Tuesday, 26 June 2018

नशे में भविष्य

आज नशीले पदार्थों के दुरूपयोग विरूद्ध अंतर्राष्ट्रीय दिवस है। जो पूरे विश्व में मनाया जाता है लेकिन क्या एक दिन इस दिवस को मना लेने से नशे के आदी व्यक्ति को ये बात समझ में आ जाती है कि यह नशा उसके जीवन का ही नाश नहीं कर रहा वरण परिवार, समाज, देश की उन्नती के लिए भी घातक है।चलो जो भी हो एक दीन की मेहनत शायद कुछ रंग लाए और किसी नसेड़ी की को ये बात जम जाए कि नशा जीवन का नाश करता है। 
उड़ता पंजाब फिल्म तो सभी को याद है जो पंजाब ही नहीं पूरे देश में चर्चा का विषय रही है। फिल्म के निर्देशक अभिषेक चौबे ने फिल्म में पंजाब में युवा आबादी द्वारा नशीली दवाओं के दुरुपयोग और उससे जुड़े विभिन्न षड्यंत्रों के का सजीव चित्रण किया है। अगर किसी युवा ने इस  फिल्म को अभी तक नहीं देखा तो एक बार जरूर देख ले। कहा जाता है जिस तरह कश्मीर आंतक से जुझ रहा है उसी तरह पंजाब नार्को टेरर से जुझ रहा है। ड्रग मािफया के लिए पंजाब स्वर्ण नगरी कही जा सकती है। क्योकि यहां के स्कूल, कॉलेज के बच्चों में ड्रग्स और शराब पीना आम दृश्य हो चुके है। कहा जाता है पंजाब मेंं ड्रग्स की समस्या है ही नहीं क्योकि यहां ड्रग्स हर कहीं उपल्ब है और इसी समस्या पर आधारित उड़ता पंजाब की पटकथा है। पाकिस्तान  से मादक पदार्थो की खेपे पंजाब एवं राजस्थान के रास्ते पुरे देश में जाती है। पाकिस्तान का तो मकसद ही यही है कि यहां के युवा को इसकी लत में लगा दिया जाए ताकि भारत अंदर से खोखला होता जाए। पर हमारे देश का होनहार जवान यह समझने को तैयार नहीं। और इसमें कोई दो राय नही है कि देश के ही लोग सिमा पार से इन मादक पदार्थो के खेपे मंगवाते है जिसमें सेना और पुलिस भी शामिल है।
नशा समाज में किसी भी रूप में घातक ही है। फिर कैसे  युवाओं के दम पर 2020 तक दुनिया की ‘आर्थिक महाशक्ति’ बनाने का दावा सरकारे कर रही है। सरकारें युवाओं के बल पर भारत विकास की बात करती है लेकिन दुर्भाग्य से यही युवा नशीलीं दवाईयों की गिरफ्त में है। ये नशा युवाओं के साथ बच्चों तक को अपना शिकार बनाता जा रहा है। नशाखोरी की समस्या से देश का हर राज्य से जूझ हैं। एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में नशीली दवाओं के कारोबार में पांच गुना ( 455 फीसदी ) वृद्धि दर्ज की गई है। जिसमें मिजोरम पहले स्थान पर है। मिजोरम में पिछले चार सालों में करीब 50,300 टन नशीली दवाइयां जब्त की गई हैं। इसके बाद दूसरे नम्बर पर पंजाब है। करीब 40,600 टन नशीली दवाईयां बरामद की गई हैं। इन नशीली दवाइयों में गांजा, भांग, कोकीन, इफेड्रिन,चरस , हेरोइन और अफीम जैसी अन्य खतरनाक दवाइयां शामिल हैं।   कई दवा विक्रेता अधिक मुनाफा कमाने के चक्कर में युवाओं को प्रतिबंधित दवाइयां व कैप्सूल बेचते हैं। और ये सब आसानी से मेडिकल स्टोर पर भी उपलब्ध हो जाते है। नशे की बढ़ती लत भारत के भावी भविष्य के लिए गंभीर चिंता का विषय है।
अब जब भारत देश की आबादी 1 अरब 36 कराेड़ है जिसमें से करीब 20 करोड़ की आबादी मादक पदार्थो की गिरफ्त में है। आंकड़े बताते है कि सिगरेट पिने के मामले में भारत पूरी दूनियां में दुसरे स्थान पर है। वर्ष 2001 किए गए सर्वेक्षण में सामने आया है कि लगभग 7 करोड़ लोग शराब और मादक द्रव्य का सेवन करते थे। लाखों करोड़ो रूपए केवल विज्ञापनों में खर्च करने वाली सरकारें वास्तविक धरातली कार्य कुछ भी नहीं कर पा रही है क्योकि उत्पादन और बिक्री जब तक होती रहेगी, इसे रोक पाना असंभ ही है।
यदि नशे की समस्या इतनी विकराल ना होती तो शायद आज 26 जून नशीले पदार्थों के दुरूपयोग विरूद्ध अंतर्राष्ट्रीय दिवस के रूप में मनाने की जरूरत नहीं होती। देखने में आया है कि जहां प्रतिबंधन होता है वहीं उस चिज का खजाना होता है। राष्ट्रीय अपराध ब्यूरो के आंकड़े बताते है कि इस नशे के कारण सबसे ज्यादा आत्महत्याएं महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, तमिलनाडु और केरल में होती हैं। नशे की लत युवा वर्ग में तेजी से फ़ैल रही है। एक रिपोर्ट के अनुसार  महज 16 से 35 युवा ही इस लत में फंसे है।
मादक पदार्थो का सेवन करने वाला ये वर्ग कई बार दिखावे के कारण या कुछ ड्रग माफिया की चाल में फंसकर इस लत में पड़ जाता है। क्योकि ये माफिया प्रारंभ में इन बच्चों को मुफ्त में मादक पदार्थो को उपलब्ध कराता है ताकि आगे बड़ा लाभ हो और जब इस नशे की लत लग जाती है तो उसका जीवन बर्बाद होना निश्चित ही है। नशीली दवाईयों के आिद होने के पश्चात इसकी ऐसी लत लग जाती है कि इसके डोस के लिए युवा कुछ भी कर गुजरता है फिर चाहें इसे खरीदने की किमत चोरी हो या डाका या किसी की जिंदगी। देश में अधिकांश अपराधों का जन्मदाता ये मादक नशा ही है। जो महंगें नशे की किमत नहीं चुका पाता वो  फेविकोल, तरल इरेज़र, पेट्रोल, आयोडेक्स, वोलिनी जैसी दवाओं को सूंघकर नशा करता है। गलत संगती के चलते आज का युवावर्ग गुटखा, सिगरेट, शराब, गांजा, भांग, अफीम और धूम्रपान सहित चरस, स्मैक, कोकिन, ब्राउन शुगर की लत में पड़ जाता है। ये सभी जानते है नशे करने के लिए उपयोग में लाई जानी वाली सुइयाँ एच.आई.वी. का कारण भी बनती हैं लेकिन फिर भी ये वर्ग नहीं मानता।
मादक पदार्थो के आिद लोगो में मानसिक असंतुलन आम बात है। ऐसी अवस्था को जानना माता-पिता और अभिभावकों के लिए अतिआवश्यक है कि उनका बच्चें की संगती किसके साथ है। कही उनका लाल अपनी जीवन लीला समाप्त तो नहीं कर रहा है। कुछ युवा ये सोचते है कि शराब या अन्य नशा करने से वो तनाव से दूर हो जाते है। ये केवल उनका भ्रम है किसी भी समस्या का हल नशा नहीं है। युवा अपने तथा देश के भविष्य के लिए नशे का त्याग करें। यदि खुद इस लत से बाहर नहीं आ पा रहे है तो अपने माता-पिता से बात करे। नशामुक्ती केंद्र में जाए और अपना इलाज कराए। यह ना सोचे की अब देर हो चुकी है। यूंही इस जीवन को समाप्त ना करे।  जीवन अनमोल है इस जीवन को नशे की लत में तबाह ना करे। क्योकि ये नशा कुछ समय के लिए तो तनावमुक्त कर देगा लेकिन यह नश जीवन भर के लिए आपको तनाव से तृप्त कर देगा। इसलिए बेहतर होगा इसका त्याग करने का संकल्प ले।                        
(एस.सी.के. सूर्योदय)

 SCK Suryodaya 
Reporter & Social Activist
sck.suryodaya@gmail.com

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