Saturday, 16 December 2017

गमों का समन्दर

खुशियों के आंशु यहां मिलते नहीं है,
गमों का समन्दर क्यों सूखता नहीं है,,,

अंधेरों का शौर यहां सुनाता नहीं है,
चाहत के मोती क्यों चमकते नहीं है,,,

देखूं तुझे मैं बस ईक हसरत यहीं है,
नज़ारों में शामिल अब तु क्यों नहीं है,,,

मुझे अपना बनाकर दुश्मन माना है,
गैरों पर तेरा अब क्या ऐतबार सही है,,,

जुदाई की सांसे अब थमती नहीं है,
मिलन का मोषम क्यों बनती नहीं है,,,

सांसें है पर अब 'वीर' ज़िन्दा नहीं है,
धड़कता है दिल पर क्यों ज़ान नहीं है,,,

तमन्नायें इश्क़ की फ़िर मुर्झा रही है,
मोहब्बत की कसमें क्यों याद नहीं है,,,

इश्क़ हो ज़िन्दा तो ऐतबार भी कर ले,
तु देख ज़रा क्या तेरा रूठना सही है,,,

खुशियाँ माँगू खुदा से दुवा भी यही है,
मेरी दुनियां तु और कुछ याद नहीं है,,,

कभी एक थे ज़ान एक ही रही मंजिल,
हमसफ़र अब क्यों संग चलती नहीं है,,

तेरे बिना शानों-शौकत ना चाहूँ ज़न्नत,
बस तुम आ जाओ तो सब कुछ यहीं है,,,

लबों से लागा लूं पर तस्वीर भी नहीं है,
है अब बरसो के बादल यादें धुंधली है,,,

खुद को तुझमें ऐ ज़ान मिटाने चला हूं,
दर्द की आग अब जो बुझती नहीं है,,,

खुशियों के आंशु यहां मिलते नहीं है,
गमों का समन्दर क्यों सूखता नहीं है,,,

SCK Suryodaya
Reporter & Social Activist
sck.suryodaya@gmail.com
Cell: 7771848222
www.angelpari.com
RV Suryodaya Production

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