ना सोचा था मेने,
अन्जाम-ए-इश्क ये होगा,,
मैं निशा, हॉ निशा,,
मोहब्बत के मिटाते जब चला।
हार कर जो तुझे,
बर्बादी का जो साथ मिला,,
आशिकी रूठ गई,,
मैं तन्हा फिर से हुआ।
मैं निशा, हॉ निशा,
हर मुलाकात के, मिटाते जब चला।
जिसकी जिन्दगी था कभी,,
आज उसने जमाने को,
मुझे अपना बैरी कहा,,
कसुर मैरा ही था,,
एक नादा से, इश्क जो किया।
मैं निशा, हॉ निशा,,
मोहब्बत के मिटाते जब चला।
सच जब जाना,,
जिन्दगी का आखिरी,,
यहां कोई, देता साथ नहीं,
एक वक्त जब,,
रह जाते है सब तन्हा,,
मैं निशा, हॉ निशा,,
हर याद के, मिटाते जब चला।
मैं यूंही तमाम उम्र वफा को,,
उसमें तलाशता रहा,,
यार जब मेरा पहले से ही
था बैवफा,,
मैं निशा, हॉ निशा,,
हर बात के,, मिटाते जब चला।
तु जख्म बस देती गई,,
ना लगाया जख्म पर मरहम कभी
मैं तड़पता रहा तु मुस्कुराती रही,,
ना दी दर्द की दवा कभी।
मैं निशा, हॉ निशा,,
मोहब्बत के मिटाते जब चला।
मैं दूर, बहुत दूर, तुझसे,,
होते जब चला,,
मैं निशा, हॉ निशा,,
जिन्दगी के मिटाते जब चला।
तेरा साथ ही क्या,
हर रिश्ता यहां छूटता गया,,
मैं निशा, हॉ निशा,,
अपनी पहचान के मिटाते जब चला।
अपनो ने तो संभाला भी,
गैरो में कहा दम था,
यकिन तो तब टूटा,,
जब तुमने ही मिटाया,,
मैं निशा, हॉ निशा,,
मोहब्बत,, मिटाते जब चला।
मैं तन्हा ही रहा,,
जान-ए-जहां ने साथ जो छोड़ा,,
फरेब का जहर, हॉ जहर
हर पल, मैं पिता ही गया।
कभी एक जान थे,
दिल धड़कता था एक दूसरे के लिये,
तुने ही चाहा, मैं दूर हो जांउ,
जिन्दगी से तेरी,
तो फिर तेरी जिन्दगी से ही क्या,
इस दूनिया से रूकसत होने लगा,
मैं निशा, हॉ निशा,,
जिन्दगी के, मिटाते जब चला।
एक आशियां जो,
बनाया था कभी हमने,,
जब तु नहीं तो उसका होना क्या,
जो सजाई थी सेज तुने हमारी,,
आज मैं उसे जलाने जब चला,,
मैं निशा, हॉ निशा,,
मोहब्बत के मिटाते जब चला।
मैं निशानिया तुम्हे हरेक,
जब लोटाने चला,
तुमने मुंह फेर कर,
पल भर में बेरी किया,
मैं निशानियां, तुम्हारी चाहत की,
मिटाते जब चला,,
कोई याद ना करे मुझे,,
इसलिये बुरा और बुरा,,
मैं फिर से हुआ, तु जो छोड़ गई मुझे
मैं तन्हा हॉ तन्हा, फिर से हुआ।
मिटता ना था हथेली पर
जो नाम कभी,
आज मेंहदी उस पर
किसी और की सजी,,
तुभी निशा, हॉ निशा,
मिटाती जब चली।
मना लेना खूशिया जितनी है मनानी,,
लोटकर अब मैं कभी,
आउंगा ना नही,,
मैं निशा, हॉ निशा,,
हर बात के, मिटाते जब चला।
फिर जलाके सब मुझे
अपने घर को चले,,
आज मैं, दर्द की दूनिया को,
तेरी खूशि के लिए जब छोड़ चला,,
मैं निशा, हॉ निशा,,
खूद ही के,, मिटाते जब चला।
मेरी मोत पर,,मातम ना मनाना,,
ना बहाना अश्क कभी,,
तुने जो चाहा तुझे मिला,,
मैं दूनिया ये दूनिया तेरी छोड़ चला,,
मैं निशा, हॉ निशा,,
मोहब्बत के,, मिटाते जब चला।
SCK Suryodaya
Reporter & Social Activist
sck.suryodaya@gmail.com
अन्जाम-ए-इश्क ये होगा,,
मैं निशा, हॉ निशा,,
मोहब्बत के मिटाते जब चला।
हार कर जो तुझे,
बर्बादी का जो साथ मिला,,
आशिकी रूठ गई,,
मैं तन्हा फिर से हुआ।
मैं निशा, हॉ निशा,
हर मुलाकात के, मिटाते जब चला।
जिसकी जिन्दगी था कभी,,
आज उसने जमाने को,
मुझे अपना बैरी कहा,,
कसुर मैरा ही था,,
एक नादा से, इश्क जो किया।
मैं निशा, हॉ निशा,,
मोहब्बत के मिटाते जब चला।
सच जब जाना,,
जिन्दगी का आखिरी,,
यहां कोई, देता साथ नहीं,
एक वक्त जब,,
रह जाते है सब तन्हा,,
मैं निशा, हॉ निशा,,
हर याद के, मिटाते जब चला।
मैं यूंही तमाम उम्र वफा को,,
उसमें तलाशता रहा,,
यार जब मेरा पहले से ही
था बैवफा,,
मैं निशा, हॉ निशा,,
हर बात के,, मिटाते जब चला।
तु जख्म बस देती गई,,
ना लगाया जख्म पर मरहम कभी
मैं तड़पता रहा तु मुस्कुराती रही,,
ना दी दर्द की दवा कभी।
मैं निशा, हॉ निशा,,
मोहब्बत के मिटाते जब चला।
मैं दूर, बहुत दूर, तुझसे,,
होते जब चला,,
मैं निशा, हॉ निशा,,
जिन्दगी के मिटाते जब चला।
तेरा साथ ही क्या,
हर रिश्ता यहां छूटता गया,,
मैं निशा, हॉ निशा,,
अपनी पहचान के मिटाते जब चला।
अपनो ने तो संभाला भी,
गैरो में कहा दम था,
यकिन तो तब टूटा,,
जब तुमने ही मिटाया,,
मैं निशा, हॉ निशा,,
मोहब्बत,, मिटाते जब चला।
मैं तन्हा ही रहा,,
जान-ए-जहां ने साथ जो छोड़ा,,
फरेब का जहर, हॉ जहर
हर पल, मैं पिता ही गया।
कभी एक जान थे,
दिल धड़कता था एक दूसरे के लिये,
तुने ही चाहा, मैं दूर हो जांउ,
जिन्दगी से तेरी,
तो फिर तेरी जिन्दगी से ही क्या,
इस दूनिया से रूकसत होने लगा,
मैं निशा, हॉ निशा,,
जिन्दगी के, मिटाते जब चला।
एक आशियां जो,
बनाया था कभी हमने,,
जब तु नहीं तो उसका होना क्या,
जो सजाई थी सेज तुने हमारी,,
आज मैं उसे जलाने जब चला,,
मैं निशा, हॉ निशा,,
मोहब्बत के मिटाते जब चला।
मैं निशानिया तुम्हे हरेक,
जब लोटाने चला,
तुमने मुंह फेर कर,
पल भर में बेरी किया,
मैं निशानियां, तुम्हारी चाहत की,
मिटाते जब चला,,
कोई याद ना करे मुझे,,
इसलिये बुरा और बुरा,,
मैं फिर से हुआ, तु जो छोड़ गई मुझे
मैं तन्हा हॉ तन्हा, फिर से हुआ।
मिटता ना था हथेली पर
जो नाम कभी,
आज मेंहदी उस पर
किसी और की सजी,,
तुभी निशा, हॉ निशा,
मिटाती जब चली।
मना लेना खूशिया जितनी है मनानी,,
लोटकर अब मैं कभी,
आउंगा ना नही,,
मैं निशा, हॉ निशा,,
हर बात के, मिटाते जब चला।
फिर जलाके सब मुझे
अपने घर को चले,,
आज मैं, दर्द की दूनिया को,
तेरी खूशि के लिए जब छोड़ चला,,
मैं निशा, हॉ निशा,,
खूद ही के,, मिटाते जब चला।
मेरी मोत पर,,मातम ना मनाना,,
ना बहाना अश्क कभी,,
तुने जो चाहा तुझे मिला,,
मैं दूनिया ये दूनिया तेरी छोड़ चला,,
मैं निशा, हॉ निशा,,
मोहब्बत के,, मिटाते जब चला।
SCK Suryodaya
Reporter & Social Activist
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