Monday, 25 December 2017

अब मुनासिब नही,,,

ढ़ुण्डने जब चला,
आशिकी को मेरी,,,
मुझे जो मिली,
मेरी ना रही,,,

मेरी चाहत पर,
जमाने की नज़र जो लगी,,,
पास थी वो मेरे,
पर दूरिया सदियों सी मिली,,,

ढ़ुण्डता फिरा,
जो कभी सिर्फ थी मेरी,,,
अंजान बनकर जब,
वो पलट जो गई,,,

अरमा टूटकर बिखरे,
जब बेवफ़ाई उसने की,,,
ढ़ुण्डने जब चला,
आशिकी को मेरी,,,

मुझे जो मिली,
मेरी ना रही,,,
चांहू उसे मैं,
अब मुनासिब नही,,,
Continue,,,,

SCK Suryodaya 
Reporter & Social Activist
sck.suryodaya@gmail.com
Cell: 7771848222
www.angelpari.com
RV Suryodaya Production

4 comments:

  1. वाहहहह वाहहह क्या बात है भाई ।। बहुत खूबसूरत सृजन किया गया है आपके द्वारा ।। बहुत बहुत बधाई एवं शुभकामनाएँ आपको ।

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    1. धन्यवाद शजर साहब,,,

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