नज़र हर पल ढुण्डती है,,,
ना जाने किसकी इसे तलाश है,,,
दूनियां में अपनों की कमी नहीं,,,
पर फिर भी,
कोई अपना क्यों लगता नहीं,,,
दोस्त भी दोस्त जैसे अब रहे नही,
ऐ वीर अपनों को,,,
पहचाने भी तो अब कैसे,,,
सब सच्चे से लगते है,,,
चहरे पर चहरा अपने भी,,,
लगाए बैठे है,,,
SCK Suryodaya
Reporter & Social Activist
ना जाने किसकी इसे तलाश है,,,
दूनियां में अपनों की कमी नहीं,,,
पर फिर भी,
कोई अपना क्यों लगता नहीं,,,
दोस्त भी दोस्त जैसे अब रहे नही,
ऐ वीर अपनों को,,,
पहचाने भी तो अब कैसे,,,
सब सच्चे से लगते है,,,
चहरे पर चहरा अपने भी,,,
लगाए बैठे है,,,
SCK Suryodaya
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