किसी भी तरह की मानसिक, शारीरिक या यौन प्रताड़ना या ऐसे किसी काम के लिए मजबूर करना, जिससे मानवीय गरिमा प्रभावित होती है। इसके अलावा बोलकर या लिखकर चिढ़ाना, खराब बर्ताव करना, बेइज्जती करना, डर पैदा करना, धमकी देना, चोट पहुंचाना, कमरे में बंद करना आदि घटनाएं रैगिंग की कैटिगरी में आती हैं।
सिनियर्स अपने मान के लिए किसी जूनियर्स का अपमान करने से नहीं चुकते लेकिन मान तो मान होता है । इसलिए रेगिंग किसी भी मायने में सही नहीं है, यह अपराध की श्रेणी में ही आता है। रेगिंग एक कानुनन अपराध है, कि तख्ती हर कॉलेज में लटकी नजर आती है तो क्या इस तख्ती पर लीखे कुछ शब्दों से भवभीत होकर सिनीयर, जूनियर की रेगिंग लेना बंद कर चुके है?,,, नहीं,,, रेगिंग फिर भी जारी है। सामान्यत: कॉलेजों में रेगिंग बंद हो चुकी है लेकिन मेडिकल कॉलेजों में रेगिंग नाम का वायरस अभी भी अपनी जड़े जमाये बैठा है। कॉलेज मेनेजमेंट और टिचर स्टॉफ की सख्ती के कारण कुछ हद तक रेगिंग कम हुई है पर पूर्णत: नहीं। कई कॉलेजों में एंटीरेगिंग कमेटी के लोग ही रेगिंग लेते पाये गए है। सिनियर छात्र जूनियर छात्रों का शारीरीक व मानसीक रूप से शौषण करते रहते है। उनका व्यहार जूनियर के प्रति कभी भी सम्मान जनक नहीं रहा। वे जूनियर को डराते है, धमकाते है, अपमानीत करते है, इन्हें केवल अपने मान की पड़ी रहती है, दूसरों के मान की धज्जीयां उड़ाने की इनकी आदत सी हो गई है। जूिनयर को किसी भी नाम से पूकारना, बैवजह रोककर रखना, अपने काम करवाना, 90 डिग्री तक झूकाकर सलाम करवाना अपनी आदत में शुमार है और रेगिंग का यह स्तर कभी-कभी इतना गिर जाता है कि इंसानियत चिख-चिख कर दम तोड़ देती है। कभी मूर्गा बना दिया जाता है तो कभी-कभी उतार दिए जाते है कपड़ेें। अश्लील बातें बुलवाने को मजबूर करते ये सिनीयर छात्र जूनियर छात्रों को एक ऐसे मानसीक दबाव में पहुंचा देते है जहां आत्महत्या करने का फेसला चंद मिनटों में हो जाता है। दूसरों के भविष्य और जिवन से खलवाड़ करने वालें इन अभिमािनयों को काेनसी सजा दी जानी चािहए ये मैं अपने भारत राष्ट्र के संविधान पर निर्भर है।
कॉलेज का पहला दिन:
कॉलेज का पहला दिन किसे याद नहीं रहता वो भी मेडिकल कॉलेज का, पहले ही दिन सिनियर्स द्वारा जूनियर की क्लास ली जाती है और निम्न हिदायते दे दी जाती है।
-सभी जूनियर्स ड्रेस कोड का पालन करेंगें।
-सिनीयर्स कही भी मील जाये झुककर अभीवादन करें।
-नजरें हमेशा नीची रखे।
-सेवींंग बनी हुई, सिर के बॉल छोटे।
-लड़कियां रिबन बांधकर आये।
-कोई सवाल-जवाब नहीं।
-जो हम कहें वो करना होगा।
सुनीता (परिवर्तित नाम) को सिनीयर्स छात्र ने कहा “अपने बाल कटवा लेना” लम्बें बाल वाली जूनियर छात्र ने ना कहा तो सिनियर छात्र ने एक चाटा जड़ दिया।
नाम जानना:
यहां सिनीयर्स का नाम पुछना भी गुनाह ही माना जाता है। यदि जूनियर पूछता है, “सर क्या मैं आपका नाम जान सकता हूॅ” तो निम्न शब्द सुनने का मीलते है:
-क्यों,,, तु मुझे नहीं जानता?
-सिनीयर्स से उसका नाम पूछेगा?
-जा मेरा नाम पता लगाकर आ?
-जा पहले नाम पूछने का तरिका जानकर आ?
-क्या करेगा, नाम जान कर?
-कम्प्लेन करेगा क्या?
-बड़ा आया नाम जानने वाला? पहले थप्पड़ खा,,, डर के कारण फिर जूनियर सिनीयर के सामने जाने से भी कतराते है। केंटींग और लाईब्रेरी में जाने से भी डरते है और यदि वहा अकेला चला जाये तो फिर समझों बकरा हलाला।
बकरा हलाल:
ऐ इधर आ,,, क्यों विस करना नहीं है, थोड़ा और झुककर, अबे क्या नाम है तेरा छछुंदर? कहा का है?,,
बटन लगा,,, हंस क्यों रहा है,,, गाना आता है?, चल गा कर बता। चल गाना बाद में पहले नांच कर बत,,,, इतने सारे सवालों को सुनकर वो घबरा ही जाता है और कुछ ना कुछ गड़बड़ कर ही देता है। और फिर जरूर मार खाता है, और सिनियर्स यहां उसे अपमानीत करने में कोई कसर नहीं छोड़ते। जूनियर की क्लास में सिनियर्स जब भी आते है तो जूनियर्स के चहरें पर हवाईयां उड़ने लगती है। इनका विरोध करने की किसी में हिम्मत नहीं होती और जो हिम्म्त दिखाता है वाे अकेला ही खाता है। यहां सिनीयर्स अपने मान की चाहत में जूनियर छात्रों का अपमान करने से नहीं चुकते । ये एक केवल मान-सम्मान की बात नहीं यहां एक मानसिक प्रताड़ना है जिसकी टिस जिन्दगी के कई मायने बदल देती है। कभी-कभी यही प्रताड़ना आत्महत्या के की और अग्रसर कर देती है। रैगिंग अपराध निषेध विनियम का तृतीय संशोधन कॉलेजों में लागू किया जा चुका है। 29 जून को राजपत्र में प्रकाशित अधिसूचना के अनुसार विश्वविद्यालय अनुदान आयोग अधिनियम 1958 (3 का 1956) के अनुच्छेद 26 के उप-अनुच्छेद (1) की धारा (जी) के अंतर्गत प्रदत्त अधिकारों के निष्पादन के लिए आयोग ने कुछ नए विनियमों का सृजन किया गया है। अब किसी भी छात्र को टारगेट कर रंग, प्रजाति, धर्म, जाति, जातिमूल, लिंग (उभय लिंगों समेत) लैंगिक प्रवृत्ति, बाह्य स्वरूप, राष्ट्रीयता, क्षेत्रीय मूल, भाषा वैशिष्ट्य, जन्म निवास स्थान या आर्थिक पृष्ठभूमि के आधार पर शारीरिक या मानसिक प्रताड़ना का कृत्य रैगिंग माना जाएगा।
रैगिंग होने पर अपने संस्थान के हेड को फोन करें या लिखित में सूचित करना बेहतर रहता है। अगर यहां कार्रवाई न हो तो आप यूजीसी की ऐंटि-रैगिंग सेल के टोल फ्री नंबर पर तत्काल टोल 1800 - 180 - 5522 पर अपनी शिकायत दर्ज करें या Helpline@Antiragging.In पर ई-मेल कर सकते है। शिकायत सही पाये जाने पर सिनीयर्स की खेर नहीं, अपराधी को इंस्टिट्यूट व हॉस्टल से सस्पेंड या टर्मिनेट किया जा सकता है तथ अगामी रिजल्ट पर रोक लगाई जा सकती है। अपराध सिद्ध होने पर 25 हजार से लेकर एक लाख रुपए तक का जुर्माने के साथ सजा भी हो सकती है।
अंत में रेगिंग किसी भी मायने में सही नहीं है इस पर लगाम लगाना अतिआवश्यक है किसी के लिए उसका मान ही उसका जिवन होता है और जहां मान नहीं होता वहां उसका स्वाभीमान उसे वहां का रहने नहीं देता है। और सिनियर्स भी यह जान ले जहां दबाव होता है, भय होता है, वहां सम्मान नहीं होता है।
SCK Suryodaya
सिनियर्स अपने मान के लिए किसी जूनियर्स का अपमान करने से नहीं चुकते लेकिन मान तो मान होता है । इसलिए रेगिंग किसी भी मायने में सही नहीं है, यह अपराध की श्रेणी में ही आता है। रेगिंग एक कानुनन अपराध है, कि तख्ती हर कॉलेज में लटकी नजर आती है तो क्या इस तख्ती पर लीखे कुछ शब्दों से भवभीत होकर सिनीयर, जूनियर की रेगिंग लेना बंद कर चुके है?,,, नहीं,,, रेगिंग फिर भी जारी है। सामान्यत: कॉलेजों में रेगिंग बंद हो चुकी है लेकिन मेडिकल कॉलेजों में रेगिंग नाम का वायरस अभी भी अपनी जड़े जमाये बैठा है। कॉलेज मेनेजमेंट और टिचर स्टॉफ की सख्ती के कारण कुछ हद तक रेगिंग कम हुई है पर पूर्णत: नहीं। कई कॉलेजों में एंटीरेगिंग कमेटी के लोग ही रेगिंग लेते पाये गए है। सिनियर छात्र जूनियर छात्रों का शारीरीक व मानसीक रूप से शौषण करते रहते है। उनका व्यहार जूनियर के प्रति कभी भी सम्मान जनक नहीं रहा। वे जूनियर को डराते है, धमकाते है, अपमानीत करते है, इन्हें केवल अपने मान की पड़ी रहती है, दूसरों के मान की धज्जीयां उड़ाने की इनकी आदत सी हो गई है। जूिनयर को किसी भी नाम से पूकारना, बैवजह रोककर रखना, अपने काम करवाना, 90 डिग्री तक झूकाकर सलाम करवाना अपनी आदत में शुमार है और रेगिंग का यह स्तर कभी-कभी इतना गिर जाता है कि इंसानियत चिख-चिख कर दम तोड़ देती है। कभी मूर्गा बना दिया जाता है तो कभी-कभी उतार दिए जाते है कपड़ेें। अश्लील बातें बुलवाने को मजबूर करते ये सिनीयर छात्र जूनियर छात्रों को एक ऐसे मानसीक दबाव में पहुंचा देते है जहां आत्महत्या करने का फेसला चंद मिनटों में हो जाता है। दूसरों के भविष्य और जिवन से खलवाड़ करने वालें इन अभिमािनयों को काेनसी सजा दी जानी चािहए ये मैं अपने भारत राष्ट्र के संविधान पर निर्भर है।
कॉलेज का पहला दिन:
कॉलेज का पहला दिन किसे याद नहीं रहता वो भी मेडिकल कॉलेज का, पहले ही दिन सिनियर्स द्वारा जूनियर की क्लास ली जाती है और निम्न हिदायते दे दी जाती है।
-सभी जूनियर्स ड्रेस कोड का पालन करेंगें।
-सिनीयर्स कही भी मील जाये झुककर अभीवादन करें।
-नजरें हमेशा नीची रखे।
-सेवींंग बनी हुई, सिर के बॉल छोटे।
-लड़कियां रिबन बांधकर आये।
-कोई सवाल-जवाब नहीं।
-जो हम कहें वो करना होगा।
सुनीता (परिवर्तित नाम) को सिनीयर्स छात्र ने कहा “अपने बाल कटवा लेना” लम्बें बाल वाली जूनियर छात्र ने ना कहा तो सिनियर छात्र ने एक चाटा जड़ दिया।
नाम जानना:
यहां सिनीयर्स का नाम पुछना भी गुनाह ही माना जाता है। यदि जूनियर पूछता है, “सर क्या मैं आपका नाम जान सकता हूॅ” तो निम्न शब्द सुनने का मीलते है:
-क्यों,,, तु मुझे नहीं जानता?
-सिनीयर्स से उसका नाम पूछेगा?
-जा मेरा नाम पता लगाकर आ?
-जा पहले नाम पूछने का तरिका जानकर आ?
-क्या करेगा, नाम जान कर?
-कम्प्लेन करेगा क्या?
-बड़ा आया नाम जानने वाला? पहले थप्पड़ खा,,, डर के कारण फिर जूनियर सिनीयर के सामने जाने से भी कतराते है। केंटींग और लाईब्रेरी में जाने से भी डरते है और यदि वहा अकेला चला जाये तो फिर समझों बकरा हलाला।
बकरा हलाल:
ऐ इधर आ,,, क्यों विस करना नहीं है, थोड़ा और झुककर, अबे क्या नाम है तेरा छछुंदर? कहा का है?,,
बटन लगा,,, हंस क्यों रहा है,,, गाना आता है?, चल गा कर बता। चल गाना बाद में पहले नांच कर बत,,,, इतने सारे सवालों को सुनकर वो घबरा ही जाता है और कुछ ना कुछ गड़बड़ कर ही देता है। और फिर जरूर मार खाता है, और सिनियर्स यहां उसे अपमानीत करने में कोई कसर नहीं छोड़ते। जूनियर की क्लास में सिनियर्स जब भी आते है तो जूनियर्स के चहरें पर हवाईयां उड़ने लगती है। इनका विरोध करने की किसी में हिम्मत नहीं होती और जो हिम्म्त दिखाता है वाे अकेला ही खाता है। यहां सिनीयर्स अपने मान की चाहत में जूनियर छात्रों का अपमान करने से नहीं चुकते । ये एक केवल मान-सम्मान की बात नहीं यहां एक मानसिक प्रताड़ना है जिसकी टिस जिन्दगी के कई मायने बदल देती है। कभी-कभी यही प्रताड़ना आत्महत्या के की और अग्रसर कर देती है। रैगिंग अपराध निषेध विनियम का तृतीय संशोधन कॉलेजों में लागू किया जा चुका है। 29 जून को राजपत्र में प्रकाशित अधिसूचना के अनुसार विश्वविद्यालय अनुदान आयोग अधिनियम 1958 (3 का 1956) के अनुच्छेद 26 के उप-अनुच्छेद (1) की धारा (जी) के अंतर्गत प्रदत्त अधिकारों के निष्पादन के लिए आयोग ने कुछ नए विनियमों का सृजन किया गया है। अब किसी भी छात्र को टारगेट कर रंग, प्रजाति, धर्म, जाति, जातिमूल, लिंग (उभय लिंगों समेत) लैंगिक प्रवृत्ति, बाह्य स्वरूप, राष्ट्रीयता, क्षेत्रीय मूल, भाषा वैशिष्ट्य, जन्म निवास स्थान या आर्थिक पृष्ठभूमि के आधार पर शारीरिक या मानसिक प्रताड़ना का कृत्य रैगिंग माना जाएगा।
रैगिंग होने पर अपने संस्थान के हेड को फोन करें या लिखित में सूचित करना बेहतर रहता है। अगर यहां कार्रवाई न हो तो आप यूजीसी की ऐंटि-रैगिंग सेल के टोल फ्री नंबर पर तत्काल टोल 1800 - 180 - 5522 पर अपनी शिकायत दर्ज करें या Helpline@Antiragging.In पर ई-मेल कर सकते है। शिकायत सही पाये जाने पर सिनीयर्स की खेर नहीं, अपराधी को इंस्टिट्यूट व हॉस्टल से सस्पेंड या टर्मिनेट किया जा सकता है तथ अगामी रिजल्ट पर रोक लगाई जा सकती है। अपराध सिद्ध होने पर 25 हजार से लेकर एक लाख रुपए तक का जुर्माने के साथ सजा भी हो सकती है।
अंत में रेगिंग किसी भी मायने में सही नहीं है इस पर लगाम लगाना अतिआवश्यक है किसी के लिए उसका मान ही उसका जिवन होता है और जहां मान नहीं होता वहां उसका स्वाभीमान उसे वहां का रहने नहीं देता है। और सिनियर्स भी यह जान ले जहां दबाव होता है, भय होता है, वहां सम्मान नहीं होता है।
SCK Suryodaya
Reporter & Social Activist
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