Wednesday, 11 July 2018

विनाश की ओर (विश्व जनसंख्या दिवस)

“हम दो हमारे दो”  का नारा केवल दिवारों और रेलियाें में ही सुनने को मिलते है। अगर ये विचार हर कोई अपना लेता तो शायद आज आजादी के बाद से भारत की जनसंख्या 33 करोड़ ही रहती। आज विश्व जनसंख्या  दिवास है और विश्व की जनसंख्या 7 अरब 63 करोड़ से उपर विष्फोटित हो चुकी है।
देश वैसे ही भ्रस्टाचार की वेदी पर अपना विकास रखे हुवे है, ऐसे में जनसंख्या वृद्धि चिंता का विषय है। देखने में आया है कि जहाँ घर परिवार में बच्चों की संख्या अधिक होती है उस परिवार में बच्चों की शिक्षा का स्तर निम्न हो जाता है लेकिन वही जब हम ऐसे परिवार की बात करते है जिसमें एक या दो बच्चें हो उन बच्चों की परवरिश के साथ शिक्षा का स्तर भी बेहतर होता है, यहां बच्चो की अन्य चाहतों को भी अच्छे से पूर्ण किया जाता है वहीं बच्चों की पलटन बनाने वाले परिवारों की आर्थिक स्थति उतनी अच्छी नही होती कि वो इस पलटन का ठीक से लालन-पालन कर सके, यहां बच्चों को भगवान भरोसे बड़ा होने के लिये छोड़ दिया जाता है पड़ने-लिखने के उम्र में ये कामकाज पर लग जाते है।
       भारत के लड़के को कुल का दीपक कहा जाता है इसी सोच के कारण अधिकांश परिवारों में बच्चों की रेल चल पड़ती है। कई मामलों में कन्या भ्रूणहत्या के मामले इसी कुलदीपक की लालसा में होते है और कई परिवारों में इसी सोच की वजह से दो से लेकर आठ लड़कियों का जन्म हो जाता है और मुस्लिम परिवारों में यह संख्या और भी बढ़ जाती है या फिर भ्रूण हत्याएं होने लगती है। हाल ही में मध्यप्रदेश के देवास शहर में चंद्रा निर्सिंग हाेम का एम.टी.पी. पंजीयन निरस्त किया गया। कारण था पीसी एण्ड पी.एन.डी.टी. का उलंग्न। जांच में सामने आया कि एक वर्ष में यहां की डॉक्टर स्मिता दुबे ने 117 गर्भवतियों का गर्भपात करवाया जो सिर्फ इस बात की और साफ इशारा करता है कि यह सब बेटे चाह में हुआ क्योंकि अधिकांश गर्भपात 12 सप्ताह के भ्रूण के थे।  
       यदि बेटियों को ही कुलदीपिका मान लिया जाए तथा बेटी और बेटे के भेद को समाप्त कर दिया जाए तो बहुत हद तक जनसंख्या वृद्धि को रोका जा सकता है। विवाह के पश्चात दो लोग परिवार बनाते है अपने जीवनकाल में यदि एक या दो संतान का ही जन्म दे तो जनसंख्या का स्तर स्थिर हो जाएगा। कम से कम पड़े-लिखे लोगों को तो प्रण करना चाहिए कि लड़का हो या लड़की संतान एक ही अच्छी। बाकी जो अनपढ़ जाहिल है उन लोगो को समझाने का काम भी करना होगा तभी भारत सही मायनों में विकासशील देश बन पाएगा। केवल जनसंख्या बढ़ाने से कुछ नही होगा। जनसंख्या वृद्धि के कारण भुखमरी, बेरोजगारी, अशिक्षा में वृद्धि होती है जो किसी भी प्रगतिशील राष्ट्र के लिए घातक है। इसलिए इस विषय को गंभीरता से लेते हुवे आगे भी चर्चा करनी चाहिए।
       मोहम्मद बेल्लो अबुबाकर जिसका नाम हाल ही में सोशल मिडिया पर चर्चा का विषय रहा है जो एक मोलवी था। नाइजीरिया के इस शख्स की वर्ष 2017 में मृत्यु हो चुकी है। इस इंसान की 130 पत्नियां 203 बच्चे थे। यह सुनकर शायद किसी को ज्यादा आश्चर्य नहीं होगा पर इस बात पर सोचने पर मजबूर तो जरूर कर दिया कि जहां हर कोई हम दो हमारे दो के नारे पर अमल करने की सोच रहा है उस स्थिति में यह अकेला 203 बच्चों का पिता बना। विश्व में जनसंख्या विष्फोट का कारण इसी तरह के जाहिल लोग ही है जो बच्चों को उपरवाले की देन मानते है और बीवियाें को बच्चें पैदा करने की मशीन। ऐसे नासमझ लोगों के कारण ही देश गर्त में चला जाता है। युगांडा की रहने वाली मरियम 37 साल की उम्र में अब तक 38 बच्चों को जन्म दे चुकी है। 
       पाकिस्तान का सरदार जान मुहम्मद खिलजी की तीन बीवियां तथा 35 बच्चें है। उसका लक्ष्य है 100 बच्चों का पिता बनना इसके लिए वो चोथी बीवी की तलाश कर रहा है। भारत की बात करे तो मिजोरम के डेड जिओना जिसके परिवार में कुल 181 सदस्य है। इसकी  39 पत्नियाँ और 94 बच्चे, 14 बहुएँ और 33 पोते-पोतियाँ है। 
       वर्ष 2017 के आकंड़ो के अनुसार विश्व का एक ऐसा देश जो जिसकी जनसंख्या 1000 है और वर्ल्ड मेटर्स के रिकार्ड के अनुसार आज विश्व की जनसंख्या 7,635,077,191 है। इस साल 43 करोड़ की जनसंख्या वृद्धि हुई है। विश्व में सबसे अिधक जनसंख्या वाला देश चीन है जिसकी 11 जुलाई 2018 प्रात: 11 बजे जनसंख्या 1,415,197,400 है जो विश्व के 18.54  प्रतिशत है तथा विश्व में दूसरे नम्बर पर भारत है जिसकी जनसंख्या 1,354,460,600 है जो विश्व का 17.74 प्रतिशत है। एक नजर अगर जनसंख्या वृद्धि की और डालते है तो पता चलता है कि वर्ष 1804 में विश्व की कुल जनसंख्या 1 अरब, 1930 में 2 अरब, 1960 में 3 अरब, 1974 में 4 अरब, 1987 में 5 अरब, 1999 में 6 अरब, 2011 में 7 अरब।  यदि जनसंख्या के इस विष्फोट को अभी रोका नहीं गया तो वर्ष 2030 तक विश्व की जनसंख्या 8,382,005,834 पहुंच जाएगी तथा वर्ष 2045 तक 9,558,236,140 और  2050 तक 10 अरब हो जाएगी।
       अगर ऐसा होता है तो यकिन मानिए विश्व मानवता खतरे के निशान काे पार कर देगी। यह एक ऐसा समय होगा जब शायद यह जनसंख्या फिर बड़े ही नहीं क्योकि विश्व युद्ध शायद इससे पहले ही प्रारंभ हो चुके होगे। भलेही भारत विश्व में जनसंख्या के मामले में अपना दूसरा स्थान रखता हो पंरतु वह तीसरे नम्बर पर आने वाले यूनाइटेड स्टेट अमेरिका जिसकी जनसंख्या 326,830,60 है, का सामना नहीं कर सकता। वैसे आने वाले 7 वर्षो में भारत विश्व की सबसे ज्यादा आबादी वाला देश होगा। 
       1947 में भारत की जनसंख्या 33 करोड़ थी जो आज चार गुना से अधिक तक बढ़ गयी है।  वर्ष 2025 में भारत की अनुमानित जनसंख्या 1,451,829,004 तथा चीन की इसी वर्ष 1,438,835,697 होगी मतलब सिर्फ 7 वर्ष बाद भारत विश्व में  सबसे ज्यादा जनसंख्या वाला देश होगा। शायद भारत के लोगो के लिए ये गौरव की बात हो। लगता है भारत देश से अंग्रेज क्या गए यहां के लोगो को जैसे बच्चें पैदा करने की आजादी ही मिली हो। भारत के लोगो ने ये कोनसी रेस लगा रखी है समझ से परे है।  
       जनसंख्या वृद्धि आज लगभग हर उन्नत देश के लिए चिंता का विषय है जो आगे चलकर बहुत भयानक हो सकता है यहां तक की लोगो के पास खाने के लिए भोजन नही रहेगा। विश्व की जनसंख्या 1987 को 5 अरब पार कर गई थी तब युनाईटेड स्टेट द्वारा प्रतिवर्ष 11 जुलाई को विश्व जनसंख्या दिवस मनाने का निर्णय लिया गया ताकि इस विष्फोट की और सबकी नजर जा सके और इस समस्या के समाधान के लिए उचित कदम उठाए जा सके।  विश्व स्तर पर लिंगानुपात 107/100 है, औसत उम्र 69 जिसमें पुरूष 67 वर्ष, महिला 71 वर्ष। बताते चले की भारत में हर मिनट 34 बच्चे पैदा होते हैं। बेटी बेटा एक समान जैसी सोच के साथ ही इस समस्या का निराकरण संभव है। 
(एस.सी.के. सूर्योदय)

Reporter & Social Activist
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Sunday, 8 July 2018

रिश्ते और अाधुनिक पीढ़ी


रिश्तो की डोर से आज सम्पूर्ण मानव समाज एक सूत्र में बंधा हुआ है, इन्ही रिश्तों की बदोलत मानव के जीवन में लगातार खुशियों की बहारे आती रहती है। समाज में मोजूद हर रिश्ता मानव ने स्वयं आदिकाल में अपनी सुविधा के अनुसार भावनात्मक रूप से बनाया है। पर इन मानवीय रिश्तों की अहमीयत हर कोई नही समझ पा रहा है और जो समझ पाया है वो जिन्दगी को सही ढंग से आंनद के साथ जी रहा है।
रिश्तों में अपनत्व:
अपनत्व का रिश्ता दिल से है दिल ने जिस रिश्ते को स्वीकार कर लिया वहीं रिश्ता खुशी देता है। सभी रिश्तो में मौजूद अपनत्व ये विश्वास दिलाता है कि हम अकेले नहीं है हमारे साथ हमारे रिश्तेदारों का, दोस्तों का, हमारे चाहने वालों का प्यार है। उनकी शुभकामनाएं, उनका आशीर्वाद है। रिश्ते तभी मन को भाते है जब वे नि:स्वार्थ आपको अापको अपनत्व का अहसास देकर खुशियां देते रहे। जहां स्वार्थ की दूनिया बसने लगती है वहां अपनत्व का बसेरा उजड़ जाता है। खुशियां उस रिश्ते की टहनी पर नहीं बैठती जिस पर स्वार्थ के पुष्प खिल रहे हो व अविश्वास की पत्तीयां फल-फूल रही हो।
वर्तमान में रिश्तो की अनिवार्यता:
वर्तमान में अधिकांश रिश्ते अपनी पहचान के साथ अपना अपनत्व भी खोते जा रहे है। ये सब आधुनिकता की और साफ इशारा कर रहे है। एक दौर था जब गर्मियों की छुट्‌टीयां मामा के घर गुजर जाती थी जो भी कम पड़ती थी, नानी की कहानियां कम नही होती थी, मन मारकर भी मामी बहुत लाड़ करती थी व नाना के साथ उनके कार्यो में हाथ बटाने का मजा ही कुछ और होता था। पर अब तो आधुनिकता इतनी हो गई है िक गर्मीयों की छुट्टीयां बस घुमने-फिरने में गुजर जाती है। मामा-मामी नाना -नानी से विडियों कॉलिंग पर बात हो जाती है बस इसी में बच्चें खुश। अब तो नानी की कहानी कार्टून चेनल में बदल गई है।
नई पीड़ी के लोग कुछ सीिमत रिश्तों को ही स्वीकार करते है अन्य बहुत सारे रिश्ते उन्हे बनावटी ही लगते है। वह सोचता है इतने सारे रिश्तो को कब तक निभायेगा। क्योंकि अब उसके पास समय नहीं है वह तो कम रिश्तों के बीच ही अपना बहुमूल्य समय बिताना पसंद करता है। ये सब माता-पिता के द्वारा बढ़ाये गए संस्कार से ही अग्रसर है इसमें इस आधुनीक पीढ़ी का कोई दोष नहीं है।
आधुनिक पीढ़ी:
आज का युवा वैसे तो बहुत समझदार है वो हर परिस्थिति से निपट सकता है पर वो कभी-कभी हार जाता है क्योंकि उसके साथ उसके मित्रों और घर परिवारजनों का ऐसा व्यवहार रहता है कि दूनियां की इस भीड़ में खुद को अकेला महसूस करता है। ये परिस्थिति है जो आज के लगभग सभी युवाओं के साथ उत्पन्न होती है। ये आधुनिक पीढ़ी क्या चाहती है? क्या नहीं ये माता-पिता को जरूर समझना चाहिए।
बचपन हमेशा मुस्कान लिए होता है, क्योंकि बचपन रिश्तो में हमेशा अपनापन लिए होता है पर युवा पीढ़ी में ऐसा नहीं है उसका जीवन धूप-छांव की तरह होता है इस आयु तक वह सारे रिश्तों को गहराई से समझने लगता है। यहां उसमें एक नई उर्जा की उत्पत्ति होती है जो उसे साेचने-समझने और फिर उसे करने की शक्ति देती है।
आज के युवा की चाहत:
आज का युवा चाहता है कि उसकी बात को सुना जाए, समझा जाए, उसके विचारों का स्थान दिया जाए। बेवजह की बाते उस पर थोपी ना जाए। उसे अपने फैसले स्वयं करने की स्वतंत्रता दी जाए। यहां माता-पिता को समझना होगा कि अब उनका बच्चा बड़ा हो गया है तो उन्हें उसके भले बुरे कि चिंता उसे ही करने देनी चािहए। क्योकि अब ये समय उसे समझाने की नहीं है जो समझना था उसने समझ लिए अब तो बस उसे स्वतंत्रता का अनुभव करने दे। उसे हर छोटी बात पर डांटना, टोकना अच्छी बात नहीं। चूकिं युवा परिवर्तन चाहता है, समाज के वो पूराने रितीरिवाजों और झूठे आडम्बरों का अस्वीकार करता है इसलिए उनसे ऐसी बात ना मनवाएं जिसकी कोई प्रमाणिकता नहीं। यदि माता-पिता उन्हें समझेंगे तो युवा भी उन्हें अपने अंदर चल रहे विचारों को कहने मे हिचकाएंगे नहीं। वैसे आज का युवा शिघ्र अपनें सपनों को पुरा होते देखना चाहता है इस कारण वो अधिकांश समय अपने लक्ष्य को पाने के प्रयास में लगाता है। युवाओं की ये एक बहुत अच्छ खाशियत है कि वो कुछ नया करना चाहता है। उसके नया करने की यही चाहत ही महत्वपूर्ण परिवर्तन लाती है। यदि वों सीमित दायरों में अपनी सोच को रखता है तो राष्ट्र के विकास में स्थिरता आने लगेगी। इसलिए चाहिए की युवाओं पर बैवजह किसी बोझ को ना डाले। लेकिन यहां युवाओं को भी समझना होगा कि कोई भी लक्ष्य अकेले हासील नहीं हो सकता। उसे पाने के लिए अपनों का सहयोग लेना ही पड़ता है। दूश्मन के हजारो सैनिक युद्ध मैदान में हो और हम अकेले ही युद्ध लड़ने पहुंच जाए तो ये मूर्खता नही तो और क्या होगी।
सफलता परिश्रम मांगती है:
कोई भी विशिष्ट व्यक्ति अपने जीवन में समय का सही उपयोग करता है वो कभी बेकार नहीं बेठता, उसमें हमेशा कुछ ना कुछ करते रहने की आदत होती है। निरंतर प्रयास की आपको लक्ष्य तक पहुंचा सकता है। सफलता हमेशा परिश्रम मांगती है। प्रथम स्थान तो खाली है, बस उस तक वहीं पहुंचता है जो उसके लायक है। इसलिए परिश्रम करें और तब तक करते रहे जब तक सफलता ना मिल जाए।
रिश्ते उत्प्रेरक होते है:
युवा जिंदगी को मुस्कान के साथ जीना चाहता है, यदि उसे गंभीर या उदास देखे तो उससे बात करने की कोशिश करे। उसे ऐसा लगना चािहए की आप हर मोड़ पर उनके साथ है। असफलताओं के कारण युवा अपने जीवन को सही ढंग से नहीं जी पाता और फिर अक्सर उसमें नकारात्मकता उसके जीवन का नाश कर देती है।
ऐसे समय में इस तरह के युवाओं को सच्चे मित्र की अब ही आवश्यकता होती है। इन्हें रिश्तों की अब जरूरत पड़ती है। ये रिश्ते यहां उत्प्रेरक का काम कर उस युवा को फिर से जीवन में संघर्ष करने के लिए उत्प्रेरित करते है। जो सक्रिय उत्प्रेरक है वो  उसके माता-पिता और करीबी रिश्तेदार या घनिष्ट मित्र। ऐसे हालात में जब उनका पुत्र या पुत्री जिदंगी से मायुस हो तब उन्हे निम्न बातों का विशेष ध्यान रखना चाहिए।
-वजह क्या है? उसे जाने और उनसे बात करें।
-उनसे हमेशा प्यार से बात करें।
-नुकसान होने पर उन्हें डांटे नहीं।
-उसे स्वतंत्रता दीिजए ताकि वह अकेले भी कुछ कर सकें।
-यदि वह असफल भी हो जाए तब भी उसे हौसला दीिजए और फिर से कोशिश करने को प्रेरित करें।
मित्र भी इस वक्त उसके सबसे करीब होने चाहिए। आखिर क्या हुआ? यह जाने हर उसकी तकलीफों में आप उसके साथ है यह भरोसा दिलाए। यदि यहां मित्र उसके साथ नहीं होगा तो वह प्रारंभीक बातें और किसी को नहीं बताएगा। आप ही पहल करें अौर जाने उसके मन में क्या चल रहा है।
युवा जब डिमोटिवेटेड होता है तब यदि मित्र या माता-पिता आगे नही आए तो कोई हादसा होना स्वभाविक है। कई बार छोटी बातों की कहासुनी से मित्र भी बाते करना बंद कर देते है। यदि मित्र ऐसा करेंगे तो उसके मन में जो चल रहा है वो कैसे कोई जान पाएगा। मित्र ही विकट परििस्थति में उसके काम आ सकते है। एेसे समय में यदि पहल नहीं की तो रिश्तो की डोर टूट जाएगी और खुशियांे के सारे मोती बिखर जाएंगे। आवश्यकता इस बात की है कि कोई जिद्दी ना बने, समझौता करना सीखे। माता-पिता अपने बच्चों से अपेक्षा रखे पर यह जरूरी नहीं की उनकी सारी अपेक्षाए पुर्ण हो।
आज का युवा विचारवान है। अाप उसके रहन-सहन, खाने-पिने, पहनावे पर पाबंधी न लगाएं क्योंकि उसमें जो परिर्वतन आया है, वह आधुनिकता का असर है, बस उसे थोड़ा समझाएं पर अति ना करे। वैसे नयापन जल्दी स्वीकारा नहीं जाता। जरूरत है थोड़ा आपको भी युवा बनने की। हर युवा कुछ खास करना चाहता है वह अपनी दुनियां में खुशी चाहता है। सपनों की दुिनया को साकार करना चाहता है। अत: उसे मार्गदर्शन करे और उसके अच्छे बुरे की पहचान करवाएं। तभी आप उसके सच्चे मित्र और माता-पिता साबित होंगे और युवा भी रिश्तों की जीवन में अनिवार्यता को समझे उन्हें बोझ ना समझे।
(एस.सी.के.  सूर्योदय)

 SCK Suryodaya 
Reporter & Social Activist
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Sunday, 1 July 2018

संतों की मति


गौतम बुद्ध, महावीर स्वामी, गुरूनानक देव एेसे चमत्कारी महापुरूष थे, जिन्होने संपूर्ण समाज को मानवता का पाठ पढाया और अपने ज्ञान के प्रकाश से सभी संसार वासियों को ऐसा ज्ञान उपलब्ध कराया जो आदि समय तक सबका मार्ग दर्शन करता रहेगा। इनकी गति और मति दोनो ही बस में थी जिस पर कोई दाग नहीं पर वर्तमान में  संतो की मति भोगविलास की और गतिमान है।

संत होते है समाज को सकारात्मक संदेश देने वाले जो सदाचारी होते है धार्मीक होते है, जिसे सांस्कारीक मोह माया से कोई मतलब नहीं होता है पर हाल ही में इंदौर में मार्डन संत भय्यू महाराज ने खुद को खोली मारकर आत्महत्या करने का मामला सामने आया। यह एक एेसी घटना है जिसने यह विचारने पर विवश कर दिया कि क्या वाकई एक संत को ऐसा करना चािहए जो कभी अपने अनुवाईयों के आदर्श रहा हो। एक पल के लिए यदि हम सोचते है तो यही सामने आता है कि वजह जो भी हो संतों को तो ऐसा नहीं करना चािहए क्योकि हकीकत में जो संत होता है वह समाज को मार्गदर्शक रहता है। वह अपनी देह का त्याग समाधी लेकर करता है। गुरू सत्य असत्य के भेद को जानता है, वह इश्वर का दूत है यह कहना अतिश्योक्ति नहींं होगी।
संत’ शब्द अर्थ है- साधु, संन्यासी, विरक्त या त्यागी पुरुष या महात्मा जिसे कोई मोह नहीं होता जो चमत्कारी होता है पर वर्तमान में जो घटनाएं हो रही है उसने संत की परिभाषा ही बदल दी है आज संत को देखते है तो भौतिक सुख-सुविधाओं में लिप्त, मोह-माया की तृष्णा लिए एेसा संत, महात्मा, बाबा, महाराज जो लम्बी कार में अपने काफिले के साथ कहीं प्रवचन देता है तो कहीं भागवत करता है तो कहीं अपने आश्रम में अपनी सेविकाओं के साथ रंगरलियां मनाता है। समाज को सदमती, सतगती प्रदान करने वाले ही अपनी मती को बस मे नहीं रख पा रहे है। शायद आज संतो की गती अपनी मती के कारण ही अनैतिक, अव्यवहारिक हो चली है।
संतो की विचारधारा को अपनाते हुए कई धार्मिक लोक सत्यमार्ग का चयन करते है। सामािजक सार्थक परिवर्तन करने वाला ही यदि अपने विचारों को अनैतिक गती प्रदान करेगा तो समाज का क्या होगा। आध्यात्मिक प्रवचन देने वाले आशाराम बापू की हकीकत जो सबके सामने है। कई शिष्यों को बाबा की यह करतुत जगजाहीर होने केे बाद समझ आई। हालांकि आज भी लाखों शिष्य उन पर लगे सभी आरोपों को षडयंत्र मानते है और कहते है बापू को एक साजिश के तहत फँसाया गया है। टाईम्स ऑफ इंडिया के सर्वे के मुताबिक आशाराम बापू के विश्वभर में भक्तों की संख्या 8 करोड़ के आसपास है व आश्रमों की संख्या 450 से अधिक है। जो भी हो करोड़ो लोगो के पूजनीय बापू अपनी ही नाबालिग शिष्याओं से दुराचार के केस में फिलहाल जोधपुर की जेल में उम्रकेद की सजा काट रहे है।
अगला नाम आता है डेरा सच्चा सोदा के गुरमीत राम रहीम सिंह इन्साँ का जो बलात्कार का दोषी करार दिया गया पर शिष्य इसे भी षडयंत्र मान रहे है। वैसे उनके अनुयाईयों के सामने रहीम की रासलीला की कई कहानियां निकल कर सामने आ रही हैं लेकिन  फिर भी शिष्यों को उन पर प्रगाड़ अंध विश्वास है जबकी गुरमीत राम रहीम सिंह इन्साँ  का घिनौना चेहरा बेनकाब होकर दुनिया के सामने आ चुका है। आिखर क्यों याेगी भोगी बन रहे है ऐसी कोनसी जीवन लालसा है जो सन्यास लेने के बाद भी सांसारीकता का त्याग नही करने दे रही है।
आज क्यों संत, बाबा, महात्मा भगवान के नाम का जाप कर घिनौनी हरकत कर रहा है। इन प्रश्नों का जवाब ये बाबा या संत खुद है। इसमें इन पाखंडियों का कोई दोष नहीं है। समाज भी ऐसे भाेगियों को संत महात्मा, गुरू मानकर उनकी चरण धोकर पीने को लम्बी कतार में खड़े होते है। क्या समाज संत की असली संतो को भुल गया है तो फिर ऐसे ही दुष्ट ढोंगी बाबाओं के चुंगल में ऐसे भक्त फंसते रहेंगे। दक्षिण भारत के नित्यानंद स्वामी की अश्लिल सिडी तक वायरल हो गई थी और कोन से सबुत चािहए अंध भक्तों को। प्रतापगढ़ के कृपालु महाराज पर लड़कियों के अपहरण और दुष्कर्म के मामले भी भक्तों को झुठे लगते है यहां तक की राधे माँ पर भी यौन शोषण के आरोप लग चुके है। एक और ढोंगी बाबा संत रामपाल जो आश्रम में साधिकाओं से शारीरिक संबंध भी बनाता था। इसके आश्रम से प्रेग्नेंसी किट और सेक्स पावर बढ़ाने वाली दवाइयां मिली थीं। हाल ही में एक और संत की काली करतुत सामने आई ये है शनिधाम के संस्थापक दाती महाराज जिस पर शायद शनि की महादशा प्रारंभ हो चुकी है इस पर 25 साल की लड़की ने दाती महाराज पर रेप का आरोप लगाया। जिन ढोंगी बाबाओं का पर्दाफास हो चुका है अब उनके आश्रमों में सन्नाटा है। आखिर इन्हें संत की उपाधी देता कौन है और इस प्रश्न का जवाब इन संतो के शिष्य ही दे सकते है।
कौन है सच्चें संत:
जो संत तो अपनी ही धुन में रहता है, उसके लिए ना कोई जाति ना कोई धर्म होता है, वह सिर्फ इंसानियत का पुजारी होता है और यही है सच्चें संत। एेसे ही संत है तुलसीदास, गुरूनानक देव, संत कबीर दास, संत रवि रैदास, एक नाथ, संत तुकाराम, संत नामदेव, संत समर्थ स्वामी, रामकृष्ण परमहंस, स्वामी विवेकानंद आदि कई संतो ने समाज अपनी वाणी से ऐसा ज्ञान दिया युगों युगों तक समाज में एकता मानवता का संदेश  हर इंसान में रहेगा बसर्ते वह किसी ढोंगी बाबाओं के चुंगल में न फंसा हो। ना जाने क्यों समाज का एक तबका इन नकली संतो या बाबाओं को अपना गुरू बनाकर उनकी पूजा करता है।
एक बार की बात है मैं देवास के टेकरी स्थित कबीर आश्रम में अपने परिचितों को लेेने पंहुचा तब वहां मंहत की आरती चल रही थी, कबीर पंथी उन महंत की आरती कर रहे थे, कोई पाद पूजा कर रहा था, उस वक्त मैं खामोशी के साथ अपने ध्यान में सच्चे ईश्वर को याद कर रहा था। मेरे द्वारा उनकी आरती ना करने पर भरी सभा में उन्होने मुझे खड़ा कर के कहा कि तु मेरा विरोध कर रहा है जबकि मेने किसी के कुछ भी नहीं कहां, उन्हे बस यह खल रहा था कि मैंने उनकी पाद पुजा नही है। इस घटना के बाद मैं कभी किसी के प्रवचन या सतसंग में नही गया क्योकि अपनी पुजा आरती का लालसी क्या ईश्वर का दूत होगा।
अब चुनाव समाज के ऐसे लोगो को खुद सोच समझकर करना है कि आदि सच्चें संतो की गती अपनाना है या और भी बचे ढोंगी संतों, बाबाओं के चुंगल में फंस कर अपनी बालिकाओं को इनके आश्रम में भेजकर उनकी भोग का निवाला बनाना है या खुद की भी मती ऐसे संतो की मती जैसा करना है।
(एस.सी.के. सूर्योदय)

 SCK Suryodaya 
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Tuesday, 26 June 2018

नशे में भविष्य

आज नशीले पदार्थों के दुरूपयोग विरूद्ध अंतर्राष्ट्रीय दिवस है। जो पूरे विश्व में मनाया जाता है लेकिन क्या एक दिन इस दिवस को मना लेने से नशे के आदी व्यक्ति को ये बात समझ में आ जाती है कि यह नशा उसके जीवन का ही नाश नहीं कर रहा वरण परिवार, समाज, देश की उन्नती के लिए भी घातक है।चलो जो भी हो एक दीन की मेहनत शायद कुछ रंग लाए और किसी नसेड़ी की को ये बात जम जाए कि नशा जीवन का नाश करता है। 
उड़ता पंजाब फिल्म तो सभी को याद है जो पंजाब ही नहीं पूरे देश में चर्चा का विषय रही है। फिल्म के निर्देशक अभिषेक चौबे ने फिल्म में पंजाब में युवा आबादी द्वारा नशीली दवाओं के दुरुपयोग और उससे जुड़े विभिन्न षड्यंत्रों के का सजीव चित्रण किया है। अगर किसी युवा ने इस  फिल्म को अभी तक नहीं देखा तो एक बार जरूर देख ले। कहा जाता है जिस तरह कश्मीर आंतक से जुझ रहा है उसी तरह पंजाब नार्को टेरर से जुझ रहा है। ड्रग मािफया के लिए पंजाब स्वर्ण नगरी कही जा सकती है। क्योकि यहां के स्कूल, कॉलेज के बच्चों में ड्रग्स और शराब पीना आम दृश्य हो चुके है। कहा जाता है पंजाब मेंं ड्रग्स की समस्या है ही नहीं क्योकि यहां ड्रग्स हर कहीं उपल्ब है और इसी समस्या पर आधारित उड़ता पंजाब की पटकथा है। पाकिस्तान  से मादक पदार्थो की खेपे पंजाब एवं राजस्थान के रास्ते पुरे देश में जाती है। पाकिस्तान का तो मकसद ही यही है कि यहां के युवा को इसकी लत में लगा दिया जाए ताकि भारत अंदर से खोखला होता जाए। पर हमारे देश का होनहार जवान यह समझने को तैयार नहीं। और इसमें कोई दो राय नही है कि देश के ही लोग सिमा पार से इन मादक पदार्थो के खेपे मंगवाते है जिसमें सेना और पुलिस भी शामिल है।
नशा समाज में किसी भी रूप में घातक ही है। फिर कैसे  युवाओं के दम पर 2020 तक दुनिया की ‘आर्थिक महाशक्ति’ बनाने का दावा सरकारे कर रही है। सरकारें युवाओं के बल पर भारत विकास की बात करती है लेकिन दुर्भाग्य से यही युवा नशीलीं दवाईयों की गिरफ्त में है। ये नशा युवाओं के साथ बच्चों तक को अपना शिकार बनाता जा रहा है। नशाखोरी की समस्या से देश का हर राज्य से जूझ हैं। एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में नशीली दवाओं के कारोबार में पांच गुना ( 455 फीसदी ) वृद्धि दर्ज की गई है। जिसमें मिजोरम पहले स्थान पर है। मिजोरम में पिछले चार सालों में करीब 50,300 टन नशीली दवाइयां जब्त की गई हैं। इसके बाद दूसरे नम्बर पर पंजाब है। करीब 40,600 टन नशीली दवाईयां बरामद की गई हैं। इन नशीली दवाइयों में गांजा, भांग, कोकीन, इफेड्रिन,चरस , हेरोइन और अफीम जैसी अन्य खतरनाक दवाइयां शामिल हैं।   कई दवा विक्रेता अधिक मुनाफा कमाने के चक्कर में युवाओं को प्रतिबंधित दवाइयां व कैप्सूल बेचते हैं। और ये सब आसानी से मेडिकल स्टोर पर भी उपलब्ध हो जाते है। नशे की बढ़ती लत भारत के भावी भविष्य के लिए गंभीर चिंता का विषय है।
अब जब भारत देश की आबादी 1 अरब 36 कराेड़ है जिसमें से करीब 20 करोड़ की आबादी मादक पदार्थो की गिरफ्त में है। आंकड़े बताते है कि सिगरेट पिने के मामले में भारत पूरी दूनियां में दुसरे स्थान पर है। वर्ष 2001 किए गए सर्वेक्षण में सामने आया है कि लगभग 7 करोड़ लोग शराब और मादक द्रव्य का सेवन करते थे। लाखों करोड़ो रूपए केवल विज्ञापनों में खर्च करने वाली सरकारें वास्तविक धरातली कार्य कुछ भी नहीं कर पा रही है क्योकि उत्पादन और बिक्री जब तक होती रहेगी, इसे रोक पाना असंभ ही है।
यदि नशे की समस्या इतनी विकराल ना होती तो शायद आज 26 जून नशीले पदार्थों के दुरूपयोग विरूद्ध अंतर्राष्ट्रीय दिवस के रूप में मनाने की जरूरत नहीं होती। देखने में आया है कि जहां प्रतिबंधन होता है वहीं उस चिज का खजाना होता है। राष्ट्रीय अपराध ब्यूरो के आंकड़े बताते है कि इस नशे के कारण सबसे ज्यादा आत्महत्याएं महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, तमिलनाडु और केरल में होती हैं। नशे की लत युवा वर्ग में तेजी से फ़ैल रही है। एक रिपोर्ट के अनुसार  महज 16 से 35 युवा ही इस लत में फंसे है।
मादक पदार्थो का सेवन करने वाला ये वर्ग कई बार दिखावे के कारण या कुछ ड्रग माफिया की चाल में फंसकर इस लत में पड़ जाता है। क्योकि ये माफिया प्रारंभ में इन बच्चों को मुफ्त में मादक पदार्थो को उपलब्ध कराता है ताकि आगे बड़ा लाभ हो और जब इस नशे की लत लग जाती है तो उसका जीवन बर्बाद होना निश्चित ही है। नशीली दवाईयों के आिद होने के पश्चात इसकी ऐसी लत लग जाती है कि इसके डोस के लिए युवा कुछ भी कर गुजरता है फिर चाहें इसे खरीदने की किमत चोरी हो या डाका या किसी की जिंदगी। देश में अधिकांश अपराधों का जन्मदाता ये मादक नशा ही है। जो महंगें नशे की किमत नहीं चुका पाता वो  फेविकोल, तरल इरेज़र, पेट्रोल, आयोडेक्स, वोलिनी जैसी दवाओं को सूंघकर नशा करता है। गलत संगती के चलते आज का युवावर्ग गुटखा, सिगरेट, शराब, गांजा, भांग, अफीम और धूम्रपान सहित चरस, स्मैक, कोकिन, ब्राउन शुगर की लत में पड़ जाता है। ये सभी जानते है नशे करने के लिए उपयोग में लाई जानी वाली सुइयाँ एच.आई.वी. का कारण भी बनती हैं लेकिन फिर भी ये वर्ग नहीं मानता।
मादक पदार्थो के आिद लोगो में मानसिक असंतुलन आम बात है। ऐसी अवस्था को जानना माता-पिता और अभिभावकों के लिए अतिआवश्यक है कि उनका बच्चें की संगती किसके साथ है। कही उनका लाल अपनी जीवन लीला समाप्त तो नहीं कर रहा है। कुछ युवा ये सोचते है कि शराब या अन्य नशा करने से वो तनाव से दूर हो जाते है। ये केवल उनका भ्रम है किसी भी समस्या का हल नशा नहीं है। युवा अपने तथा देश के भविष्य के लिए नशे का त्याग करें। यदि खुद इस लत से बाहर नहीं आ पा रहे है तो अपने माता-पिता से बात करे। नशामुक्ती केंद्र में जाए और अपना इलाज कराए। यह ना सोचे की अब देर हो चुकी है। यूंही इस जीवन को समाप्त ना करे।  जीवन अनमोल है इस जीवन को नशे की लत में तबाह ना करे। क्योकि ये नशा कुछ समय के लिए तो तनावमुक्त कर देगा लेकिन यह नश जीवन भर के लिए आपको तनाव से तृप्त कर देगा। इसलिए बेहतर होगा इसका त्याग करने का संकल्प ले।                        
(एस.सी.के. सूर्योदय)

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Sunday, 24 June 2018

मिशन परी: स्वच्छ भारत अभियान


परी महज 3 साल की है वह अपनी ताेतली आवाज से जब बोलती है ये क्या कर्रेएएएए हो,,,हर किसी को अपनी और आकर्षित कर लेती है, अपनी मासुमियत और मिठी आवाज सबको प्यारी है,,, परी नदी के घाट पर स्वस्छता अभियान को देखा और जब इसके बारे में उसने अपने पापा से पुछा तो परी को स्वछता के सही मायने समझ आ गये,  फिर वह अपने अभियान पर लग जाती है, जिसे सभी मिशन परी कहने लगे,,
परी जब अपने पापा जी क साथ स्कुल जाती है तब रास्ते में प्रतिदिन की तरह परी के पापा जी गाड़ी रोककर मैया क्षिप्रा को प्रणाम करते है। पास घाट पर कुछ हलचल, चहल-पहल और आवाज को सुनकर परी गाड़ी से उतरकर देखने लगती है घाट पर कुछ सामाजिक संस्थाओं के कार्यकर्ता नदी में फैली गंदगी और कचरे को निकालते है इस अभियान में महिला-बच्चें सभी शामिल है तथा सफाई अभियान में लगे सामाजिक कार्यकर्ता कुछ नारे भी लगाते है। 
*जन-जन का ये लक्ष्य हो, भारत हमारा स्वच्छ हो।
*भारत देश महान, सफल हो स्वच्छ भारत अभियान।
*कचरे का करे उचित निदान, घर-मोहल्लें गांव का बढ़ेगा मान।
*मिशन बढ़ेगा, देश बढ़ेगा।
*मिशन हमारा, स्वच्छ भारत हमारा।
इसके बाद परी को उसके पापा स्कुल छोड़ देते है और परी अपने पापा को बाय बोलती है। परी के चहरे और मिस्टर वैदिक के चहरे पर हल्की मुस्कुराहट थी। उसी शाम परी अपने खिलोने के साथ खेलती रहती है तथा परी के पापा ऑफिस का काम करते है, तभी परी की मम्मी मिसेस प्रिया परी को आवाज लगाती है। परी बेटा,,,,,,,,, होमवर्क,,,,,परी मम्मी की आवाज सुनकर कमरे से स्कूल बेग लेकर बाहर आ जाती है। इस समय उसके कमरे की हालत अस्त-व्यस्त रहती है, खिलोने, कपड़े सब इधर-उधर बिखरे हुए रहते है। तभी परी बड़ी मासुमियत से, पेन्सिल की नोक को गाल पर लगाते हुए,, अपने पापा की और देखती है, पापा की नजर परी पर पढ़ती है तो 
पापा जी इसारे से पूछते है, क्या हुआ,,,,,
परीः पापा,,,जी,,,,ये स्वच्छ भारती मिशन क्या है?
मिस्टर वैदिक परी के इस प्रश्न का जवाब देने वाले ही होते है तभी परी की मम्मी मिसेस प्रिया हाल में चाय और नास्ता लेकर आती है और चाय परी के पापा की और देखर परी को ज्यूस देते हुए,,,
मिसेस प्रिया परी से कहती है परी पहले होमवर्क करो,,,,पापा को काम करने दो। परी ज्यूस पिते हुए फिर चुप-चाप अपना होमवर्क करती है। परी के पापा, चाय का कप उठाते है और परी के पास जाकर बैठ जाते है। मीस्टर वैदिक परी से कहते है परी जो स्वच्छ रहे, गंदगी ना फेलाये और अपने आस-पास स्वच्छता बनाये रखे, यही स्वच्छ भारत मिशन है (परी के पापा परी के सिर के बालो को ठीक करते है, और अपनी जगह पर आकर बैठ जाते है) कुछ देर बाद परी उठती है, और अपने कमरे में जाती है और कमरे में फेला सामान एक-एक कर व्यवस्थित रख देती है, परी की मम्मी मिसेस प्रिया यह देखती है कि परी अपने कमरे में बिखरे सामान को ठीक करती तो परी से पुछती है परी ये क्या है,,,
परी कहती है मिशन है,,,,
मिसेस प्रिया परी के रूम से बाहर निलती है और परी के पापा की और देखते हुए,,,,
बोलती है,,,,मिशन है,,,,,
परी के पापा मुस्कुराते हुए,,,,मिशन परी,,,
दूसरे दिन परी का क्लास रूम, क्लास टिचर मिस सारा मेम बच्चों के होमवर्क चेक करती है तथा नर्सरी कक्षा की एक पोयम बुक मे से पोयम रिपीट कराती है,,,
डुमक-डुमक डम-डम,
बदल छाए, नीर बरसे छम-छम,
टागे बढ़ते चले हम,,
चले-चलों स्कुल चले हम,,,।
लंच की घंटी बजते ही बच्चे अपना टिफीन खोलते है तथा सभी बच्चें टीफीन अस्त-व्यस्त तरीके से खाते है। पर परी,,,टीफीन खाने से पहले हेण्ड वास करती है और टिफीन एक पेपर के उपर रख कर खाना प्रारंभ करती है,,, परी की दोस्त दिशा परी में आये इस परीवर्तन को देखकर परी से पुछती है परी ये क्या तुम इतना बदल गई है,,,
परीः मिशन है,,,(गंभीर मुस्कुराहट के साथ) अब से तुम भी कसम खाओं की गंदगी नहीं करोगी तभी हमारी बेस्ट फ्रेण्डशिप रहेगी। लंच के बाद क्लास खत्म होने के बाद जब सभी बच्चे चले जाते है तो लंच में फैली क्लास रूम में गंदगी को परी उठाकर डस्टबीन में डालती है,,
अन्य दो तीन लड़कीया परी को खिड़की में से झांककर चिड़ाती है और कचरा अन्दर डालती है,, और कहती है परी बाई परी बाई,,, पर परी उनकी बातो को नजर अंदाज कर अपना काम करती है उन लड़कियों द्वारा फेके कचरे को भी वह उठाकर डस्टबिन में डाल देती है,, तभी बच्चों की आवास सुनकर क्लास टिचर मिस सारा क्लास रूम के सामने रूकती है और परी को अंदर कचरा साफ करते देखकर परी की और देखकर उससे पुछती है,,, हाथो की इसारे से,,,
परी मिस सारा से मिशन है,,,,
उसी शाम को परी के घर के बाहर इवनिंग वॉक के समय परी अपने पापा से पुछती है,,, परी मिस्टर वैदिक सेः पापा जी सब गंदगी क्यों करते है। मिस्टर वैदिक परी सेः वो नासमझ है। अगले दिन सुबह जब परी स्कुल जाती है तो पास के अंकल (जिमी अंकल) अपनी बाईक रोड़ पर घोते है तथा गुटका खाकर पिचकारी रोड़ पर छोड़ते है, पर अपने पापा जी को गाड़ी रोकने का बोलती है
परी मिस्टर वैदिक सेः पापा जी रूकों,,,
परी के पापा गाड़ी रोकते है और परी उतरकर जिमी अंकल के पास जाकर बालती है,,,
परी जिमी अंकल से कहती है, अंकल आप नासमझ हो,,,आपको एेसे रोड़ पर बाईक नही धोना चािहए इससे किचड़ बनेगा इसलिए आप बाल्टी में पानी लेकर घर के लॉन में साफ करना चाहिए तब जिमी अंकल परी को स्वारी बोलते है और घर के अंदर लान में बाल्टी में पानी लेकर गाड़ी साफ करते है।
एक शाम जब परी मोहल्ले में खेलती रहती है तो पड़ोस मे ही एक आंटी अपने घर का कचरा घर के सामने ही डाल देती है तो परी उनसे भी बोलती है,,
परी मधु आंटी सेः आंटी आप नासमझ हो,,,,आपको कचरा कचरा पेटी में डालना चाहिए। 
यह बात एक मासुम लड़की के मुह से सुनकर वो भी शर्मिंदा होती है। आगे से कचरा चरा डस्टबीन में डालने का वादा करती है।
एक दिन परी की छुट्टी हो जाती है पर परी के पापा अभी तक उसे लेने नहीं पंहुचते है,,, परी स्कुल गेट पर अपने पापा का इंतजार करती है,,, वही कुछ बच्चें भी अपने पेरेन्ट्स का इंतजार करते है,,तभी तेज रफ्तार से एक कार उसे किचड़ से गंदा कर देती है,,, (गाड़ी चलाने वाला स्थानिय नेता होता है जिसे पता भी होता है कि उसकी कार से एक लड़की किचड़ से गंदी हो जाती है लेकिन वह उस लड़की को साईड ग्लास में देखकर हल्की मुस्कुराहट के साथ आगे बढ़ जाता है) तभी परी के पापा आ जाते है गाड़ी खड़ी कर परी को इस हालत में देखकर परी को गले लगाने जाते है,, लेकिन तभी परी,,,उसके पापा को रूकने का इसारा करते है,,,और कहती है,,,रूको पापा जी ,,,मैं गंदी हो गई,,,तब परी के पापा परी से कहते है,,, बैटू आप गंदे हो गई तो क्या हुआ आप तो मेरी प्यारी बिटीया हो,,,और मिस्टर वैदिक उसे गले लगा लेते है तब परी उसके पापा से कहती है,,,पापा जी मिशन फैल हो रहा है,,,
तब मिस्टर वैदिक परी से कहते है,,, परी है तु मिषन फैल कैसे हो सकता है,,,
परी उसके पापा से फिर हाथो के इसारे से कहती है रूकों पापा जी,,,  और अपने स्कुल बैग का सामान मिस्टर वैदिक के हाथो में रखकर रोड़ के पास पड़े छोटे-छोटे पत्थरों को बैग में भरकर गड्ढे को भरती है ऐसा वो दो तीन बार करती है तभी उसकी सहेली दिषा भी उसकी मदद को आगे आती है,,,तभी परी को इस तरह कार्य करते हुए देख आसपास के लोग भी थोड़ी देर के लिए अपने काम को रोक देते है तभी वह स्थानिय नेता भी वापिस अपनी कार से आता है और उस बच्ची द्वारा इस तरह कार्य करते देख अपनी गाड़ी रोकता है और शर्मिंदा होता है और परी के पास जाकर कान पकड़कर सॉरी कहने का इसारा करता है,,, परी अपना काम करती है, तब स्थानिय नेता फोन लगाता है और मुरम का डम्फर बुलवा लेता है परी के इस कार्य से सभी स्वप्रेरीत होत है तथा जो रोड़ पर गंदगी फेलाते है अपना कचरा वापस उठाकर डस्टबिन मे डालते है,,,
धार्मिक बंधु भी अब नदी में कचरा नही फेलाते है। जब नदी में परी की दोस्त दिशा अपने मम्मी पापा के साथ जाती है तो दिशा के पापा नदी में पुष्प हार नदी में डालते है तो दिषा उन्हे रोकती है। परी का स्वच्छता का यह अभियान आगे भी लगातार जारी रहा। 
मिशन परी एक नई शुरूआत,,,,,स्वच्छ भारत अभियान की और 
(एस.सी.के. सूर्योदय)

SCK Suryodaya 
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Friday, 22 June 2018

प्रथम गुरू माता-पिता

एक बच्चें का सर्वप्रथम मोटीवेटर उसके माता-पिता ही होते है क्योकि वो जो कुछ भी सिखता है उनसे ही सिखाता है इसलिए प्रथम गुरू ये ही है।  माता-पिता होना यानी खुशी का बढ़ना। कहते है कि निर्माण करना कठिन है तो उसकी सुरक्षा करना अत्यंत कठिन है। माता-पिता अपने बच्चों से कई उम्मीद लगाते है क्योकि उनका बच्चा ही समाज में उनके नाम को और इज्जत को बनाए रखता है पर वर्तमान परिवेश में उनके बच्चों में कहीं बुरी आदतों का समावेश ना हो जाए इस कारण थोड़े चिंतीत भी होते है क्योंकि समाजिक परिवेश कुछ दूषित है। लेकिन यदि माता-पिता प्रारंभ से ही अपने बच्चों के प्रति सजग रहेंगे तो उनका बच्चा आगे चलकर भटकेगा नहीं।
आज के व्यस्तम सामाजिक जीवन में जहां किसी के पास एक दूसरे के लिए दो पल की फुर्सत नहीं, कि वह अपने उत्तरदायित्व को पूर्णत: निभा पाए। पर जब अापने जन्म दिया है तो अपने कर्त्तव्यों का पालन करना भी अनिवार्य हो जाता है। आप अपनी संतान को हर समय अच्छा वातावरण दे जिससे बच्चों को स्कूली शिक्षा के साथ-साथ व्यवहारिक शिक्षा का भी ज्ञान हो सके तभी उनके अनुभवों में वृिद्ध होगी। उन्हें बचपन से ही संस्कारवान बनाईये और ये सब वो अापसे ही सिखेगा। जैसे संस्कार आपमें होंगे वेसे ही वो धारण करेगा इसलिए खुद भी संस्कारीत हो। आप अपने बच्चों में समय सारणी के अनुसार ही काम करने की आदत को निर्मित करें क्योकि समय बहुत कीमती होता है उन्हें यह बताईए कि समय उनका कभी इंतजार नहीं करेगा।  आप उनके आचार-विचार पर भी ध्यान रखे तथा उनके सामने किसी की भी बुराई न करें। कहते है कि अच्छी फसल वही किसान पाता है जो अपनी फसल की सदैव देखभाल करता है। आप अपने बच्चों के सामने ऐसा व्यवहार न करे जिससे उसका कोमल ह्दय भयभीत हो। घर का वतावरण ही बच्चों को संस्कारवान बनाता है। घर का माहौल जैसा होगा उसमें वैसे ही गुण निर्मित होंगे। आप जैसा व्यवहार करेंगे वैसा ही व्यवहार वह किसी और के साथ करेगा।
आप झुठ बोलेंगे तो वह भी झुठ बोलने से कतराएगा नहीं। एक बालक में सीखने और नकल करने की प्रव‌ृत्ति सबसे अधिक होती है। आप अपने बच्चों को सदैव प्रोत्सािहत करें क्योंकि हर माता-पिता का लक्ष्य अपने बच्चों को एक सुशिक्षित, सभ्य, ईमानदार, सफल तथा कर्त्तव्य परायण व्यक्तित्व का निर्माण करना है जो उनका नाम दूनियां में रोशन करे। हर माता-पिता की चाहत होती है कि उनकी संतान डॉक्टर, इंजीनियर, अधिकारी आदि बने। यह तो ठीक है लेकिन अकसर माता-पिता यह भूल जाते है कि बड़ा केवल पद या धन से नहीं बनते, बड़े बनते है चरित्र से। इसलिए पहले बच्चों को चरित्रवान बनाए। बच्चों की रूचि, योग्यता का पहचाने और जुट जाइये उनके विकास में आप ही उनके अच्छे साथी और उचित मार्गदर्शक बन सकते है।          
(एस.सी.के. सूर्योदय)

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Tuesday, 19 June 2018

सफलता के प्रथम तत्व



उत्सुकता: 
ज्ञान एक अथाह सागर है, जिसे हम प्राप्त करने का प्रायास कर सकते है यदि हमारे पास उसे हासिल करने की उत्सुकता ही नहीं होगी तो उम्मीद छोड़ दे उस क्षेत्र में सफलता पाने की। जिस प्रकार एक बच्चा कोई नई वस्तु देखता है तो वह पूछता है-ये क्या है? इसका नाम क्या है? ये किस काम आती है? ये कहाँ से आई? इसे किसने बनाया? आदि,, जब तक उस बच्चें का इन सवालों का जवाब नहीं मिलता वह प्रश्न करना नहीं छोड़ता और जवाब भी सही भ्रमित करने वाले जवाब भी उसे और अिधक जानने के लिए प्रेरित करता है। ठिक उसी प्रकार हमें भी बच्चे की तरह खुद से प्रश्न करना चाहिए। उत्सुकता आपको जीवन में कुछ नया बनने या करने को  भी प्रेरित करती है हो सकता है आपकी यही उत्सुकता किसी महत्वपूर्ण वस्तु का अविष्कारक बना दे,जो मानव के लिए हितकारी हो।
उद्देश्य: 
सफलता के लिए उद्देश्य की उत्पत्ती भी होना अतिआवश्यक है। कहते है जिनके पास जीने का उद्देश्य है वो मार्ग से कम ही भटकते है। जिस प्रकार खाने के लिए अच्छी भूख का हाेना जरूरी है उसी प्रकार जीने के लिए उद्देश्य का होना जरूरी है। यदि आपका उद्देश्य अपने लक्ष्य में सफलता पाना है तो आपकों ये ध्यान में रखना होगा कि उद्देश्य एक हो अनेक नहीं। उद्देश्य निर्धारित कर लेने के बाद आपकों सफलता के अन्य प्रमुख तत्वों को ध्यान मे रखना है जो सीधो समानुपाती है आपकी सफलता के। सफलता को कभी अन्तिम ना मान। इस राह का कभी अन्त नहीं हो सकता। हाँ एक सफलता के बाद हमें दूसरी सफलता के लिए उत्सुकता के साथ उद्देश्य बनाना है।
सपने: 
सपने तभी सकार होते है जब उनमें सच्चाई हो अत: सपनों को साकार करें। क्योकि बिना साकार के कुछ भी सत्य नहीं। बहुत से लोग अपने कार्य में थोड़ी सी रूकावट से नहीं चाहते हुए भी विचलित हो जाते है ऐसा इसलिए होता क्योकि वे असफलता से डरते है। यदि आप सच्ची सफलता चाहते है तो बिना विचलित हुए समस्या का समाधान ढूंढ‌ेंगें। ऐसा ना हो कि घबराकर कोई गलत कदम उठा ले। इसलिए आने वाली अड़चन का सामना करें क्योकि यदि कुछ कार्य करते है तो कई रूकावटो का अना भी स्वभाविक है। तब संयम के साथ उचित निर्णय ले और कोशिश करें और चले पड़े सफलता की राह पर ।
(एस.सी.के. सूर्योदय)

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Wednesday, 13 June 2018

मुरझाता बचपन

12 जून को संपूर्ण विश्व में विश्व बालश्रम दिवस मनाया गया कई जगह इस दिवस को मनाने के लिए भी लाखों रूपए हवन कर दिए गए लेकिन मध्यप्रदेश के कई जिलों में इस दिवस को याद तक नहीं िकया गया। अभिशाप बना यह बाल मजदूरी का कलंक देश के मुस्कुरातें हुए बचपन का अंत है। तो क्या इस यह एक प्रथा है जिसे खत्म करने के लिए हमें किसी अवतारी का इंतजार करना पड़ेगा।
ऐ   छोटू,,,, ऐ बारीक इधर आ, चाय लाना,,,,
आदि शब्द काे सुनकर कुछ तो ध्यान में आ ही गया होगा, जी हां हम बात कर रहे है ऐसे ही बाल श्रमिकों की, जो हमारे एक आर्डर पर हाजिर हाेकर हमें बड़ों से अच्छी सर्विस दे देते है, क्योंकि ये नादान है इन्हें अपनी क्षमता का सही उपयोग नहीं पता। हॉटलों व चाय की दुकानों में और घरों में इनकी उपस्थिति से कोई इंकार नहीं कर सकता। लेकिन फिर भी लगातार जारी है बाल मजदूरी। आखिर कहां गई सरकार की योजनाएं?  कहां गया संविधान का मौलिक अधिकार जिसमें 14 वर्ष से कम उम्र के बच्चों को केवल बेहतर शिक्षा का प्रावधान है? बैमानी है धारा 24 जिसमें कसी कारखाने या खदान में कार्य पर प्रतिबंध है। बैमानी है धारा 39-ई जिसमें मजदूरों के बच्चों का शोषण न होने की बात कही गई है। बैमानी है धारा 39-एफ जो बच्चों को नैितक व भोतिक दुरूपयोग से बचाती है। बैमानी है धारा 45 जाे 14 साल से कम उम्र के सभी बच्चों को 100 प्रतिशत मुफ्त शिक्षा देने का  आदेश देती है।  निमार्ण कार्य में लगे आदिवासियों के बच्चों का क्या भविष्य। क्या यहां केवल मजदूर का बेटा मजदूर ही पैदा होता रहगा। हर जिले में गर कलेक्टर सख्ती दिखाए तो मजाल कही बालश्रमिक मिल जाएं पर ये मेरे केवल खयाली पुलाव है यहां हकीकत में सरकार के नुमाइंदे काे क्या इन मासुमों का मुरझाता बचपन नजर ही नहीं आता उनके बच्चें ठीक बाकी भले कोई मांगे भीख।
बचपन होता है पढ़ने-लिखने, हंसने और मस्ती करने के लिए लेकिन ये बचपन बालश्रम की कुप्रथा के चलते लाखों बच्चों का मासुम बचपन छिन जाता है। केवल चंद रूपए की खातीर खुद माँ बाप अपनें बच्चों के हाथों में कलम छिन कर काम का बोझ डाल देते है। आंकड़े बताते है कि भारत में लगभग 5 करोड़ बाल श्रमिक अपने बचपन को पचपन जैसा जीने के मजबुर है। यहां उनसे काम तो अधीक लिया जाता है परंतु खाने को आधा पेट भर जाए इतना ही खाने को दिया जाता है। घरेलु नौकरों की तो अौर भी हालात खराब है जहां इनसे 18 घंटे तक काम लिया जाता है जहां उन्हें मानसिक शारिरीक प्रताड़ना भी दी जाती है। कई बच्चें मंदिरों, सड़कों और गली मोहल्लों में भीख मांगते देखे जा सकते है ये वो कुनबा है जिसे तरस खाकर हर कोई नजरअंदाज कर देता है। क्या भीख देने से उनकी मदद हो जाएगी। नहीं ना तो फिर हमारी मानसीकता को बदलने की क्यों जरूरत महसुस नहीं होती, जीन घरों में बालश्रमिक है वो पढ़े-िलखे नही है समझदार नही है।  आखिर उनकी संवेदनाएं क्यों शून्य हो चली है। क्या इन बच्चों के बेहतर भविष्य के लिए बालश्रम से मुक्ती दिलाकर उनके पढ़ने लिखने का प्रबंध नहीं कर सकते। क्यां हम ऐसी जगहों का बहिस्कार नहीं कर सकते जहां बालश्रमिक सेवा में लगे है।
<br>अभी कुछ दिनों पहले की ही बात है मैं एक चाय की दूकान पर चाय पी रहा था जहां मुझें लगभग 12 साल का एक बच्च काम करते दिखाई दिया। मैने पहले तो दुकानदार से बात की कि बच्चें को काम पर क्यों रखा था तो दुकानदार कहता है, कौनसा बच्चा ये तो 15 साल का है,,,,इस जवाब से एक बात तो साफ हो गई थी कि दुकानदार को ये ज्ञान तो था कि 14 साल से कम उम्र के बच्चों को काम पर रखना कानूनन अपनाध है,,, जब मेने बच्चें को पुछा कि काम पर किसने भेजा तो बोलता है पापा ने। मेने फिर दूसरा सवाल किया की पापा क्या करते है,,, तो उसका जवाब था कुछ नहीं करते,,, दारू पिते है।
एक 12 साल का बच्चा अपना पुत्र धर्म निभाकर पिता की दारू के लिए काम करता है। ये है हमारे महान देश की व्यथा जहां बचपन  अंधकार में खो रहा है। हमारा देश वैसे तो महान है क्योकि यहां बड़े-बड़े अरबों-खरबों के घोटालें होना आम बात है, इस तथ्य से एक बात तो साफ है कि यहां रूपए की कोई कमी नहीं फिर भी महंगाई डायन जाती नहीं और गरीबी इस तरह हावी है कि लाखों लोगों को एक वक्त की रोटी तक नसीब नहीं हाेती और इसी गरीबी के चलते बालश्रमिकों को निर्माण कार्य, हाॅटलों, कारखानों में कार्य करना पड़ता है।  ऐसा चलता है तो चलने दो, हमारा समाज ही नहीं चाहता कि बालश्रम की कुप्रथा समाप्त हो इन बच्चों के भविष्य की किसी को चिंता नहीं। सभी बस इस पर राजनैतिक रोटियां सेक रहे है। इन मासूमों के लिए जो देश का भविष्य है, कोई नेता सड़कों पर नहीं आता उलट उसके हाथ की चाय जरूर पी लेता है। हमारा देश आज विश्व की महान शक्तियों में गिना जाता है लेकिन यहां भावी भविष्य ही कमजोर है। मुरझाते बचपन की और और किसी का ध्यान नहीं है। रोटी-कपड़ा-मकान भी इन लोगों के िलए एक सपना सा प्रतीत होता है। बालश्रमिकों का जीवन की पशु के सामन ही है सिधे शब्दों में कहें तो ये बालश्रमिक कोल्हू का बेल ही है। पढ़ने-िलखने की उम्र में काम करने से इनमें  मानसिक परिपक्वता भी नहीं आ पाती। बाल श्रमिक बड़े होते-होते केवल श्रमिक ही रह जाते है और ये अपने शरीर से भी एक दिन लाचार हो जाते है। जिंदगी की जद्दोजहद में ये मसुम ऐसे पीस रहे है, जैसे गेहूं के साथ धुन।
हर छोटे-बड़े शहरों में बाल श्रमिकों की संख्या सेकड़ों  में हे लेकिन सरकार के अनुसार केवल कुछ है। सरकार द्वारा चलाए जा रहे राष्ट्रीय बालश्रम उन्मूलन महज कागजों में सिमट कर रह गया है। वास्तविक स्थति उन्हें भी पता है पर जमीनी स्तर पर कार्य कोई नहीं करना चाहता। कई सामाजिक संस्थाएं हल्ला करती है इस क्षेत्र में कार्य करने की यहां तक की राष्ट्रीय अंतरराष्ट्रीय अनुदान भी प्राप्त करती है लेकिन कार्य दो कोड़ी का नहीं। जरूरत है हमारी मानसिकता बदलने की तभी इस दिशा में सकारात्मक बदलाव होगा।
(एस.सी.के. सूर्योदय)

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Sunday, 20 May 2018

ये इश्क कैसा है ?

गम-ए-महफील सजी सुनाओं, गम-ए-कहानी,
मार डालों इस गम को, ये जिन्दा कैसा है?

कोन थी वो, जिसने दिल तोड़ा,
मयखाने में पयाम का सवाल कैसा है?

तु ही चाहत, तु ही राहत मेरी,
पास नहीं है तु फिर भी चाहत का होना कैसा है?

तु कितनी ही बैवफ बन कत्ल कर अरमानों का
हम तेरी खूशी चाहेंगे,अन्दाजे वीर ऐसा है।

जमाने से सुनते आये मोहब्बत का फलसफा,
मोहब्बत का ये ही सिलसिला कैसा है?

चहरे पे चहराहर चहरा उसका झूठा,
जिन्दगी के चहरे पर नकाब कैसा है?

कैसे समझाये उसे ये मोहब्बत कम न होगी,
गर झूठा है तो देखना अन्जाम-ए-इश्क कैसा है?

खूशि और गम, किस्मत से है,
किसी का मिलन मूझसे बिछड़ना कैसा है?

प्यार और मोहब्बत के फसाने निराले है,
इसी में हसंना रोना फिर कोई गम कैसा है?

तेरे जाने के बाद आलम है ये,
अपना घर ही मयखाना बनाए रखा है।

हर कोई बरबाद है हुश्न के इश्क में,
फिर भी करता ये गुनाह ये विर कैसा है?

प्यार ही मांगा था दिया फरेब का मंजर,
पिलाया जहर न करता अब असर कैसा है?

सब कुछ बदलता है ये सबकी फितरत है,
मैं नहीं बदलूंगी फिर ये बदलना कैसा है?

यूं तो जिन्दगी में गम कोई कम न थे,
तुझसे भी मिलते रहे ये सिलसिला कैसा है?

शबनम समझ अपना बनाया उसे,
किसी और की चाह सेतर बतर ये जिस्म कैसा है?

चाहा है तुझे, इसकी कोई हद नहीं,
तेरे सिवा किसी और चाहत होना फिर कैसा है?

कई बार जश्न कई बार मातम की रश्म,
मेरे गम में उसकी खूशि का छलकना कैसा है?

शब-ए-गम में चिराग जलाने का सोचा था हमने,
बैवफा चिराग भी तन्हा कैसा है?

तु आएगी एक दिन इसलिये दरवाजा खूला रखा है,
शामो-सुबह, दुस्मनों का पहरा कैसा है?

वह कहती है मोहब्बत मेरी लोखों की है,
उसे कैसे बताउं मेरा करोड़ो का प्यार कैसा है?

हर अन्धेरे के बाद रोशनी का दोर होता है,
फिर ये अन्धेरों में बैठने वाला शोर कैसा है?

जहर का प्याला सराफत से पिलाया साजन ने,
जिन्दगी में मोहब्बत का ये तोहफा कैसा है?

दुआ मे उठते ये हाथ मांगे बस खूशि तेरी,
मैरा खूदा तु, फिर दूसरा खूदा कोई कैसा है?

हर कोई बरबाद है इस हुश्न के इश्क में,
इस बार है जिसकी बारी जाने कैसा है?






SCK Suryodaya
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Thursday, 3 May 2018

आतंकवाद का दंश

आतंकवाद को जड़ से फेकने वाले ही कहीं न कहीं प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष रूप से आतंकवादियों के मददगार है। इंसान इसान को मार रहा है, कुछ धर्म के ठेकेदार जैहाद के नाम पर लोगों को गुमराह कर बैगुनाओ की बली  चढ़ा रहे है, वो मानव बम बना रहे है और हम मोमबत्तीयां जलाकर खामोशी से चिल्ला रहे है कि आतंकवाद का अंत हो,,,,,,
चैनो अमन के माहोल में जहां चारों तरफ खुशियां बिखरी हो, जहां इंसानियत के रिश्तों में मोहब्बत का गुलशन महक रहा हो, जहां स्वर्ग से भी सुंदर इस जमी का निशां हो, अनंत आनंद की अनुभुती हो, जहां बचपन अठखेलियां खेल रहा हो, जहां यौवन मचल रहा हो, खुशी के सपने बुन रहा हो और उम्र का आखरी ठहराव आनंदित हो, अपने जीवन की स्मृतियों में बिखर जाना चाहता हो, वहां उस माहोल को, उस गुलशन को उस फिजा को, उस बचपन को,उस योवन को, उसे अानंद को हिंसा की तलवार से काटना, उत्पाद मचाना, हलचल मचाना, आतंकवाद है। बैगुनाहों पर अत्याचार करना, अपहरण करना, मासुमों के साथ दुष्कर्म करना आतंकवाद है।धर्म, जाति, भाषा, वेशभुषा को आधार बना कर जबरन बैबुनियाद बाते मनवाना आतंकवाद है। इंसानियत को खत्म कर दिलों में खौफ पैदा करना आतंकवाद है। अपने वतन, अपनी जमीं से दगा करना आतंकवाद है। 
आज आतंकवाद से प्रत्येक राष्ट्र ग्रसित है। जैहादी भेरूओं ने जो जंग प्रारंभ की है वह केवल मानव जाति को विनाश की और ले जाएगी। आतंकवाद रूपी यह वृक्ष आज बहुत ही जहरीले फल उत्पन्न कर रह है,जिसका साया भी मानवता को मुर्छित कर देता है। इस आतंकवाद रूपी वृक्ष को मजहबी संगठनों ने जैहाद का पाठ पढ़ा-पढ़ा कर बढ़ा किया है। इस उन मासुम बच्चों, बेगुनाहों के खून से सीचा गया है जो जीना चाहते थे। िकसी इंसान में अच्छी प्रवृत्तियों के साथ-साथ शैतानी प्रवृत्तियां भी होती है और इन्ही शैतानी प्रवृत्तियों पर जब मन-मस्तिष्क का नियंत्रण नहीं रहता है तो आतंकवादी का जन्म होता है। आज जितने भी मजहबी जैहादी संगठन है वो खाने को तरसते बच्चों, बैरोजगारों की मजबूरियों का फायदा उठाकर उन्हें रूपयों का लालच देकर, बहला-फुसलाकर उन्हें आसानी से जैहादी बना रहे है।
आज हम विश्वव्यापी आंतकवाद के वायरस से जुझ रहे है। इस वायरस ने जहां कदम पसारे वहां जिन्दगी तिल-तिल कर दम तोड़ देती है। आतंकवादियों के पास आज आधुनिक सभी सुविधाएं मौजुद है जो हमारे सैनिकों के पास भी नहीं है उनका नेटवर्क हमारे नेटवर्क से भी ज्यादा पुख्ता और मजबूत है जो सिर्फ यही दर्शाता है कि हमारे बीच का ही कोई उनकी मदद करता है जिसे हम नहीं पहचान सकते हो सकता है वो हमारा पड़ोसी हो,,,आतंकवादी अपने मनसुबों में कामयाब हो जाते है और हमारे खुफिया तंत्र केवल संभावनाएं ही जताते रहते है, जब तक कि स्वयं आतंकी संगठन जवाबदारी नहीं लेता और  फिर मीडिया रिपोर्ट से हम श्रृद्धाजंली सभाओं में व्यस्त हो जाते है। आज का आतंकवादी अच्छी शिक्षा प्राप्त है इसलिए विश्वव्यापी आतंकवाद के इस चरित्र को पहचानना बहुत ही जरूरी है। अब ये मात्र कुछ सिरफिरे मजहबी जैहादियों का उन्माद नहीं रहा, गली चौराहे पर उत्पाद मचाने वाले, बहु-बेटियों पर बुरी नजर रखने वाले हमारे लोग भी आतंकवादी है।अंग्रेजो की गुलामी से तो भारत आजाद हुआ लेकिन भारत के प्रति बदले की भावना ने भारत और पाकिस्तान दोनों ही राष्ट्रों में जैहादी आतंकवाद को भी जन्म दिया। जो आज तक जारी है। जम्मू-कश्मीर को जन्नत से जहन्नुम भी इन्ही चंद आतंकवादियों ने बनाया है। भारत पाकिस्तान के बीच कई युद्ध हुए कश्मीर मुद्दे को लेकर, कई वार्ताए विफल रही, दोस्ती की बसे भी काम न आई। आए दिन पाकिस्तान अपने घुसपैठियों को भेजकर कश्मीर को हथियाने की कोशिश कर रहा है। आज की जमीनी सच्चाई यह बताती है कि सरकार कश्मीर समस्या का कोई बुनियादी स्थायी हल हासिल करना नहीं चाहती। कश्मीर के युवाओं को धर्म के नाम पर बरगलाया जा रहा है। लेकिन फिर भी उनके मंसुबे पुरे नहीं हो पा रहे है तो सीमा पार से अवैध हथियार के साथ जाली नोटों और नशील पदार्थो की कई खेप भेजी जाती आ रही है इसमें कोई शक नहीं है कि इस प्रक्रिया में हमारे देश के कुछ सैन्य अधिकारी के साथ आम लोग भी भागीदार है और पुलिस की तो बात ही न करो उन्हें तो बस रूपए चाहिए फिर क्या माल कहीं का कहीं भी पहुंच जाएगा। अलकायदा, जेस-ए-मोहम्मद, लश्कर-ए-तैयबा, हरकत उल मुजाहिद्दीन और जे.के.एल.एस. सहित 23 अन्य आतंकी संगठन देश और दूनिया का सिरदर्द बने हुए है। आज आम नागरिक को घर से निकलते हुए भी डर महसूस होता है, कहीं कोई बम न फट जाए इसी डर के साए में  वह अपने जिदंगी जी रहा है और ये खौफ इसलिए भी बड़ा है कि आए दिन आतंकवादी हमले हो रहे है। राजनेताओं के सुरक्षा के घेरों में भी ये सेंध लगा सकते है तो आम नागरिकों में खौफ क्यों न हो। इंसािनयत का सबसे बड़ा दुश्मन आतंकवाद आज लगभग हर देश को अपना निशाना बना चुका है। दुनिया का सबसे शक्तीशाली देश भी 11 सितम्बर की घटना के बाद से जान गया कि आतंकवाद देश के लिए कितना घातक है तभी ओसामा को फना कर दिया गया। पाकिस्तान आतंकवाद का पनाहगार है इसमेें कोई दो राय नहीं,फिर भी इस देश पर कोई प्रतिबंध नहीं लगा पा रहा है।
 26 नवम्बर 2008 को तॉज होटल पर आतंकी हमले से भी हमने सबक नहीं लिया है। जिसमें 160 से भी ज्यादा लोगों की मौत हुई। क्या 26/11 का यह हमला लश्कर-ए-तैयबा के हमारे देश में  फैले नेटवर्क को उजागर नहीं करता। वहीं इसका संगठन का संस्थापक और मुम्बई हमलों का मास्टरमाईण्ड हाफिज मोहम्मद सईद आज भी पाकिस्तान में बैखोफ घूम रहा है। यदि भारत का प्रत्येक नागरिक अपनी देशभक्ती निभा दे तो इन आतंकियों को अपनी औकात समझ आ जाएगी लेकिन ये सिर्फ एक सपना सा प्रतित होता है क्योंकि हमारे बीच देशद्रोहियों की कोई कमी नहीं है। आखिर इस हमले का जिंदा पकड़ा गये आतंकवादी अजमल आमिर कसाब को 21 नवम्बर को 2012 को फांसी पर लटका दिया गया। लेकिन क्या उसके बाद देश में आतंकवादियों की कोई हलचल नहीं है, कश्मीर में हमारे सैनिक इनसे जुंझ रहे है और देश टाईम बम, मानव बम के खौफ में जीने को मजबूर है।

-एस.सी.के. सूर्योदय

SCK Suryodaya 
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Saturday, 14 April 2018

इंसान नहीं ये पिसाच हैं

डर मनुष्य को उस कार्य को करने से रोकता है जिसे वह अंजाम देना चाहता है लेकिन जहां भय समाप्त हो जाता है वहां उसे इस कार्य को करने से रोकना असंभव हो जाता है। हमारा समाज ना जाने किस पथ पर अग्रसर है जहां समाजजन दूराचारियों से भ्रष्टाचारियों और अपराधियों के आगे नतमस्तक है।
बेटी बचाओं बेटी पढ़ाओं का नारा देने वाली सरकार केवल राजनीतिक लाभ के लिए दिखावा कर रही है आज बेटियॉं सुरक्षित ही नहीं है। आजकल एक और झूमला सामने आ रहा है बेटी छुपाओं,,,तो क्या हमारे घर की बहु-बेटियों को घर में छुपा कर रख ले? क्या उनके अधिकारों को छिन ले? कई सवाल है जो हर एक के मन में घुम रहे होगेंलेकिन मोन है। ये दुष्कर्मी इंसान तो हो ही नही सकते, ये िपसाच ही है और ऐसे पिसाचों को तो मौत की सजा भी कम है। 
मध्यप्रदेश 12 साल से कम उम्र की बच्चीयों से दुष्कर्म करने वाले आरोपी को फांसी की सजा वाले विधेयक को मंजुरी देकर देश का पहला राज्य बना जिसमें फांसी या 14 वर्ष का सश्रम कारावास शामिल है। फिलहाल विधेयक राष्ट्रपती की मंजुरी के लिए भेजा गया है। लेकिन क्या हम केवल अपने राज्य के लिए सोचेंगे भारत की हर एक बच्ची से क्या हमारा कोई संबंध नहीं है और यह विधेयक उम्र के बंधन में क्यों? और सम्पूर्ण भारत में एक जैसा कानून क्यो बन पा रहा है। एक रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2016 में भारत में दुष्कर्म के 28947 मामले दर्ज हुए थे। माना कि कुछ मामले झुठे भी हो पर ये आंकड़ा उन झुठे प्रकरणों के सामने नगण्य होगें। कठुआ और उन्नाव के बाद ग्वालियर में तो रिश्तों को ही शर्मसार कर दिया एक सौतेले बाप ने 9 साल की मासूम को अपनी हवस का शिकार बनाया। मध्यप्रदेश की बात करे तो यहां भी दूराचारियों के हौंसले बुलंद है हाल ही में भोपाल के बैरागढ़ क्षेत्र में 7 अप्रैल को 9 साल की मासुम बच्ची से उसी के घर में घुसकर नट्टू उर्फ मोनू जाटव ने दुष्कर्म किया। 24 मार्च को भोपाल में ही 20 वर्षीय कॉलेज छात्रा के साथ सामुहिक दुष्कर्म किया गया। आखीर क्यों इन बच्चीयों से उनकी खूशियों को छिना जा रहा है। भारत देश इस तरह बदल रहा है यकिन नहीं होता। एनसीआरबी की 2016 की रिपोर्ट के अनुसार दुष्कर्म के मामले मे मध्यप्रदेश पहले स्थान पर  रहा जहां 4882 मामले दर्ज हुए जो 2015 के मुकाबले 12 प्रतिशत अधिक थे। कई मामलों में तो दुष्कर्म की शिकार महिला या बच्चीयों को ही सबुत मिटाने के लिए मौत के घाट उतार दिया जाता है। क्या उन्हें न्याय नहीं मिलना चाहिए।  न्याय की उम्मीद में कई वर्ष बीत जाते है। फरियादी को डराया जाता है। कि वह अपना केस वापस ले ले नहीं तो जान से मार डालेगें यहां भी डर के कारण पीड़ीता या उसका परिवार अपनी जान की रक्षा के लिए केस वापस ले लेता है या समझोता कर लेता है। क्योकि उन्हें पता है वो कटपुटली की तरह नांचने वाली पूलिसियाई प्रणाली और रसुखदारों और नेताओं से नहीं लड़ पाएगें। और दुष्कर्मी बैखोब होकर घुमते नजर आंएगे। भारतीय कानून व्यवस्था की यदि हम बात करें तो यहां कानून को अपने हाथ की कठपुतली बनाना कोई असंभव कार्य नहीं। भारतीय फिल्म निर्माताओं ने सत्य घटनाओं से प्रेरित होकर कई फिल्में दी। जिनमें कानून का रखवाला ही कानून को तोड़ता है, पुलिस वाला गुण्डा, अंधा कानून आदि कई फिल्में है।  यहां जब तक मीडिय़ा में किसी घटना को बार-बार नहीं दिखाया जाता है। जब तक सोए हुए इंसान की इंसानियत उसे धिक्कार नहीं देती है। उस घटना को चाय की चुस्कीयों के साथ भूल जाना आम लोगों की दिनचर्या हो जाती है, सोशल मीडिया पर ग्रुप में मैसेज कर दिया। खबर को सोशल मीडिया में वायरल करने के बाद काम खत्म हो जाता है। कई घटनाएं तो दबा दी जाती है साथ ही फरियादी को डराया और धमकाया जाता है या फिर प्रलोभन दिया जाता है। जब इन सब से बात ना बने तो मार दिया जाता है। इन सब में मूकदर्शक पुलिस जिसे सबकुछ पता होता है कि अपराधी कोन है लेकिन वे उसे बचाने के लिए किसी निर्दोश पर आरोप मढ़ देते है। बाप का कौन बाप,,, पूलिस का अपना राज। 
हाल ही हुई शर्मनाक घटनाएं जो इस समाज के विकृत लोगों का असली चेहरा सामने ला रहा है लेकिन कहीं न कहीं उसे बचाने के लिए एक दल सक्रिय रहा। रासना गांव कठुवा जिले की आसिफा के साथ जो हुआ वो शर्मसार करने वाली घटना है। यहां ऐसे लोगों की कोई जाति या धर्म नहीं होता ये वो वहशी दरिंदे है जिन्हें हम लोग ही छोड़ देते है। यहां घटना को धार्मिक चोला पहना दिया गया है। मानवता शर्मसार है इस बात को हम नहीं समझ पा रहे है। भारत में आज तक ऐसे दरिंदों के लिए फांसी की सजा का कोई कानून नहीं बना। यही कारण है की इनको कोई भय नहीं है।  उन्नाव में तो अपराधी ही हमारे द्वारा चुना गया जनप्रतिनिधि निकला। जिसने अपने दम पर पीडि़त परिवारों के मुखिया को ही मौत की नींद में सुला दिया।  तो क्या हम आंखें बंद कर केवल बीजेपी....कांगे्रस या अन्य पार्टियों के उम्मीदवार को ही चुनना हमारी मजबूरी है। क्या हम अच्छी छवी वाले उस उम्मीदवार को नहीं चुन सकते जो किसी पार्टी से नहीं है या फिर क्या ऐसा नहीं हो सकता कि हम खुद ही अपना उम्मीदवार चुनकर उसे चुनाव लड़ाकर एकतरफा जीत दिलाए ताकि समाज के लिए कुछ अच्छा सोचने वाले राजनीतिक बदलाव ला पाए। लेकिन ऐसा होगा नहीं क्योंकि हम बदलाव की प्रक्रिया में तब तक आगे नहीं आयेगे जब तक हमारे किसी व्यक्ति के साथ ऐसा नहीं होगा।  दिल्ली की दामिनी के मामले में भी पूरा भारत एक होता नजर आया था। तब ऐसा लग रहा था कि शायद ऐसे दरिंदों के लिए कोई सख्त कानून बन जाए लेकिन बस पुलिस को एक निर्भया टीम दे दी गई। लेकिन ऐसी घटनाएं रूकने का नाम नहीं ले रही है।  सच तो यह है हमारी आत्मा मर चुकी है जो नारी को सम्मान और आजादी से जीने नहीं दे रही है। आखिर क्यों ऐसे दरिंदों को फांसी की सजा या नपुसंक बनाने का कानून नहीं बन पा रहा है। कुछ दिनों तक मीडिया इस खबर दिखाती है, हम टीवी चैनल बदलकर देखते रहेंगे की किस चैनल ने क्या नया खुलासा किया है। उस समाज या धर्म के कुछ लोग सड़कों पर उतरेंगें, कहीं कैंडल मार्च करेंगे, कहीं श्रृद्धांजलि सभाएं आयोजित करेंगें और फिर कुछ दिनों बाद भूल जायेंगे। जब तक फोटोछाप नेताओं को कोई नया मुद्दा नहीं मिल जाता बयान देते रहेगें। और हम केवल मुकदर्शक बने रहेगें। 

SCK Suryodaya 
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Sunday, 18 March 2018

बिखरे जो तुम्हारी जुल्फें तो

चाहत बढ़ने लगी है
प्यास भी गहरी है,
प्यार में हमे हद से
गुजर जाने दो।

बिखरे जो तुम्हारी जुल्फें तो,
आज इन्हें बिखर जाने दो।

रास्ते है जो अनजाने,
मन्जील भी जो दूर है,
दो पल ठहर आज खूद को,
हम में मिल जाने दो।

बिखरे जो तुम्हारी जुल्फें तो,
आज इन्हें बिखर जाने दो।

लहराते इस दुपट्टे को,
तन से बिछुड़ जाने दो,
इन नयनों से काजल,
मस्ती में बिखर जाने दो।

बिखरे जो तुम्हारी जुल्फें तो,
आज इन्हें बिखर जाने दो ।

दिल की चाहत,
आज होंठों से मिट जाने दो,
इन्तजार के बांध टूट जाने दो,
मन से मन, तन से तन मिल जाने दो।


बिखरे जो तुम्हारी जुल्फें तो,
आज इन्हें बिखर जाने दो ।

बाहों में मेरी आओं,
इस वक्त को हसीन बन जाने दो,
कांधे पर सर रख हमारे,
हर मंजिल गूजर जाने दो।

बिखरे जो तुम्हारी जुल्फें तो,
आज इन्हें बिखर जाने दो।

मंजिल गर पहले तुम्हारी आये तो,
आज उसे गूजर जाने दो,
सांसो की खूशबू को फिर,
दिल तक पंहुचने दो।

बिखरे जो तुम्हारी जुल्फें तो,
आज इन्हें बिखर जाने दो ।

अपनी खामोशी को सनम तोड़ो,
पलको पर यूं निन्दीयां ना मण्डराने दो,
चाहत कहने लगी आज प्यार को
प्यार मे मिट जाने दो।

बिखरे जो तुम्हारी जुल्फें तो,
आज इन्हें बिखर जाने दो ।

आंखो के इशारे,
आज शब्द बन जाने दो।
इजहारे इश्क कर,
मेरी मोहब्बत को अपना नाम दो।    

   
बिखरे जो तुम्हारी जुल्फें तो,
आज इन्हें बिखर जाने दो ।


SCK Suryodaya
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Thursday, 1 March 2018

मैं जो रंग जांउ तेरे रंग में

मैं  जो रंग जांउ तेरे रंग मे
दूजा रंग फिर कोई चढ़े ना।
सजना मोरे, सजना मोर
मिट जांउ मिट जांउ तेरे प्यार में।


टक टक अंखिया राह निहारे,,
नेनन माेरे तेरे इन्तजार में,
मैं जो रंग जाउं तेरे रंग में,
सजना तेरे प्यार में।


तेरे बिना जीवन के पन्ने कोरे,
प्रित की सच्ची रित निभा दे
लोट के आजा पियतम मोरे,
फिर से वही मोहे रंग लगा दे।


खूशिया अपनी तुझपे वारे,
मिट जांउ तेरे प्यार में।
पल-पल खयाल तेरा,
हर पल चाहत तेरी,
सजना मोरे।


तेरे इन्तजार में,
कटती नहीं राते मेरी,
मैं जो रंग जांउ तेरे रंग में,
सजना मोरे, तेरे प्यार में।


मन की बाते तु भी जाने,
इन्तजार है तेरा बस तेरा,
मैं जो रंग जांउ तेरे रंग में,
दूजा रंग फिर कोई चढ़े ना।


SCK Suryodaya
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Monday, 26 February 2018

आखिर शत्रु कौन?

व्यक्ति एवं सामाजिक परिवर्तन में एक अवराेध जो कही ना कही मानव मन को विचलीत कर इसका कारण बन जाता है, वह है शत्रुता।
शत्रुता मानव मन में द्वेश्ता के भाव को उत्पन्न करता है जो षडयंत्र के रूप में बदले की भावना के जन्म का कारण बनता है, जिससे व्यक्ति के सभी प्रकार के विकास अवरूद्ध हो जाते है। अगर हम बात करे कि हमारा शत्रु कौन है तो कुछ परिस्थितियां या कारणों पर हम विस्तृत अध्ययन के पश्चात जो कारण सामने आये चर्चा करेगें।
जैसा कि आलेख के विषयवस्तु शत्रु कौन? से ही स्पष्ट हो जाता है कि शत्रु वह व्यक्ति या समुह जो कभी आपका भला नहीं चाहता या जिसे आपकी खुशी उनके दु:ख का कारण बनने लगती है। हमारे अध्ययन से यहां कुछ उदाहरणों से आपको अवगत करवा रहें है जिससे शत्रुओं का जन्म होता है जहां या तो आप किसीके जाने-अनजानें में शत्रु हो जाते है या आपकी कार्यप्रणाली या व्यवहार से आप या आपका कोई शत्रु हो जाता है।
यहां इस बात को भी आप भलीभाती जान ले कि जरूरी यह नहीं कि दोनों ही पक्ष एक-दूसरे से शत्रुता का भाव प्रदर्शित करते या रखते हो, कभी-कभी यह एक पक्षीय भी हो सकता है या दोनों और से लेिकन यह भाव उस विष की तरह है जिसका दंश सोचने-समझने की प्रणाली पर हावी होता है। शत्रुता कभी-कभी मंद गती से मारने वाला जहर भी साबित होता है।
यह तो सभी जानते है क शत्रुता कभी भी किसी का भलाई का कारक नहीं हाेता उलट यह भाव युद्ध की दिशा की और अग्रसर होता है और यह विचार या सोचना निरर्थक होगा कि कोई यह कहे कि युद्ध से कोई लाभ होगा।
युद्ध में किसी ना किसी की हार तो निश्चित हाेती है और यह युद्ध हानि या विनाष का कारण भी बनता है जिसकी भरपाई कई दिनों या वर्षो या सदियों में भी नहीं हो पाती।
इस तरह युद्ध में जितने वाला भी कुछ ना कुछ हारता जरूर है।
सामािजक एवं मानव कल्याण के लिए राज्यों एवं दो राष्ट्रों का युद्ध भी मानवजाति के लिए सार्वभौमिक ना होते हुए क्षेत्रिय भावना तक सिमीत होता है।
शत्रुता मानव मन का वह विकार है जो कई कष्टों का दाता बन जाता है, जिसमें महत्वपूर्ण व्यक्ति बैचेनी एवं मानसिक तनावता का आदि हो औरो का एवं साथ ही स्वयं का अहीत कर बैठता है।
शत्रुता का यह वृक्ष उसके मन के इस तरह फलीभुत होता है जो शत्रु का विनास या उसकी हानी से ही संतुष्ट होता है लेकिन ये सब भाव समाज में अपराधों में अति उत्प्रेरक का कार्य करता है इसलिए यहां यह भाव सम्पूर्ण रूप से तभी समाप्त होगा जब हम शत्रुता का ही विनाश करेंगे और इसके विनाश का महत्वपूर्ण शस्त्र क्षमा और तदोपरांत प्रेम भाव है।
यहां मानव मन को शत्रुओं के विनाश के लिए क्षमा करेंगे या शत्रुता होने पर शत्रु से क्षमा मांगेंगे।
अब यह भाव भी सबके मन को अभिमानित कर इस द्वेश्ता की समाप्ती का अवरोध है कि क्षमा आखिर मांगे कौन? या अपराधों को क्षमा करे कौन? पहल करे कौन? क्योकिं यहां अहं भाव का जन्म होता है। और यह अहं भाव तो स्वाभाविक लगभग सभी में होता है।
सामान्यत: मानव के मुख्य शत्रुओं में उसका अभिमान भी आता है तो सर्वप्रथम मनुष्य इस दोष का निवारण करें कि क्षमा करने वाला या क्षमा मांगने वाला छोटा नहीं होता उससे उसका कोई अहित नहीं होता। गलतियां तो सब से होती है बड़ा वही जो झुक जायें और किसी को क्षमा मांगने पर क्षमा दान दे दे।
इस सत्य को भी स्वीकार करें कि यदि आप क्षमा नहीं करते या क्षमा नहीं मांगते तो शत्रुता का यह रंग हमेशा अपना रंग दिखाता रहेगा जिसका रंग कभी-कभी लाल भी हो सकता है। और आपके जिवन में विष घोलता रहेगा यह एक ऐसा विष है जो धिरे-धिरे आपके या किसी अन्य के अहित का घौतक बनता है।
अत: हरेक मनुष्य समािजक व्यवस्था को सुधारे इसके लिए अति अावश्यक है कि सर्वप्रथम उसके स्वयं के ऐसे शत्रु जिनकी समाप्ति अित आवश्यक है वह है क्रोध, लालच, द्वेश्ता, स्वार्थ आदि। मनुष्य सभी को अपना मानते हुए सबसे प्रेम करें यदि भुलवश किसी से कोई गलती हो जाये तो दैविय गण को अपनाते हुए क्रोध को अपने वश में कर बिना द्वेश्ता कर अहंकार को त्याग कर बिना लालच एंव स्वार्थ भाव के क्षमा करें। शत्रु से भी प्रेम भाव रखे, प्रेम एवं क्षमा वह भाव है जो इस धरा को स्वर्ग बना सकता है, मानव मन और समाज को निर्मल करता है। माना कि आज का मनुष्य काम, क्रोध, लोभ,मोह, माया के भावों का आदि हो चुका है जो उसे भ्रमित करते है इसलिए जरूरी यह है कि वह जान ले कि यह जिवन ईश्वर द्वारा प्रदत्त वह अनमोल देन है जिसे हंसी-खुशी जियें । जितना मिला है उसी में संतुष्ट रहकर जिये।
हम यह भी आपकों नहीं कहते कि सबके लिए जियों, जियों अपने लिए, परिवार के लिए लेकिन वह जिवन प्रक्रिया किसी के अहित की बैला पर फला-फुला ना हो।
स्वार्थ सर्वे हिताय सर्वे सुखाय का घौतक बने तभी मानव जाित का उद्धार संभव है।
अत: सर्वे हिताय, सर्वे सुखाई की यह भावना ही शत्रु या शत्रुता का विनाषकारी शस्त्र है इसलिए ध्यान रखे निम्न कारणों का जिसके कारण आपका कोई शत्रु बन सकता है या आप किसी के शत्रु हो जाते है।
-अज्ञानता ।
-किसी के अच्छे या बुरे कार्यो में विघ्न उत्पन्न करना।
-प्रितस्पर्धा।
-जाने अनजाने में शारीरिक, मानसिक, आिर्थक हानी।
-सफलता से जलन।
-गलतफहमी।
-सहायता (करना या ना करना)
-धोखा देना।
-राजफास करना।
-विश्वाश को तोड़ना।
-हठधर्मिता।
-सामाजिक मान प्रतिष्ठा को ठेस पंहुचाना।
-स्वार्थी प्रवृत्ति।
-सच्चाई।
-झूठ बोलने पर।
-दया करने पर।
-चाहत पूर्ण ना होने पर।
-नर्फत करने पर।
-क्रोध करने पर।
-लालच करने पर।
-अंहकारी होने पर।
-सुन्दरता।
-किसी वस्तु एवं रूपयों का लेन-देन।
-कोई बात ना मानने पर।
-शर्त पूर्ण ना करने पर।
-वादा पूर्ण ना करने पर।
वैसे तो शत्रुता स्वाभािवक अर्थात जन्मजात एवं कृितम दो ही प्रकार की होती है यदि हम जन्मजात शत्रुता की बात करें तो यह शत्रुता हमें सांप एवं नेवलें से समझी जा सकती है तथा कृितम शत्रुता के प्रमुख कारण हम उपर बता चुके है।
जन्मजात शत्रुता को समाप्त करना मुश्किल काम है लेकिन कृतिम शत्रुता का समापन सर्वे हिताय, सर्वे सुखाय मन्त्र एवं प्रेमस्य धर्मो क्षमा के मुल मंत्र में निहीत है।
बहुत आनंद मिलता है किसी को क्षमा करके, आप भी किजिए।
SCK Suryodaya
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Sunday, 25 February 2018

मैं निशा मोहब्बत के मिटाते जब चला

ना सोचा था मेने,
अन्जाम-ए-इश्क ये होगा,,
मैं निशा, हॉ निशा,,
मोहब्बत के मिटाते जब चला।

हार कर जो तुझे,
बर्बादी का जो साथ मिला,,
आशिकी रूठ गई,,
मैं तन्हा फिर से हुआ।
मैं निशा, हॉ निशा,
हर मुलाकात के, मिटाते जब चला।
       
जिसकी जिन्दगी था कभी,,
आज उसने जमाने को,
मुझे अपना बैरी कहा,,
कसुर मैरा ही था,,
एक नादा से, इश्क जो किया।
मैं निशा, हॉ निशा,,
मोहब्बत के मिटाते जब चला।
       
सच जब जाना,,
जिन्दगी का आखिरी,,
यहां कोई, देता साथ नहीं,
एक वक्त जब,,
रह जाते है सब तन्हा,,
मैं निशा, हॉ निशा,,
हर याद के, मिटाते जब चला।

मैं यूंही तमाम उम्र वफा को,,
उसमें तलाशता रहा,,
यार जब मेरा पहले से ही
था बैवफा,,
मैं निशा, हॉ निशा,,
हर बात के,, मिटाते जब चला।

तु जख्म बस देती गई,,
ना लगाया जख्म पर मरहम कभी
मैं तड़पता रहा तु मुस्कुराती रही,,
ना दी दर्द की दवा कभी।
मैं निशा, हॉ निशा,,
मोहब्बत  के मिटाते जब चला।
मैं दूर, बहुत दूर, तुझसे,,
होते जब चला,,
मैं निशा, हॉ निशा,,
जिन्दगी के मिटाते जब चला।

तेरा साथ ही क्या,
हर रिश्ता यहां छूटता गया,,
मैं निशा, हॉ निशा,,
अपनी पहचान के मिटाते जब चला।

अपनो ने तो संभाला भी,
गैरो में कहा दम था,
यकिन तो तब टूटा,,
जब तुमने ही मिटाया,,
मैं निशा, हॉ निशा,,
मोहब्बत,, मिटाते जब चला।

मैं तन्हा ही रहा,,
जान-ए-जहां ने साथ जो छोड़ा,,
फरेब का जहर, हॉ जहर
हर पल, मैं पिता ही गया।

कभी एक जान थे,
दिल धड़कता था एक दूसरे के लिये,
तुने ही चाहा, मैं दूर हो जांउ,
जिन्दगी से तेरी,
तो फिर तेरी जिन्दगी से ही क्या,
इस दूनिया से रूकसत होने लगा,
मैं निशा, हॉ निशा,,
जिन्दगी के, मिटाते जब चला।

एक आशियां जो,
बनाया था कभी हमने,,
जब तु नहीं तो उसका होना क्या,
जो सजाई थी सेज तुने हमारी,,
आज मैं उसे जलाने जब चला,,
मैं निशा, हॉ निशा,,
मोहब्बत के मिटाते जब चला।

मैं निशानिया तुम्हे हरेक,
जब लोटाने चला,
तुमने मुंह फेर कर,
पल भर में बेरी किया,
मैं निशानियां, तुम्हारी चाहत की,
मिटाते जब चला,,

कोई याद ना करे मुझे,,
इसलिये बुरा और बुरा,,
मैं फिर से हुआ, तु जो छोड़ गई मुझे
मैं तन्हा हॉ तन्हा, फिर से हुआ।

मिटता ना था हथेली पर
जो नाम कभी,
आज मेंहदी उस पर
किसी और की सजी,,
तुभी निशा, हॉ निशा,
मिटाती जब चली।

मना लेना खूशिया जितनी है मनानी,,
लोटकर अब मैं कभी,
आउंगा ना नही,,
मैं निशा, हॉ निशा,,
हर बात के, मिटाते जब चला।

फिर जलाके सब मुझे
अपने घर को चले,,
आज मैं, दर्द की दूनिया को,
तेरी खूशि के लिए जब छोड़ चला,,
मैं निशा, हॉ निशा,,
खूद ही के,, मिटाते जब चला।

मेरी मोत पर,,मातम ना मनाना,,
ना बहाना अश्क कभी,,
तुने जो चाहा तुझे मिला,,
मैं दूनिया ये दूनिया तेरी छोड़ चला,,
मैं निशा, हॉ निशा,,
मोहब्बत के,, मिटाते जब चला।     
      
SCK Suryodaya
Reporter & Social Activist
sck.suryodaya@gmail.com

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