वो कुछ शब्द थे, जो निशब्द से रहे,,,
वो टूट कर बिखरे, आवाज ना बन सके,,,
सबकुछ मन में रहे, लब्ज़ ना बन सके,,,
कहता मैं किससे, अर्थ कोई ना समझे,,,
वो बेगाने से निकले, जो थे कभी अपने,,,
कुछ रिश्तेदार तो है, पर रिश्तें ना बचे,,,
दोस्त तो बहुत है, कोई खास ना रहे,,,
सब जख्म ही बने, मरहम कोई ना थे,,,
दिल से सब खेले, अब हिरराँझा ना रहे,,,
हमारे वो साथ थे, लेकिन पास ना रहे,,,
फिर तुम तुम ना रहे, तो हम हम ना रहे,,,
तुम हमारे ना रहे, तो हम भी तुम्हारे क्यों रहें,,,
SCK Suryodaya
Reporter & Social Activist
बहुत खूबसूरत सृजन किया गया है आपके द्वारा आदरणीय।। ईश्वर आपकी कलम को ताकत दे।। बहुत बहुत बधाई एवं शुभकामनाएँ आपको भाई
ReplyDeleteधन्यवाद शजर साहब,,,
Deleteबहुत खूबसूरत सृजन किया गया है आपके द्वारा आदरणीय।। ईश्वर आपकी कलम को ताकत दे।। बहुत बहुत बधाई एवं शुभकामनाएँ आपको भाई
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