पल।
एक बात और प्यार का ये रिश्ता सिर्फ विश्वास पर टिका रहता है, वैसे तो हर रिश्ते की बुनीयाद विश्वास ही है, लेकिन यहां विश्वास का मतलब सिर्फ प्रियतम का होने से है, बाहों में कोई ख्यालों मे कोई ये तो गलत बात है ना। पर कुछ लोग है जो सिर्फ धोखा ही देते है, महिनों सालों तक प्रेम प्रसंग चलते है और फिर एक दिन िकसी और का होकर किसी को तन्हा कर जाते है। यहां बेवफाई इसी का कहते है। दे दीया ना धाेखा, तोड़ दिये ना वादे। एक तरफ कोई खुशियों में होता है और कोई गमों के संमंदर में गोते लगाता है वो मानता है नहीं कि उसका प्यार उसका नहीं रहा। जो भी हो जब कोई साथ छोड़ दे, वादे तोड़ दे तो अपनी जिंदगी की नई शुरूआत माने। तन्हा जीए या नया हमसफर बनाए ये स्वयं पर छोड़े। लेकिन यदि कोई जीवन के सफर को कोई मिल जाए सच्चा चाहने वाला केयर करने वाला तो इंकार ना करे।
कहते है प्यार में केवल केयर होती है, कोई एसा केयर करने वाला आ जाए तो अपना ले। क्योकि यदि किसी को आपकी फिक्र रहती है, कि आप किसी तकलिफ में तो नही है, आपकी खुशी के लिए अपनी खुशियां लूटाने वााला ही आपका सच्चा प्यार है। खुशनसीब होते है ऐसे लोग जीनकी
केयर करने वाला होता है। क्योकि वो आपकी सारी तकलिफे खुद ले लेता है। जब प्यार होता है तो
होगी कभी-कभी तकरार भी पर घोर अन्याय ना करते हुए मनाये तो मान जाना । बैवजह भाव ना खाते हुए खफा ही ना रहना। किसी को पा लेना इश्क नहीं किसी के दिल में जगह बनाते हुए उसका हो जाना प्यार है।
(एस.सी.के. सूर्योदय)

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Wednesday, 11 July 2018

विनाश की ओर (विश्व जनसंख्या दिवस)

“हम दो हमारे दो”  का नारा केवल दिवारों और रेलियाें में ही सुनने को मिलते है। अगर ये विचार हर कोई अपना लेता तो शायद आज आजादी के बाद से भारत की जनसंख्या 33 करोड़ ही रहती। आज विश्व जनसंख्या  दिवास है और विश्व की जनसंख्या 7 अरब 63 करोड़ से उपर विष्फोटित हो चुकी है।
देश वैसे ही भ्रस्टाचार की वेदी पर अपना विकास रखे हुवे है, ऐसे में जनसंख्या वृद्धि चिंता का विषय है। देखने में आया है कि जहाँ घर परिवार में बच्चों की संख्या अधिक होती है उस परिवार में बच्चों की शिक्षा का स्तर निम्न हो जाता है लेकिन वही जब हम ऐसे परिवार की बात करते है जिसमें एक या दो बच्चें हो उन बच्चों की परवरिश के साथ शिक्षा का स्तर भी बेहतर होता है, यहां बच्चो की अन्य चाहतों को भी अच्छे से पूर्ण किया जाता है वहीं बच्चों की पलटन बनाने वाले परिवारों की आर्थिक स्थति उतनी अच्छी नही होती कि वो इस पलटन का ठीक से लालन-पालन कर सके, यहां बच्चों को भगवान भरोसे बड़ा होने के लिये छोड़ दिया जाता है पड़ने-लिखने के उम्र में ये कामकाज पर लग जाते है।
       भारत के लड़के को कुल का दीपक कहा जाता है इसी सोच के कारण अधिकांश परिवारों में बच्चों की रेल चल पड़ती है। कई मामलों में कन्या भ्रूणहत्या के मामले इसी कुलदीपक की लालसा में होते है और कई परिवारों में इसी सोच की वजह से दो से लेकर आठ लड़कियों का जन्म हो जाता है और मुस्लिम परिवारों में यह संख्या और भी बढ़ जाती है या फिर भ्रूण हत्याएं होने लगती है। हाल ही में मध्यप्रदेश के देवास शहर में चंद्रा निर्सिंग हाेम का एम.टी.पी. पंजीयन निरस्त किया गया। कारण था पीसी एण्ड पी.एन.डी.टी. का उलंग्न। जांच में सामने आया कि एक वर्ष में यहां की डॉक्टर स्मिता दुबे ने 117 गर्भवतियों का गर्भपात करवाया जो सिर्फ इस बात की और साफ इशारा करता है कि यह सब बेटे चाह में हुआ क्योंकि अधिकांश गर्भपात 12 सप्ताह के भ्रूण के थे।  
       यदि बेटियों को ही कुलदीपिका मान लिया जाए तथा बेटी और बेटे के भेद को समाप्त कर दिया जाए तो बहुत हद तक जनसंख्या वृद्धि को रोका जा सकता है। विवाह के पश्चात दो लोग परिवार बनाते है अपने जीवनकाल में यदि एक या दो संतान का ही जन्म दे तो जनसंख्या का स्तर स्थिर हो जाएगा। कम से कम पड़े-लिखे लोगों को तो प्रण करना चाहिए कि लड़का हो या लड़की संतान एक ही अच्छी। बाकी जो अनपढ़ जाहिल है उन लोगो को समझाने का काम भी करना होगा तभी भारत सही मायनों में विकासशील देश बन पाएगा। केवल जनसंख्या बढ़ाने से कुछ नही होगा। जनसंख्या वृद्धि के कारण भुखमरी, बेरोजगारी, अशिक्षा में वृद्धि होती है जो किसी भी प्रगतिशील राष्ट्र के लिए घातक है। इसलिए इस विषय को गंभीरता से लेते हुवे आगे भी चर्चा करनी चाहिए।
       मोहम्मद बेल्लो अबुबाकर जिसका नाम हाल ही में सोशल मिडिया पर चर्चा का विषय रहा है जो एक मोलवी था। नाइजीरिया के इस शख्स की वर्ष 2017 में मृत्यु हो चुकी है। इस इंसान की 130 पत्नियां 203 बच्चे थे। यह सुनकर शायद किसी को ज्यादा आश्चर्य नहीं होगा पर इस बात पर सोचने पर मजबूर तो जरूर कर दिया कि जहां हर कोई हम दो हमारे दो के नारे पर अमल करने की सोच रहा है उस स्थिति में यह अकेला 203 बच्चों का पिता बना। विश्व में जनसंख्या विष्फोट का कारण इसी तरह के जाहिल लोग ही है जो बच्चों को उपरवाले की देन मानते है और बीवियाें को बच्चें पैदा करने की मशीन। ऐसे नासमझ लोगों के कारण ही देश गर्त में चला जाता है। युगांडा की रहने वाली मरियम 37 साल की उम्र में अब तक 38 बच्चों को जन्म दे चुकी है। 
       पाकिस्तान का सरदार जान मुहम्मद खिलजी की तीन बीवियां तथा 35 बच्चें है। उसका लक्ष्य है 100 बच्चों का पिता बनना इसके लिए वो चोथी बीवी की तलाश कर रहा है। भारत की बात करे तो मिजोरम के डेड जिओना जिसके परिवार में कुल 181 सदस्य है। इसकी  39 पत्नियाँ और 94 बच्चे, 14 बहुएँ और 33 पोते-पोतियाँ है। 
       वर्ष 2017 के आकंड़ो के अनुसार विश्व का एक ऐसा देश जो जिसकी जनसंख्या 1000 है और वर्ल्ड मेटर्स के रिकार्ड के अनुसार आज विश्व की जनसंख्या 7,635,077,191 है। इस साल 43 करोड़ की जनसंख्या वृद्धि हुई है। विश्व में सबसे अिधक जनसंख्या वाला देश चीन है जिसकी 11 जुलाई 2018 प्रात: 11 बजे जनसंख्या 1,415,197,400 है जो विश्व के 18.54  प्रतिशत है तथा विश्व में दूसरे नम्बर पर भारत है जिसकी जनसंख्या 1,354,460,600 है जो विश्व का 17.74 प्रतिशत है। एक नजर अगर जनसंख्या वृद्धि की और डालते है तो पता चलता है कि वर्ष 1804 में विश्व की कुल जनसंख्या 1 अरब, 1930 में 2 अरब, 1960 में 3 अरब, 1974 में 4 अरब, 1987 में 5 अरब, 1999 में 6 अरब, 2011 में 7 अरब।  यदि जनसंख्या के इस विष्फोट को अभी रोका नहीं गया तो वर्ष 2030 तक विश्व की जनसंख्या 8,382,005,834 पहुंच जाएगी तथा वर्ष 2045 तक 9,558,236,140 और  2050 तक 10 अरब हो जाएगी।
       अगर ऐसा होता है तो यकिन मानिए विश्व मानवता खतरे के निशान काे पार कर देगी। यह एक ऐसा समय होगा जब शायद यह जनसंख्या फिर बड़े ही नहीं क्योकि विश्व युद्ध शायद इससे पहले ही प्रारंभ हो चुके होगे। भलेही भारत विश्व में जनसंख्या के मामले में अपना दूसरा स्थान रखता हो पंरतु वह तीसरे नम्बर पर आने वाले यूनाइटेड स्टेट अमेरिका जिसकी जनसंख्या 326,830,60 है, का सामना नहीं कर सकता। वैसे आने वाले 7 वर्षो में भारत विश्व की सबसे ज्यादा आबादी वाला देश होगा। 
       1947 में भारत की जनसंख्या 33 करोड़ थी जो आज चार गुना से अधिक तक बढ़ गयी है।  वर्ष 2025 में भारत की अनुमानित जनसंख्या 1,451,829,004 तथा चीन की इसी वर्ष 1,438,835,697 होगी मतलब सिर्फ 7 वर्ष बाद भारत विश्व में  सबसे ज्यादा जनसंख्या वाला देश होगा। शायद भारत के लोगो के लिए ये गौरव की बात हो। लगता है भारत देश से अंग्रेज क्या गए यहां के लोगो को जैसे बच्चें पैदा करने की आजादी ही मिली हो। भारत के लोगो ने ये कोनसी रेस लगा रखी है समझ से परे है।  
       जनसंख्या वृद्धि आज लगभग हर उन्नत देश के लिए चिंता का विषय है जो आगे चलकर बहुत भयानक हो सकता है यहां तक की लोगो के पास खाने के लिए भोजन नही रहेगा। विश्व की जनसंख्या 1987 को 5 अरब पार कर गई थी तब युनाईटेड स्टेट द्वारा प्रतिवर्ष 11 जुलाई को विश्व जनसंख्या दिवस मनाने का निर्णय लिया गया ताकि इस विष्फोट की और सबकी नजर जा सके और इस समस्या के समाधान के लिए उचित कदम उठाए जा सके।  विश्व स्तर पर लिंगानुपात 107/100 है, औसत उम्र 69 जिसमें पुरूष 67 वर्ष, महिला 71 वर्ष। बताते चले की भारत में हर मिनट 34 बच्चे पैदा होते हैं। बेटी बेटा एक समान जैसी सोच के साथ ही इस समस्या का निराकरण संभव है। 
(एस.सी.के. सूर्योदय)

Reporter & Social Activist
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Sunday, 8 July 2018

रिश्ते और अाधुनिक पीढ़ी


रिश्तो की डोर से आज सम्पूर्ण मानव समाज एक सूत्र में बंधा हुआ है, इन्ही रिश्तों की बदोलत मानव के जीवन में लगातार खुशियों की बहारे आती रहती है। समाज में मोजूद हर रिश्ता मानव ने स्वयं आदिकाल में अपनी सुविधा के अनुसार भावनात्मक रूप से बनाया है। पर इन मानवीय रिश्तों की अहमीयत हर कोई नही समझ पा रहा है और जो समझ पाया है वो जिन्दगी को सही ढंग से आंनद के साथ जी रहा है।
रिश्तों में अपनत्व:
अपनत्व का रिश्ता दिल से है दिल ने जिस रिश्ते को स्वीकार कर लिया वहीं रिश्ता खुशी देता है। सभी रिश्तो में मौजूद अपनत्व ये विश्वास दिलाता है कि हम अकेले नहीं है हमारे साथ हमारे रिश्तेदारों का, दोस्तों का, हमारे चाहने वालों का प्यार है। उनकी शुभकामनाएं, उनका आशीर्वाद है। रिश्ते तभी मन को भाते है जब वे नि:स्वार्थ आपको अापको अपनत्व का अहसास देकर खुशियां देते रहे। जहां स्वार्थ की दूनिया बसने लगती है वहां अपनत्व का बसेरा उजड़ जाता है। खुशियां उस रिश्ते की टहनी पर नहीं बैठती जिस पर स्वार्थ के पुष्प खिल रहे हो व अविश्वास की पत्तीयां फल-फूल रही हो।
वर्तमान में रिश्तो की अनिवार्यता:
वर्तमान में अधिकांश रिश्ते अपनी पहचान के साथ अपना अपनत्व भी खोते जा रहे है। ये सब आधुनिकता की और साफ इशारा कर रहे है। एक दौर था जब गर्मियों की छुट्‌टीयां मामा के घर गुजर जाती थी जो भी कम पड़ती थी, नानी की कहानियां कम नही होती थी, मन मारकर भी मामी बहुत लाड़ करती थी व नाना के साथ उनके कार्यो में हाथ बटाने का मजा ही कुछ और होता था। पर अब तो आधुनिकता इतनी हो गई है िक गर्मीयों की छुट्टीयां बस घुमने-फिरने में गुजर जाती है। मामा-मामी नाना -नानी से विडियों कॉलिंग पर बात हो जाती है बस इसी में बच्चें खुश। अब तो नानी की कहानी कार्टून चेनल में बदल गई है।
नई पीड़ी के लोग कुछ सीिमत रिश्तों को ही स्वीकार करते है अन्य बहुत सारे रिश्ते उन्हे बनावटी ही लगते है। वह सोचता है इतने सारे रिश्तो को कब तक निभायेगा। क्योंकि अब उसके पास समय नहीं है वह तो कम रिश्तों के बीच ही अपना बहुमूल्य समय बिताना पसंद करता है। ये सब माता-पिता के द्वारा बढ़ाये गए संस्कार से ही अग्रसर है इसमें इस आधुनीक पीढ़ी का कोई दोष नहीं है।
आधुनिक पीढ़ी:
आज का युवा वैसे तो बहुत समझदार है वो हर परिस्थिति से निपट सकता है पर वो कभी-कभी हार जाता है क्योंकि उसके साथ उसके मित्रों और घर परिवारजनों का ऐसा व्यवहार रहता है कि दूनियां की इस भीड़ में खुद को अकेला महसूस करता है। ये परिस्थिति है जो आज के लगभग सभी युवाओं के साथ उत्पन्न होती है। ये आधुनिक पीढ़ी क्या चाहती है? क्या नहीं ये माता-पिता को जरूर समझना चाहिए।
बचपन हमेशा मुस्कान लिए होता है, क्योंकि बचपन रिश्तो में हमेशा अपनापन लिए होता है पर युवा पीढ़ी में ऐसा नहीं है उसका जीवन धूप-छांव की तरह होता है इस आयु तक वह सारे रिश्तों को गहराई से समझने लगता है। यहां उसमें एक नई उर्जा की उत्पत्ति होती है जो उसे साेचने-समझने और फिर उसे करने की शक्ति देती है।
आज के युवा की चाहत:
आज का युवा चाहता है कि उसकी बात को सुना जाए, समझा जाए, उसके विचारों का स्थान दिया जाए। बेवजह की बाते उस पर थोपी ना जाए। उसे अपने फैसले स्वयं करने की स्वतंत्रता दी जाए। यहां माता-पिता को समझना होगा कि अब उनका बच्चा बड़ा हो गया है तो उन्हें उसके भले बुरे कि चिंता उसे ही करने देनी चािहए। क्योकि अब ये समय उसे समझाने की नहीं है जो समझना था उसने समझ लिए अब तो बस उसे स्वतंत्रता का अनुभव करने दे। उसे हर छोटी बात पर डांटना, टोकना अच्छी बात नहीं। चूकिं युवा परिवर्तन चाहता है, समाज के वो पूराने रितीरिवाजों और झूठे आडम्बरों का अस्वीकार करता है इसलिए उनसे ऐसी बात ना मनवाएं जिसकी कोई प्रमाणिकता नहीं। यदि माता-पिता उन्हें समझेंगे तो युवा भी उन्हें अपने अंदर चल रहे विचारों को कहने मे हिचकाएंगे नहीं। वैसे आज का युवा शिघ्र अपनें सपनों को पुरा होते देखना चाहता है इस कारण वो अधिकांश समय अपने लक्ष्य को पाने के प्रयास में लगाता है। युवाओं की ये एक बहुत अच्छ खाशियत है कि वो कुछ नया करना चाहता है। उसके नया करने की यही चाहत ही महत्वपूर्ण परिवर्तन लाती है। यदि वों सीमित दायरों में अपनी सोच को रखता है तो राष्ट्र के विकास में स्थिरता आने लगेगी। इसलिए चाहिए की युवाओं पर बैवजह किसी बोझ को ना डाले। लेकिन यहां युवाओं को भी समझना होगा कि कोई भी लक्ष्य अकेले हासील नहीं हो सकता। उसे पाने के लिए अपनों का सहयोग लेना ही पड़ता है। दूश्मन के हजारो सैनिक युद्ध मैदान में हो और हम अकेले ही युद्ध लड़ने पहुंच जाए तो ये मूर्खता नही तो और क्या होगी।
सफलता परिश्रम मांगती है:
कोई भी विशिष्ट व्यक्ति अपने जीवन में समय का सही उपयोग करता है वो कभी बेकार नहीं बेठता, उसमें हमेशा कुछ ना कुछ करते रहने की आदत होती है। निरंतर प्रयास की आपको लक्ष्य तक पहुंचा सकता है। सफलता हमेशा परिश्रम मांगती है। प्रथम स्थान तो खाली है, बस उस तक वहीं पहुंचता है जो उसके लायक है। इसलिए परिश्रम करें और तब तक करते रहे जब तक सफलता ना मिल जाए।
रिश्ते उत्प्रेरक होते है:
युवा जिंदगी को मुस्कान के साथ जीना चाहता है, यदि उसे गंभीर या उदास देखे तो उससे बात करने की कोशिश करे। उसे ऐसा लगना चािहए की आप हर मोड़ पर उनके साथ है। असफलताओं के कारण युवा अपने जीवन को सही ढंग से नहीं जी पाता और फिर अक्सर उसमें नकारात्मकता उसके जीवन का नाश कर देती है।
ऐसे समय में इस तरह के युवाओं को सच्चे मित्र की अब ही आवश्यकता होती है। इन्हें रिश्तों की अब जरूरत पड़ती है। ये रिश्ते यहां उत्प्रेरक का काम कर उस युवा को फिर से जीवन में संघर्ष करने के लिए उत्प्रेरित करते है। जो सक्रिय उत्प्रेरक है वो  उसके माता-पिता और करीबी रिश्तेदार या घनिष्ट मित्र। ऐसे हालात में जब उनका पुत्र या पुत्री जिदंगी से मायुस हो तब उन्हे निम्न बातों का विशेष ध्यान रखना चाहिए।
-वजह क्या है? उसे जाने और उनसे बात करें।
-उनसे हमेशा प्यार से बात करें।
-नुकसान होने पर उन्हें डांटे नहीं।
-उसे स्वतंत्रता दीिजए ताकि वह अकेले भी कुछ कर सकें।
-यदि वह असफल भी हो जाए तब भी उसे हौसला दीिजए और फिर से कोशिश करने को प्रेरित करें।
मित्र भी इस वक्त उसके सबसे करीब होने चाहिए। आखिर क्या हुआ? यह जाने हर उसकी तकलीफों में आप उसके साथ है यह भरोसा दिलाए। यदि यहां मित्र उसके साथ नहीं होगा तो वह प्रारंभीक बातें और किसी को नहीं बताएगा। आप ही पहल करें अौर जाने उसके मन में क्या चल रहा है।
युवा जब डिमोटिवेटेड होता है तब यदि मित्र या माता-पिता आगे नही आए तो कोई हादसा होना स्वभाविक है। कई बार छोटी बातों की कहासुनी से मित्र भी बाते करना बंद कर देते है। यदि मित्र ऐसा करेंगे तो उसके मन में जो चल रहा है वो कैसे कोई जान पाएगा। मित्र ही विकट परििस्थति में उसके काम आ सकते है। एेसे समय में यदि पहल नहीं की तो रिश्तो की डोर टूट जाएगी और खुशियांे के सारे मोती बिखर जाएंगे। आवश्यकता इस बात की है कि कोई जिद्दी ना बने, समझौता करना सीखे। माता-पिता अपने बच्चों से अपेक्षा रखे पर यह जरूरी नहीं की उनकी सारी अपेक्षाए पुर्ण हो।
आज का युवा विचारवान है। अाप उसके रहन-सहन, खाने-पिने, पहनावे पर पाबंधी न लगाएं क्योंकि उसमें जो परिर्वतन आया है, वह आधुनिकता का असर है, बस उसे थोड़ा समझाएं पर अति ना करे। वैसे नयापन जल्दी स्वीकारा नहीं जाता। जरूरत है थोड़ा आपको भी युवा बनने की। हर युवा कुछ खास करना चाहता है वह अपनी दुनियां में खुशी चाहता है। सपनों की दुिनया को साकार करना चाहता है। अत: उसे मार्गदर्शन करे और उसके अच्छे बुरे की पहचान करवाएं। तभी आप उसके सच्चे मित्र और माता-पिता साबित होंगे और युवा भी रिश्तों की जीवन में अनिवार्यता को समझे उन्हें बोझ ना समझे।
(एस.सी.के.  सूर्योदय)

 SCK Suryodaya 
Reporter & Social Activist
sck.suryodaya@gmail.com

Sunday, 1 July 2018

संतों की मति


गौतम बुद्ध, महावीर स्वामी, गुरूनानक देव एेसे चमत्कारी महापुरूष थे, जिन्होने संपूर्ण समाज को मानवता का पाठ पढाया और अपने ज्ञान के प्रकाश से सभी संसार वासियों को ऐसा ज्ञान उपलब्ध कराया जो आदि समय तक सबका मार्ग दर्शन करता रहेगा। इनकी गति और मति दोनो ही बस में थी जिस पर कोई दाग नहीं पर वर्तमान में  संतो की मति भोगविलास की और गतिमान है।

संत होते है समाज को सकारात्मक संदेश देने वाले जो सदाचारी होते है धार्मीक होते है, जिसे सांस्कारीक मोह माया से कोई मतलब नहीं होता है पर हाल ही में इंदौर में मार्डन संत भय्यू महाराज ने खुद को खोली मारकर आत्महत्या करने का मामला सामने आया। यह एक एेसी घटना है जिसने यह विचारने पर विवश कर दिया कि क्या वाकई एक संत को ऐसा करना चािहए जो कभी अपने अनुवाईयों के आदर्श रहा हो। एक पल के लिए यदि हम सोचते है तो यही सामने आता है कि वजह जो भी हो संतों को तो ऐसा नहीं करना चािहए क्योकि हकीकत में जो संत होता है वह समाज को मार्गदर्शक रहता है। वह अपनी देह का त्याग समाधी लेकर करता है। गुरू सत्य असत्य के भेद को जानता है, वह इश्वर का दूत है यह कहना अतिश्योक्ति नहींं होगी।
संत’ शब्द अर्थ है- साधु, संन्यासी, विरक्त या त्यागी पुरुष या महात्मा जिसे कोई मोह नहीं होता जो चमत्कारी होता है पर वर्तमान में जो घटनाएं हो रही है उसने संत की परिभाषा ही बदल दी है आज संत को देखते है तो भौतिक सुख-सुविधाओं में लिप्त, मोह-माया की तृष्णा लिए एेसा संत, महात्मा, बाबा, महाराज जो लम्बी कार में अपने काफिले के साथ कहीं प्रवचन देता है तो कहीं भागवत करता है तो कहीं अपने आश्रम में अपनी सेविकाओं के साथ रंगरलियां मनाता है। समाज को सदमती, सतगती प्रदान करने वाले ही अपनी मती को बस मे नहीं रख पा रहे है। शायद आज संतो की गती अपनी मती के कारण ही अनैतिक, अव्यवहारिक हो चली है।
संतो की विचारधारा को अपनाते हुए कई धार्मिक लोक सत्यमार्ग का चयन करते है। सामािजक सार्थक परिवर्तन करने वाला ही यदि अपने विचारों को अनैतिक गती प्रदान करेगा तो समाज का क्या होगा। आध्यात्मिक प्रवचन देने वाले आशाराम बापू की हकीकत जो सबके सामने है। कई शिष्यों को बाबा की यह करतुत जगजाहीर होने केे बाद समझ आई। हालांकि आज भी लाखों शिष्य उन पर लगे सभी आरोपों को षडयंत्र मानते है और कहते है बापू को एक साजिश के तहत फँसाया गया है। टाईम्स ऑफ इंडिया के सर्वे के मुताबिक आशाराम बापू के विश्वभर में भक्तों की संख्या 8 करोड़ के आसपास है व आश्रमों की संख्या 450 से अधिक है। जो भी हो करोड़ो लोगो के पूजनीय बापू अपनी ही नाबालिग शिष्याओं से दुराचार के केस में फिलहाल जोधपुर की जेल में उम्रकेद की सजा काट रहे है।
अगला नाम आता है डेरा सच्चा सोदा के गुरमीत राम रहीम सिंह इन्साँ का जो बलात्कार का दोषी करार दिया गया पर शिष्य इसे भी षडयंत्र मान रहे है। वैसे उनके अनुयाईयों के सामने रहीम की रासलीला की कई कहानियां निकल कर सामने आ रही हैं लेकिन  फिर भी शिष्यों को उन पर प्रगाड़ अंध विश्वास है जबकी गुरमीत राम रहीम सिंह इन्साँ  का घिनौना चेहरा बेनकाब होकर दुनिया के सामने आ चुका है। आिखर क्यों याेगी भोगी बन रहे है ऐसी कोनसी जीवन लालसा है जो सन्यास लेने के बाद भी सांसारीकता का त्याग नही करने दे रही है।
आज क्यों संत, बाबा, महात्मा भगवान के नाम का जाप कर घिनौनी हरकत कर रहा है। इन प्रश्नों का जवाब ये बाबा या संत खुद है। इसमें इन पाखंडियों का कोई दोष नहीं है। समाज भी ऐसे भाेगियों को संत महात्मा, गुरू मानकर उनकी चरण धोकर पीने को लम्बी कतार में खड़े होते है। क्या समाज संत की असली संतो को भुल गया है तो फिर ऐसे ही दुष्ट ढोंगी बाबाओं के चुंगल में ऐसे भक्त फंसते रहेंगे। दक्षिण भारत के नित्यानंद स्वामी की अश्लिल सिडी तक वायरल हो गई थी और कोन से सबुत चािहए अंध भक्तों को। प्रतापगढ़ के कृपालु महाराज पर लड़कियों के अपहरण और दुष्कर्म के मामले भी भक्तों को झुठे लगते है यहां तक की राधे माँ पर भी यौन शोषण के आरोप लग चुके है। एक और ढोंगी बाबा संत रामपाल जो आश्रम में साधिकाओं से शारीरिक संबंध भी बनाता था। इसके आश्रम से प्रेग्नेंसी किट और सेक्स पावर बढ़ाने वाली दवाइयां मिली थीं। हाल ही में एक और संत की काली करतुत सामने आई ये है शनिधाम के संस्थापक दाती महाराज जिस पर शायद शनि की महादशा प्रारंभ हो चुकी है इस पर 25 साल की लड़की ने दाती महाराज पर रेप का आरोप लगाया। जिन ढोंगी बाबाओं का पर्दाफास हो चुका है अब उनके आश्रमों में सन्नाटा है। आखिर इन्हें संत की उपाधी देता कौन है और इस प्रश्न का जवाब इन संतो के शिष्य ही दे सकते है।
कौन है सच्चें संत:
जो संत तो अपनी ही धुन में रहता है, उसके लिए ना कोई जाति ना कोई धर्म होता है, वह सिर्फ इंसानियत का पुजारी होता है और यही है सच्चें संत। एेसे ही संत है तुलसीदास, गुरूनानक देव, संत कबीर दास, संत रवि रैदास, एक नाथ, संत तुकाराम, संत नामदेव, संत समर्थ स्वामी, रामकृष्ण परमहंस, स्वामी विवेकानंद आदि कई संतो ने समाज अपनी वाणी से ऐसा ज्ञान दिया युगों युगों तक समाज में एकता मानवता का संदेश  हर इंसान में रहेगा बसर्ते वह किसी ढोंगी बाबाओं के चुंगल में न फंसा हो। ना जाने क्यों समाज का एक तबका इन नकली संतो या बाबाओं को अपना गुरू बनाकर उनकी पूजा करता है।
एक बार की बात है मैं देवास के टेकरी स्थित कबीर आश्रम में अपने परिचितों को लेेने पंहुचा तब वहां मंहत की आरती चल रही थी, कबीर पंथी उन महंत की आरती कर रहे थे, कोई पाद पूजा कर रहा था, उस वक्त मैं खामोशी के साथ अपने ध्यान में सच्चे ईश्वर को याद कर रहा था। मेरे द्वारा उनकी आरती ना करने पर भरी सभा में उन्होने मुझे खड़ा कर के कहा कि तु मेरा विरोध कर रहा है जबकि मेने किसी के कुछ भी नहीं कहां, उन्हे बस यह खल रहा था कि मैंने उनकी पाद पुजा नही है। इस घटना के बाद मैं कभी किसी के प्रवचन या सतसंग में नही गया क्योकि अपनी पुजा आरती का लालसी क्या ईश्वर का दूत होगा।
अब चुनाव समाज के ऐसे लोगो को खुद सोच समझकर करना है कि आदि सच्चें संतो की गती अपनाना है या और भी बचे ढोंगी संतों, बाबाओं के चुंगल में फंस कर अपनी बालिकाओं को इनके आश्रम में भेजकर उनकी भोग का निवाला बनाना है या खुद की भी मती ऐसे संतो की मती जैसा करना है।
(एस.सी.के. सूर्योदय)

 SCK Suryodaya 
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मीठी सी खुशी

एक सुहानी शाम सबसे अंजान, अधीर मन में सिर्फ़ तेरा इंतज़ार। तेरे लब की मीठी सी खुशी देना, आकार मेरे पास फिर ना जाना। बिखरकर ब...