Tuesday, 26 June 2018

नशे में भविष्य

आज नशीले पदार्थों के दुरूपयोग विरूद्ध अंतर्राष्ट्रीय दिवस है। जो पूरे विश्व में मनाया जाता है लेकिन क्या एक दिन इस दिवस को मना लेने से नशे के आदी व्यक्ति को ये बात समझ में आ जाती है कि यह नशा उसके जीवन का ही नाश नहीं कर रहा वरण परिवार, समाज, देश की उन्नती के लिए भी घातक है।चलो जो भी हो एक दीन की मेहनत शायद कुछ रंग लाए और किसी नसेड़ी की को ये बात जम जाए कि नशा जीवन का नाश करता है। 
उड़ता पंजाब फिल्म तो सभी को याद है जो पंजाब ही नहीं पूरे देश में चर्चा का विषय रही है। फिल्म के निर्देशक अभिषेक चौबे ने फिल्म में पंजाब में युवा आबादी द्वारा नशीली दवाओं के दुरुपयोग और उससे जुड़े विभिन्न षड्यंत्रों के का सजीव चित्रण किया है। अगर किसी युवा ने इस  फिल्म को अभी तक नहीं देखा तो एक बार जरूर देख ले। कहा जाता है जिस तरह कश्मीर आंतक से जुझ रहा है उसी तरह पंजाब नार्को टेरर से जुझ रहा है। ड्रग मािफया के लिए पंजाब स्वर्ण नगरी कही जा सकती है। क्योकि यहां के स्कूल, कॉलेज के बच्चों में ड्रग्स और शराब पीना आम दृश्य हो चुके है। कहा जाता है पंजाब मेंं ड्रग्स की समस्या है ही नहीं क्योकि यहां ड्रग्स हर कहीं उपल्ब है और इसी समस्या पर आधारित उड़ता पंजाब की पटकथा है। पाकिस्तान  से मादक पदार्थो की खेपे पंजाब एवं राजस्थान के रास्ते पुरे देश में जाती है। पाकिस्तान का तो मकसद ही यही है कि यहां के युवा को इसकी लत में लगा दिया जाए ताकि भारत अंदर से खोखला होता जाए। पर हमारे देश का होनहार जवान यह समझने को तैयार नहीं। और इसमें कोई दो राय नही है कि देश के ही लोग सिमा पार से इन मादक पदार्थो के खेपे मंगवाते है जिसमें सेना और पुलिस भी शामिल है।
नशा समाज में किसी भी रूप में घातक ही है। फिर कैसे  युवाओं के दम पर 2020 तक दुनिया की ‘आर्थिक महाशक्ति’ बनाने का दावा सरकारे कर रही है। सरकारें युवाओं के बल पर भारत विकास की बात करती है लेकिन दुर्भाग्य से यही युवा नशीलीं दवाईयों की गिरफ्त में है। ये नशा युवाओं के साथ बच्चों तक को अपना शिकार बनाता जा रहा है। नशाखोरी की समस्या से देश का हर राज्य से जूझ हैं। एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में नशीली दवाओं के कारोबार में पांच गुना ( 455 फीसदी ) वृद्धि दर्ज की गई है। जिसमें मिजोरम पहले स्थान पर है। मिजोरम में पिछले चार सालों में करीब 50,300 टन नशीली दवाइयां जब्त की गई हैं। इसके बाद दूसरे नम्बर पर पंजाब है। करीब 40,600 टन नशीली दवाईयां बरामद की गई हैं। इन नशीली दवाइयों में गांजा, भांग, कोकीन, इफेड्रिन,चरस , हेरोइन और अफीम जैसी अन्य खतरनाक दवाइयां शामिल हैं।   कई दवा विक्रेता अधिक मुनाफा कमाने के चक्कर में युवाओं को प्रतिबंधित दवाइयां व कैप्सूल बेचते हैं। और ये सब आसानी से मेडिकल स्टोर पर भी उपलब्ध हो जाते है। नशे की बढ़ती लत भारत के भावी भविष्य के लिए गंभीर चिंता का विषय है।
अब जब भारत देश की आबादी 1 अरब 36 कराेड़ है जिसमें से करीब 20 करोड़ की आबादी मादक पदार्थो की गिरफ्त में है। आंकड़े बताते है कि सिगरेट पिने के मामले में भारत पूरी दूनियां में दुसरे स्थान पर है। वर्ष 2001 किए गए सर्वेक्षण में सामने आया है कि लगभग 7 करोड़ लोग शराब और मादक द्रव्य का सेवन करते थे। लाखों करोड़ो रूपए केवल विज्ञापनों में खर्च करने वाली सरकारें वास्तविक धरातली कार्य कुछ भी नहीं कर पा रही है क्योकि उत्पादन और बिक्री जब तक होती रहेगी, इसे रोक पाना असंभ ही है।
यदि नशे की समस्या इतनी विकराल ना होती तो शायद आज 26 जून नशीले पदार्थों के दुरूपयोग विरूद्ध अंतर्राष्ट्रीय दिवस के रूप में मनाने की जरूरत नहीं होती। देखने में आया है कि जहां प्रतिबंधन होता है वहीं उस चिज का खजाना होता है। राष्ट्रीय अपराध ब्यूरो के आंकड़े बताते है कि इस नशे के कारण सबसे ज्यादा आत्महत्याएं महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, तमिलनाडु और केरल में होती हैं। नशे की लत युवा वर्ग में तेजी से फ़ैल रही है। एक रिपोर्ट के अनुसार  महज 16 से 35 युवा ही इस लत में फंसे है।
मादक पदार्थो का सेवन करने वाला ये वर्ग कई बार दिखावे के कारण या कुछ ड्रग माफिया की चाल में फंसकर इस लत में पड़ जाता है। क्योकि ये माफिया प्रारंभ में इन बच्चों को मुफ्त में मादक पदार्थो को उपलब्ध कराता है ताकि आगे बड़ा लाभ हो और जब इस नशे की लत लग जाती है तो उसका जीवन बर्बाद होना निश्चित ही है। नशीली दवाईयों के आिद होने के पश्चात इसकी ऐसी लत लग जाती है कि इसके डोस के लिए युवा कुछ भी कर गुजरता है फिर चाहें इसे खरीदने की किमत चोरी हो या डाका या किसी की जिंदगी। देश में अधिकांश अपराधों का जन्मदाता ये मादक नशा ही है। जो महंगें नशे की किमत नहीं चुका पाता वो  फेविकोल, तरल इरेज़र, पेट्रोल, आयोडेक्स, वोलिनी जैसी दवाओं को सूंघकर नशा करता है। गलत संगती के चलते आज का युवावर्ग गुटखा, सिगरेट, शराब, गांजा, भांग, अफीम और धूम्रपान सहित चरस, स्मैक, कोकिन, ब्राउन शुगर की लत में पड़ जाता है। ये सभी जानते है नशे करने के लिए उपयोग में लाई जानी वाली सुइयाँ एच.आई.वी. का कारण भी बनती हैं लेकिन फिर भी ये वर्ग नहीं मानता।
मादक पदार्थो के आिद लोगो में मानसिक असंतुलन आम बात है। ऐसी अवस्था को जानना माता-पिता और अभिभावकों के लिए अतिआवश्यक है कि उनका बच्चें की संगती किसके साथ है। कही उनका लाल अपनी जीवन लीला समाप्त तो नहीं कर रहा है। कुछ युवा ये सोचते है कि शराब या अन्य नशा करने से वो तनाव से दूर हो जाते है। ये केवल उनका भ्रम है किसी भी समस्या का हल नशा नहीं है। युवा अपने तथा देश के भविष्य के लिए नशे का त्याग करें। यदि खुद इस लत से बाहर नहीं आ पा रहे है तो अपने माता-पिता से बात करे। नशामुक्ती केंद्र में जाए और अपना इलाज कराए। यह ना सोचे की अब देर हो चुकी है। यूंही इस जीवन को समाप्त ना करे।  जीवन अनमोल है इस जीवन को नशे की लत में तबाह ना करे। क्योकि ये नशा कुछ समय के लिए तो तनावमुक्त कर देगा लेकिन यह नश जीवन भर के लिए आपको तनाव से तृप्त कर देगा। इसलिए बेहतर होगा इसका त्याग करने का संकल्प ले।                        
(एस.सी.के. सूर्योदय)

 SCK Suryodaya 
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Sunday, 24 June 2018

मिशन परी: स्वच्छ भारत अभियान


परी महज 3 साल की है वह अपनी ताेतली आवाज से जब बोलती है ये क्या कर्रेएएएए हो,,,हर किसी को अपनी और आकर्षित कर लेती है, अपनी मासुमियत और मिठी आवाज सबको प्यारी है,,, परी नदी के घाट पर स्वस्छता अभियान को देखा और जब इसके बारे में उसने अपने पापा से पुछा तो परी को स्वछता के सही मायने समझ आ गये,  फिर वह अपने अभियान पर लग जाती है, जिसे सभी मिशन परी कहने लगे,,
परी जब अपने पापा जी क साथ स्कुल जाती है तब रास्ते में प्रतिदिन की तरह परी के पापा जी गाड़ी रोककर मैया क्षिप्रा को प्रणाम करते है। पास घाट पर कुछ हलचल, चहल-पहल और आवाज को सुनकर परी गाड़ी से उतरकर देखने लगती है घाट पर कुछ सामाजिक संस्थाओं के कार्यकर्ता नदी में फैली गंदगी और कचरे को निकालते है इस अभियान में महिला-बच्चें सभी शामिल है तथा सफाई अभियान में लगे सामाजिक कार्यकर्ता कुछ नारे भी लगाते है। 
*जन-जन का ये लक्ष्य हो, भारत हमारा स्वच्छ हो।
*भारत देश महान, सफल हो स्वच्छ भारत अभियान।
*कचरे का करे उचित निदान, घर-मोहल्लें गांव का बढ़ेगा मान।
*मिशन बढ़ेगा, देश बढ़ेगा।
*मिशन हमारा, स्वच्छ भारत हमारा।
इसके बाद परी को उसके पापा स्कुल छोड़ देते है और परी अपने पापा को बाय बोलती है। परी के चहरे और मिस्टर वैदिक के चहरे पर हल्की मुस्कुराहट थी। उसी शाम परी अपने खिलोने के साथ खेलती रहती है तथा परी के पापा ऑफिस का काम करते है, तभी परी की मम्मी मिसेस प्रिया परी को आवाज लगाती है। परी बेटा,,,,,,,,, होमवर्क,,,,,परी मम्मी की आवाज सुनकर कमरे से स्कूल बेग लेकर बाहर आ जाती है। इस समय उसके कमरे की हालत अस्त-व्यस्त रहती है, खिलोने, कपड़े सब इधर-उधर बिखरे हुए रहते है। तभी परी बड़ी मासुमियत से, पेन्सिल की नोक को गाल पर लगाते हुए,, अपने पापा की और देखती है, पापा की नजर परी पर पढ़ती है तो 
पापा जी इसारे से पूछते है, क्या हुआ,,,,,
परीः पापा,,,जी,,,,ये स्वच्छ भारती मिशन क्या है?
मिस्टर वैदिक परी के इस प्रश्न का जवाब देने वाले ही होते है तभी परी की मम्मी मिसेस प्रिया हाल में चाय और नास्ता लेकर आती है और चाय परी के पापा की और देखर परी को ज्यूस देते हुए,,,
मिसेस प्रिया परी से कहती है परी पहले होमवर्क करो,,,,पापा को काम करने दो। परी ज्यूस पिते हुए फिर चुप-चाप अपना होमवर्क करती है। परी के पापा, चाय का कप उठाते है और परी के पास जाकर बैठ जाते है। मीस्टर वैदिक परी से कहते है परी जो स्वच्छ रहे, गंदगी ना फेलाये और अपने आस-पास स्वच्छता बनाये रखे, यही स्वच्छ भारत मिशन है (परी के पापा परी के सिर के बालो को ठीक करते है, और अपनी जगह पर आकर बैठ जाते है) कुछ देर बाद परी उठती है, और अपने कमरे में जाती है और कमरे में फेला सामान एक-एक कर व्यवस्थित रख देती है, परी की मम्मी मिसेस प्रिया यह देखती है कि परी अपने कमरे में बिखरे सामान को ठीक करती तो परी से पुछती है परी ये क्या है,,,
परी कहती है मिशन है,,,,
मिसेस प्रिया परी के रूम से बाहर निलती है और परी के पापा की और देखते हुए,,,,
बोलती है,,,,मिशन है,,,,,
परी के पापा मुस्कुराते हुए,,,,मिशन परी,,,
दूसरे दिन परी का क्लास रूम, क्लास टिचर मिस सारा मेम बच्चों के होमवर्क चेक करती है तथा नर्सरी कक्षा की एक पोयम बुक मे से पोयम रिपीट कराती है,,,
डुमक-डुमक डम-डम,
बदल छाए, नीर बरसे छम-छम,
टागे बढ़ते चले हम,,
चले-चलों स्कुल चले हम,,,।
लंच की घंटी बजते ही बच्चे अपना टिफीन खोलते है तथा सभी बच्चें टीफीन अस्त-व्यस्त तरीके से खाते है। पर परी,,,टीफीन खाने से पहले हेण्ड वास करती है और टिफीन एक पेपर के उपर रख कर खाना प्रारंभ करती है,,, परी की दोस्त दिशा परी में आये इस परीवर्तन को देखकर परी से पुछती है परी ये क्या तुम इतना बदल गई है,,,
परीः मिशन है,,,(गंभीर मुस्कुराहट के साथ) अब से तुम भी कसम खाओं की गंदगी नहीं करोगी तभी हमारी बेस्ट फ्रेण्डशिप रहेगी। लंच के बाद क्लास खत्म होने के बाद जब सभी बच्चे चले जाते है तो लंच में फैली क्लास रूम में गंदगी को परी उठाकर डस्टबीन में डालती है,,
अन्य दो तीन लड़कीया परी को खिड़की में से झांककर चिड़ाती है और कचरा अन्दर डालती है,, और कहती है परी बाई परी बाई,,, पर परी उनकी बातो को नजर अंदाज कर अपना काम करती है उन लड़कियों द्वारा फेके कचरे को भी वह उठाकर डस्टबिन में डाल देती है,, तभी बच्चों की आवास सुनकर क्लास टिचर मिस सारा क्लास रूम के सामने रूकती है और परी को अंदर कचरा साफ करते देखकर परी की और देखकर उससे पुछती है,,, हाथो की इसारे से,,,
परी मिस सारा से मिशन है,,,,
उसी शाम को परी के घर के बाहर इवनिंग वॉक के समय परी अपने पापा से पुछती है,,, परी मिस्टर वैदिक सेः पापा जी सब गंदगी क्यों करते है। मिस्टर वैदिक परी सेः वो नासमझ है। अगले दिन सुबह जब परी स्कुल जाती है तो पास के अंकल (जिमी अंकल) अपनी बाईक रोड़ पर घोते है तथा गुटका खाकर पिचकारी रोड़ पर छोड़ते है, पर अपने पापा जी को गाड़ी रोकने का बोलती है
परी मिस्टर वैदिक सेः पापा जी रूकों,,,
परी के पापा गाड़ी रोकते है और परी उतरकर जिमी अंकल के पास जाकर बालती है,,,
परी जिमी अंकल से कहती है, अंकल आप नासमझ हो,,,आपको एेसे रोड़ पर बाईक नही धोना चािहए इससे किचड़ बनेगा इसलिए आप बाल्टी में पानी लेकर घर के लॉन में साफ करना चाहिए तब जिमी अंकल परी को स्वारी बोलते है और घर के अंदर लान में बाल्टी में पानी लेकर गाड़ी साफ करते है।
एक शाम जब परी मोहल्ले में खेलती रहती है तो पड़ोस मे ही एक आंटी अपने घर का कचरा घर के सामने ही डाल देती है तो परी उनसे भी बोलती है,,
परी मधु आंटी सेः आंटी आप नासमझ हो,,,,आपको कचरा कचरा पेटी में डालना चाहिए। 
यह बात एक मासुम लड़की के मुह से सुनकर वो भी शर्मिंदा होती है। आगे से कचरा चरा डस्टबीन में डालने का वादा करती है।
एक दिन परी की छुट्टी हो जाती है पर परी के पापा अभी तक उसे लेने नहीं पंहुचते है,,, परी स्कुल गेट पर अपने पापा का इंतजार करती है,,, वही कुछ बच्चें भी अपने पेरेन्ट्स का इंतजार करते है,,तभी तेज रफ्तार से एक कार उसे किचड़ से गंदा कर देती है,,, (गाड़ी चलाने वाला स्थानिय नेता होता है जिसे पता भी होता है कि उसकी कार से एक लड़की किचड़ से गंदी हो जाती है लेकिन वह उस लड़की को साईड ग्लास में देखकर हल्की मुस्कुराहट के साथ आगे बढ़ जाता है) तभी परी के पापा आ जाते है गाड़ी खड़ी कर परी को इस हालत में देखकर परी को गले लगाने जाते है,, लेकिन तभी परी,,,उसके पापा को रूकने का इसारा करते है,,,और कहती है,,,रूको पापा जी ,,,मैं गंदी हो गई,,,तब परी के पापा परी से कहते है,,, बैटू आप गंदे हो गई तो क्या हुआ आप तो मेरी प्यारी बिटीया हो,,,और मिस्टर वैदिक उसे गले लगा लेते है तब परी उसके पापा से कहती है,,,पापा जी मिशन फैल हो रहा है,,,
तब मिस्टर वैदिक परी से कहते है,,, परी है तु मिषन फैल कैसे हो सकता है,,,
परी उसके पापा से फिर हाथो के इसारे से कहती है रूकों पापा जी,,,  और अपने स्कुल बैग का सामान मिस्टर वैदिक के हाथो में रखकर रोड़ के पास पड़े छोटे-छोटे पत्थरों को बैग में भरकर गड्ढे को भरती है ऐसा वो दो तीन बार करती है तभी उसकी सहेली दिषा भी उसकी मदद को आगे आती है,,,तभी परी को इस तरह कार्य करते हुए देख आसपास के लोग भी थोड़ी देर के लिए अपने काम को रोक देते है तभी वह स्थानिय नेता भी वापिस अपनी कार से आता है और उस बच्ची द्वारा इस तरह कार्य करते देख अपनी गाड़ी रोकता है और शर्मिंदा होता है और परी के पास जाकर कान पकड़कर सॉरी कहने का इसारा करता है,,, परी अपना काम करती है, तब स्थानिय नेता फोन लगाता है और मुरम का डम्फर बुलवा लेता है परी के इस कार्य से सभी स्वप्रेरीत होत है तथा जो रोड़ पर गंदगी फेलाते है अपना कचरा वापस उठाकर डस्टबिन मे डालते है,,,
धार्मिक बंधु भी अब नदी में कचरा नही फेलाते है। जब नदी में परी की दोस्त दिशा अपने मम्मी पापा के साथ जाती है तो दिशा के पापा नदी में पुष्प हार नदी में डालते है तो दिषा उन्हे रोकती है। परी का स्वच्छता का यह अभियान आगे भी लगातार जारी रहा। 
मिशन परी एक नई शुरूआत,,,,,स्वच्छ भारत अभियान की और 
(एस.सी.के. सूर्योदय)

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Friday, 22 June 2018

प्रथम गुरू माता-पिता

एक बच्चें का सर्वप्रथम मोटीवेटर उसके माता-पिता ही होते है क्योकि वो जो कुछ भी सिखता है उनसे ही सिखाता है इसलिए प्रथम गुरू ये ही है।  माता-पिता होना यानी खुशी का बढ़ना। कहते है कि निर्माण करना कठिन है तो उसकी सुरक्षा करना अत्यंत कठिन है। माता-पिता अपने बच्चों से कई उम्मीद लगाते है क्योकि उनका बच्चा ही समाज में उनके नाम को और इज्जत को बनाए रखता है पर वर्तमान परिवेश में उनके बच्चों में कहीं बुरी आदतों का समावेश ना हो जाए इस कारण थोड़े चिंतीत भी होते है क्योंकि समाजिक परिवेश कुछ दूषित है। लेकिन यदि माता-पिता प्रारंभ से ही अपने बच्चों के प्रति सजग रहेंगे तो उनका बच्चा आगे चलकर भटकेगा नहीं।
आज के व्यस्तम सामाजिक जीवन में जहां किसी के पास एक दूसरे के लिए दो पल की फुर्सत नहीं, कि वह अपने उत्तरदायित्व को पूर्णत: निभा पाए। पर जब अापने जन्म दिया है तो अपने कर्त्तव्यों का पालन करना भी अनिवार्य हो जाता है। आप अपनी संतान को हर समय अच्छा वातावरण दे जिससे बच्चों को स्कूली शिक्षा के साथ-साथ व्यवहारिक शिक्षा का भी ज्ञान हो सके तभी उनके अनुभवों में वृिद्ध होगी। उन्हें बचपन से ही संस्कारवान बनाईये और ये सब वो अापसे ही सिखेगा। जैसे संस्कार आपमें होंगे वेसे ही वो धारण करेगा इसलिए खुद भी संस्कारीत हो। आप अपने बच्चों में समय सारणी के अनुसार ही काम करने की आदत को निर्मित करें क्योकि समय बहुत कीमती होता है उन्हें यह बताईए कि समय उनका कभी इंतजार नहीं करेगा।  आप उनके आचार-विचार पर भी ध्यान रखे तथा उनके सामने किसी की भी बुराई न करें। कहते है कि अच्छी फसल वही किसान पाता है जो अपनी फसल की सदैव देखभाल करता है। आप अपने बच्चों के सामने ऐसा व्यवहार न करे जिससे उसका कोमल ह्दय भयभीत हो। घर का वतावरण ही बच्चों को संस्कारवान बनाता है। घर का माहौल जैसा होगा उसमें वैसे ही गुण निर्मित होंगे। आप जैसा व्यवहार करेंगे वैसा ही व्यवहार वह किसी और के साथ करेगा।
आप झुठ बोलेंगे तो वह भी झुठ बोलने से कतराएगा नहीं। एक बालक में सीखने और नकल करने की प्रव‌ृत्ति सबसे अधिक होती है। आप अपने बच्चों को सदैव प्रोत्सािहत करें क्योंकि हर माता-पिता का लक्ष्य अपने बच्चों को एक सुशिक्षित, सभ्य, ईमानदार, सफल तथा कर्त्तव्य परायण व्यक्तित्व का निर्माण करना है जो उनका नाम दूनियां में रोशन करे। हर माता-पिता की चाहत होती है कि उनकी संतान डॉक्टर, इंजीनियर, अधिकारी आदि बने। यह तो ठीक है लेकिन अकसर माता-पिता यह भूल जाते है कि बड़ा केवल पद या धन से नहीं बनते, बड़े बनते है चरित्र से। इसलिए पहले बच्चों को चरित्रवान बनाए। बच्चों की रूचि, योग्यता का पहचाने और जुट जाइये उनके विकास में आप ही उनके अच्छे साथी और उचित मार्गदर्शक बन सकते है।          
(एस.सी.के. सूर्योदय)

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Tuesday, 19 June 2018

सफलता के प्रथम तत्व



उत्सुकता: 
ज्ञान एक अथाह सागर है, जिसे हम प्राप्त करने का प्रायास कर सकते है यदि हमारे पास उसे हासिल करने की उत्सुकता ही नहीं होगी तो उम्मीद छोड़ दे उस क्षेत्र में सफलता पाने की। जिस प्रकार एक बच्चा कोई नई वस्तु देखता है तो वह पूछता है-ये क्या है? इसका नाम क्या है? ये किस काम आती है? ये कहाँ से आई? इसे किसने बनाया? आदि,, जब तक उस बच्चें का इन सवालों का जवाब नहीं मिलता वह प्रश्न करना नहीं छोड़ता और जवाब भी सही भ्रमित करने वाले जवाब भी उसे और अिधक जानने के लिए प्रेरित करता है। ठिक उसी प्रकार हमें भी बच्चे की तरह खुद से प्रश्न करना चाहिए। उत्सुकता आपको जीवन में कुछ नया बनने या करने को  भी प्रेरित करती है हो सकता है आपकी यही उत्सुकता किसी महत्वपूर्ण वस्तु का अविष्कारक बना दे,जो मानव के लिए हितकारी हो।
उद्देश्य: 
सफलता के लिए उद्देश्य की उत्पत्ती भी होना अतिआवश्यक है। कहते है जिनके पास जीने का उद्देश्य है वो मार्ग से कम ही भटकते है। जिस प्रकार खाने के लिए अच्छी भूख का हाेना जरूरी है उसी प्रकार जीने के लिए उद्देश्य का होना जरूरी है। यदि आपका उद्देश्य अपने लक्ष्य में सफलता पाना है तो आपकों ये ध्यान में रखना होगा कि उद्देश्य एक हो अनेक नहीं। उद्देश्य निर्धारित कर लेने के बाद आपकों सफलता के अन्य प्रमुख तत्वों को ध्यान मे रखना है जो सीधो समानुपाती है आपकी सफलता के। सफलता को कभी अन्तिम ना मान। इस राह का कभी अन्त नहीं हो सकता। हाँ एक सफलता के बाद हमें दूसरी सफलता के लिए उत्सुकता के साथ उद्देश्य बनाना है।
सपने: 
सपने तभी सकार होते है जब उनमें सच्चाई हो अत: सपनों को साकार करें। क्योकि बिना साकार के कुछ भी सत्य नहीं। बहुत से लोग अपने कार्य में थोड़ी सी रूकावट से नहीं चाहते हुए भी विचलित हो जाते है ऐसा इसलिए होता क्योकि वे असफलता से डरते है। यदि आप सच्ची सफलता चाहते है तो बिना विचलित हुए समस्या का समाधान ढूंढ‌ेंगें। ऐसा ना हो कि घबराकर कोई गलत कदम उठा ले। इसलिए आने वाली अड़चन का सामना करें क्योकि यदि कुछ कार्य करते है तो कई रूकावटो का अना भी स्वभाविक है। तब संयम के साथ उचित निर्णय ले और कोशिश करें और चले पड़े सफलता की राह पर ।
(एस.सी.के. सूर्योदय)

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Wednesday, 13 June 2018

मुरझाता बचपन

12 जून को संपूर्ण विश्व में विश्व बालश्रम दिवस मनाया गया कई जगह इस दिवस को मनाने के लिए भी लाखों रूपए हवन कर दिए गए लेकिन मध्यप्रदेश के कई जिलों में इस दिवस को याद तक नहीं िकया गया। अभिशाप बना यह बाल मजदूरी का कलंक देश के मुस्कुरातें हुए बचपन का अंत है। तो क्या इस यह एक प्रथा है जिसे खत्म करने के लिए हमें किसी अवतारी का इंतजार करना पड़ेगा।
ऐ   छोटू,,,, ऐ बारीक इधर आ, चाय लाना,,,,
आदि शब्द काे सुनकर कुछ तो ध्यान में आ ही गया होगा, जी हां हम बात कर रहे है ऐसे ही बाल श्रमिकों की, जो हमारे एक आर्डर पर हाजिर हाेकर हमें बड़ों से अच्छी सर्विस दे देते है, क्योंकि ये नादान है इन्हें अपनी क्षमता का सही उपयोग नहीं पता। हॉटलों व चाय की दुकानों में और घरों में इनकी उपस्थिति से कोई इंकार नहीं कर सकता। लेकिन फिर भी लगातार जारी है बाल मजदूरी। आखिर कहां गई सरकार की योजनाएं?  कहां गया संविधान का मौलिक अधिकार जिसमें 14 वर्ष से कम उम्र के बच्चों को केवल बेहतर शिक्षा का प्रावधान है? बैमानी है धारा 24 जिसमें कसी कारखाने या खदान में कार्य पर प्रतिबंध है। बैमानी है धारा 39-ई जिसमें मजदूरों के बच्चों का शोषण न होने की बात कही गई है। बैमानी है धारा 39-एफ जो बच्चों को नैितक व भोतिक दुरूपयोग से बचाती है। बैमानी है धारा 45 जाे 14 साल से कम उम्र के सभी बच्चों को 100 प्रतिशत मुफ्त शिक्षा देने का  आदेश देती है।  निमार्ण कार्य में लगे आदिवासियों के बच्चों का क्या भविष्य। क्या यहां केवल मजदूर का बेटा मजदूर ही पैदा होता रहगा। हर जिले में गर कलेक्टर सख्ती दिखाए तो मजाल कही बालश्रमिक मिल जाएं पर ये मेरे केवल खयाली पुलाव है यहां हकीकत में सरकार के नुमाइंदे काे क्या इन मासुमों का मुरझाता बचपन नजर ही नहीं आता उनके बच्चें ठीक बाकी भले कोई मांगे भीख।
बचपन होता है पढ़ने-लिखने, हंसने और मस्ती करने के लिए लेकिन ये बचपन बालश्रम की कुप्रथा के चलते लाखों बच्चों का मासुम बचपन छिन जाता है। केवल चंद रूपए की खातीर खुद माँ बाप अपनें बच्चों के हाथों में कलम छिन कर काम का बोझ डाल देते है। आंकड़े बताते है कि भारत में लगभग 5 करोड़ बाल श्रमिक अपने बचपन को पचपन जैसा जीने के मजबुर है। यहां उनसे काम तो अधीक लिया जाता है परंतु खाने को आधा पेट भर जाए इतना ही खाने को दिया जाता है। घरेलु नौकरों की तो अौर भी हालात खराब है जहां इनसे 18 घंटे तक काम लिया जाता है जहां उन्हें मानसिक शारिरीक प्रताड़ना भी दी जाती है। कई बच्चें मंदिरों, सड़कों और गली मोहल्लों में भीख मांगते देखे जा सकते है ये वो कुनबा है जिसे तरस खाकर हर कोई नजरअंदाज कर देता है। क्या भीख देने से उनकी मदद हो जाएगी। नहीं ना तो फिर हमारी मानसीकता को बदलने की क्यों जरूरत महसुस नहीं होती, जीन घरों में बालश्रमिक है वो पढ़े-िलखे नही है समझदार नही है।  आखिर उनकी संवेदनाएं क्यों शून्य हो चली है। क्या इन बच्चों के बेहतर भविष्य के लिए बालश्रम से मुक्ती दिलाकर उनके पढ़ने लिखने का प्रबंध नहीं कर सकते। क्यां हम ऐसी जगहों का बहिस्कार नहीं कर सकते जहां बालश्रमिक सेवा में लगे है।
<br>अभी कुछ दिनों पहले की ही बात है मैं एक चाय की दूकान पर चाय पी रहा था जहां मुझें लगभग 12 साल का एक बच्च काम करते दिखाई दिया। मैने पहले तो दुकानदार से बात की कि बच्चें को काम पर क्यों रखा था तो दुकानदार कहता है, कौनसा बच्चा ये तो 15 साल का है,,,,इस जवाब से एक बात तो साफ हो गई थी कि दुकानदार को ये ज्ञान तो था कि 14 साल से कम उम्र के बच्चों को काम पर रखना कानूनन अपनाध है,,, जब मेने बच्चें को पुछा कि काम पर किसने भेजा तो बोलता है पापा ने। मेने फिर दूसरा सवाल किया की पापा क्या करते है,,, तो उसका जवाब था कुछ नहीं करते,,, दारू पिते है।
एक 12 साल का बच्चा अपना पुत्र धर्म निभाकर पिता की दारू के लिए काम करता है। ये है हमारे महान देश की व्यथा जहां बचपन  अंधकार में खो रहा है। हमारा देश वैसे तो महान है क्योकि यहां बड़े-बड़े अरबों-खरबों के घोटालें होना आम बात है, इस तथ्य से एक बात तो साफ है कि यहां रूपए की कोई कमी नहीं फिर भी महंगाई डायन जाती नहीं और गरीबी इस तरह हावी है कि लाखों लोगों को एक वक्त की रोटी तक नसीब नहीं हाेती और इसी गरीबी के चलते बालश्रमिकों को निर्माण कार्य, हाॅटलों, कारखानों में कार्य करना पड़ता है।  ऐसा चलता है तो चलने दो, हमारा समाज ही नहीं चाहता कि बालश्रम की कुप्रथा समाप्त हो इन बच्चों के भविष्य की किसी को चिंता नहीं। सभी बस इस पर राजनैतिक रोटियां सेक रहे है। इन मासूमों के लिए जो देश का भविष्य है, कोई नेता सड़कों पर नहीं आता उलट उसके हाथ की चाय जरूर पी लेता है। हमारा देश आज विश्व की महान शक्तियों में गिना जाता है लेकिन यहां भावी भविष्य ही कमजोर है। मुरझाते बचपन की और और किसी का ध्यान नहीं है। रोटी-कपड़ा-मकान भी इन लोगों के िलए एक सपना सा प्रतीत होता है। बालश्रमिकों का जीवन की पशु के सामन ही है सिधे शब्दों में कहें तो ये बालश्रमिक कोल्हू का बेल ही है। पढ़ने-िलखने की उम्र में काम करने से इनमें  मानसिक परिपक्वता भी नहीं आ पाती। बाल श्रमिक बड़े होते-होते केवल श्रमिक ही रह जाते है और ये अपने शरीर से भी एक दिन लाचार हो जाते है। जिंदगी की जद्दोजहद में ये मसुम ऐसे पीस रहे है, जैसे गेहूं के साथ धुन।
हर छोटे-बड़े शहरों में बाल श्रमिकों की संख्या सेकड़ों  में हे लेकिन सरकार के अनुसार केवल कुछ है। सरकार द्वारा चलाए जा रहे राष्ट्रीय बालश्रम उन्मूलन महज कागजों में सिमट कर रह गया है। वास्तविक स्थति उन्हें भी पता है पर जमीनी स्तर पर कार्य कोई नहीं करना चाहता। कई सामाजिक संस्थाएं हल्ला करती है इस क्षेत्र में कार्य करने की यहां तक की राष्ट्रीय अंतरराष्ट्रीय अनुदान भी प्राप्त करती है लेकिन कार्य दो कोड़ी का नहीं। जरूरत है हमारी मानसिकता बदलने की तभी इस दिशा में सकारात्मक बदलाव होगा।
(एस.सी.के. सूर्योदय)

SCK Suryodaya 
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